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अब और 800 अरब डॉलर

राजीव रंजन झा

800 अरब डॉलर कितने होते हैं? बड़ी संख्याओं के साथ समस्या यही होती है कि जब तक उन्हें एक संदर्भ में रख कर नहीं देखा जाये, तब तक उनका सही आकार समझना मुश्किल होता है। तो अगर भारत के संदर्भ में इस संख्या को समझना चाहें, तो सीधी तुलना यह है कि 2007-08 में पूरे 12 महीनों के दौरान पूरे भारत ने जितना उत्पादन किया, उससे यह रकम सवा गुना है। डॉलर की मौजूदा कीमत के हिसाब से भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2007-08 के दौरान करीब 625 अरब डॉलर का था।


800 अरब डॉलर की यह रकम अमेरिका खर्च करने जा रहा है दो अलग आर्थिक योजनाओं के तहत। और यह रकम पहले घोषित 700 अरब डॉलर की योजना के अलावा है। ताजा योजनाओं में पहली योजना यह है कि फेडरल रिजर्व फेनी मा और फ्रेडी मैक से 600 अरब डॉलर की ऋण-संपत्तियाँ खरीदेगा। दूसरी योजना के तहत गाड़ियों के लिए कर्ज, क्रेडिट कार्ड के कर्ज, छात्रों के कर्ज वगैरह उपभोक्ता कर्जों के बाजार को बढ़ावा देने के लिए फेडरल रिजर्व 200 अरब डॉलर उपलब्ध करायेगा।
इतने बड़े आर्थिक पैकेज रखे जाने के बावजूद अमेरिकी निवेशकों में इस समय कोई खास उत्साह नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था की चिंताएँ भी उसी अनुपात में बड़ी हैं। हाल में ये चिंताएँ और बढ़ी हैं। कल ही जारी आंकड़ों के मुताबिक अमेरिकी अर्थव्यवस्था तीसरी तिमाही में 0.5% फिसली है, जबकि पहले अमेरिकी वाणिज्य विभाग का अनुमान केवल 0.3% कमी का था। यह बात और है कि बाजार इतनी कमी का अनुमान पहले ही लगा चुका था। और असली चिंता तो आने वाली तिमाहियों को लेकर है। कई अर्थशास्त्री चौथी तिमाही में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 4-5% तक की गिरावट का अंदेशा जता रहे हैं।
इस माहौल में भारत सरकार शायद केवल ऊँची विकास दर के अनुमान जता कर अपना कर्तव्य पूरा मान ले रही है। भारत में भले ही मंदी की आशंका न हो, लेकिन विकास की रफ्तार धीमी पड़ने से कोई इन्कार नहीं कर सकता। अभी तो फिर भी लोग 6-7% विकास दर की उम्मीदें लगाये बैठे हैं, लेकिन जिस तरह से कंपनियों की ओर से विस्तार योजनाएँ टालने की खबरें आ रही हैं, उससे भविष्य में विकास दर को एक गहरा झटका लग सकता है। लेकिन विकास दर को ऊँचे स्तरों पर बनाये रखने के लिए कोई गंभीर सरकारी प्रयास अब तक दिख नहीं रहा।

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