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सेबी (SEBI) : बायबैक को लेकर सख्त, एफआईआई (FII) को मिली राहत

शेयर बाजार नियामक सेबी (SEBI) ने बायबैक यानी वापस खरीद के नियम को कड़ा करने का निर्णय लिया है। आज सेबी के बोर्ड बैठक में यह निर्णय लिया गया। इसके साथ ही सेबी बोर्ड ने पूर्व कैबिनेट सचिव के एम चंद्रशेखर कमेटी की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी। इसमें एफआईआई (FII) के निवेश के नियम को सरल बनाया गया है।
बायबैक के नये नियम के अनुसार कंपनियों के लिए बायबैक के लिए रखी गयी राशि का 50% उपयोग अनिवार्य होगा। कंपनियों को बायबैक की प्रक्रिया 6 महीने के अवधि में पूरा करना होगा। इसके साथ बायबैक के लिए रखी राशि में 25% फंड एस्क्रो अकाउंट में कंपनियों को रखना होगा। अगर कोई कंपनी बायबैक के नियमों का पालन नहीं करती है, तो उसे 2.5% तक जुर्माना देना होगा। एक बायबैक पूरा होने के बाद अगले बायबैक दूसरे साल का इंतजार करना होगा यानी एक साल केवल एक बायबैक। गौरतलब है कि कंपनियाँ अपने शेयर भावों को सहारा देने के लिए वापस खरीद के कार्यक्रम ऐलान करती हैं। इसके तहत वे शेयर बाजार से अपने शेयरों को खुद ही वापस खरीद लेने के लिए एक खास भाव बताती हैं। जब बाजार में निवेशकों और कारोबारियों के सामने वह भाव आता है, तो वे सोचते हैं कि जब कंपनी खुद इस भाव पर अपने शेयर वापस खरीद रही है तो जरूर यह उस शेयर के लिए सस्ता या उचित भाव होना चाहिए। हालाँकि आम तौर पर होता यह है कि कंपनी इस वापस खरीद के लिए एक अधिकतम भाव बताती है। उस अधिकतम भाव के नीचे वह कब और कितने शेयर खरीदेगी, इसका कोई बंधन नहीं होता। हालाँकि यह भी बताया जाता है कि यह वापस खरीद कार्यक्रम इतने करोड़ रुपये का है। लेकिन वह भी अधिकतम सीमा है, यानी कंपनी उससे ज्यादा रकम इस कार्यक्रम पर खर्च नहीं करेगी। इस सीमा के नीचे वह कितना खर्च करेगी, इस बारे में अनिश्चितता बनी रहती है।
सेबी ने एफआईआई निवेश के नियम आसान बनाते हुए रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता को खत्म कर दिया है। अब एफआईआई, सब अकाउंट, क्यूएफआई को मिलाकर फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर (एफपीआई) श्रेणी बनेगी। किसी क्षेत्र में एफपीआई की औसत हिस्सेदारी 24% से ज्यादा नहीं होगी। सिर्फ सूचीबद्ध कंपनियों में ही पोर्टफोलियो निवेश की मंजरी होगी। (शेयर मंथन, 25 जून 2013)

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