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कुछ सँभली तो है अर्थव्यवस्था (Economy), आहट अच्छे दिनों की

आखिरकार भारतीय अर्थव्यवस्था में फिर से रवानगी लौटने के आसार बनने लगे हैं। कारोबारी साल 2014-15 में भारत की विकास दर यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) बढ़ने की रफ्तार 7.3% रही है।

हालाँकि सीएसओ के यह पहले जारी किये 7.4% के अग्रिम अनुमान की तुलना में नीचे है। यह मोदी सरकार के कार्यकाल का पहला वित्त वर्ष कहा जा सकता है, क्योंकि इसके 12 में से 10 महीनों में नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री रहे हैं। बीते साल की विकास दर के आँकड़ों और चालू साल की उम्मीदों के आधार पर कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे दिनों की आहट तो सुनाई देने लगी है।
उत्पादन (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र की वृद्धि दर 2013-14 में घट कर केवल 5.3% रह गयी थी। यह सुधर कर 7.1% हो गयी। इस सुधार पर खुद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी खुशी जतायी है। साथ ही उन्होंने सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर दो अंकों में लौटने को भी उत्साहजनक बताया। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम को उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था में साल 2013-14 की तुलना में 2014-15 के दौरान जितना सुधार आया है, उससे कहीं ज्यादा सुधार चालू वित्त वर्ष यानी 2015-16 में देखने को मिलेगा।
साल 2014-15 की सबसे अहम बात यह है कि चौथी तिमाही में विकास दर बढ़ कर 7.5% हो गयी, जो इस दौरान चीन की 7% विकास दर से भी आगे है। हालाँकि पूरे कारोबारी साल 2014-15 में चीन की विकास दर 7.5% रही है, यानी इस साल भारत विकास दर के मामले में चीन से आगे नहीं निकल पाया। आईएमएफ का अनुमान है कि 2015-16 में भारत की विकास दर चीन से ज्यादा रहेगी।
हालाँकि इससे पहले अक्टूबर-दिसंबर 2014 की तीसरी तिमाही में भी भारत की विकास दर चीन से आगे 7.5% रही थी, मगर 30 मई को पेश संशोधित आँकड़ों में इसे घटा कर 6.6% कर दिया गया। संशोधन पहली और दूसरी तिमाही के आँकड़ों में किया गया है, लेकिन उनके आँकड़ों को पहले से बढ़ाया गया है।
हालाँकि अभी सारे संकेत अच्छे हो गये हों, ऐसा नहीं है। पूँजी निर्माण (कैपिटल फॉर्मेशन) की दर 2013-14 में जीडीपी का 29.7% थी, जो बीते साल में और घट कर 28.7% रह गयी। इसमें लगातार दूसरे साल कमी आयी है। निवेश के साथ-साथ ऋण वृद्धि (क्रेडिट ग्रोथ) और रोजगार जैसे आर्थिक संकेतक भी अभी धीमापन ही दिखा रहे हैं। अर्थव्यवस्था में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले कई क्षेत्र, जैसे कृषि, निर्माण (कंस्ट्रक्शन) और बैंकिंग वगैरह के आँकड़े सुधार नहीं दिखा रहे। जो सुधार हुआ है, वह उत्पादन, यूटिलिटी, व्यापार और परिवहन वगैरह में हुआ है और इसका एक अहम पहलू यह है कि ये क्षेत्र बहुत बुरी दशा से अब धीरे-धीरे सुधार की ओर लौटने लगे हैं।
भले ही बीते कारोबारी साल में निर्माण और सेवा क्षेत्र में अच्छी प्रगति हुई, लेकिन कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन काफी पिछड़ गया है। गौरतलब है कि देश में प्रति व्यक्ति आय 9.2% बढ़ गयी है, लेकिन कृषि क्षेत्र के पिछड़ने का मतलब यह है कि प्रति व्यक्ति आय में इस सुधार का फायदा ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर निर्भर दो-तिहाई आबादी को नहीं मिला है।
हालाँकि वित्त मंत्रालय ने जीडीपी आँकड़ों पर अपने बयान में एक तरीके से इस बात की सफाई देने की कोशिश की है। इसने कहा है कि सरकारी नीतियों से नियंत्रित हो सकने वाले क्षेत्रों यानी उत्पादन (मैन्युफैक्चरिंग) और सेवा (सर्विसेज) में काफी सुधार आया है, जबकि नीतियों के नियंत्रण से बाहर रहने वाले क्षेत्र, जैसे मौसम से प्रभावित होने वाली कृषि और विदेशी माँग पर निर्भर निर्यात का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा है। लेकिन कृषि पर मौसम का प्रभाव होने की बात कह कर सरकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने की अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा नहीं पा सकती।
मौसम पर भले ही सरकार का नियंत्रण नहीं हो, लेकिन प्रतिकूल मौसम होने पर किसानों को राहत देने और कृषि क्षेत्र की संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने में सरकार की एक बड़ी भूमिका से इन्कार नहीं किया जा सकता। इस समय लगभग आधी कृषि भूमि सिंचाई के लिए केवल वर्षा पर निर्भर है। मानसून की अनिश्चितता से कृषि को सुरक्षित करने के लिए नहरों का जाल बिछाने की जरूरत है। हालाँकि इस बारे में मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शुरू की है। इसके तहत अगले पाँच वर्षों में सिंचित भूमि में 14% वृद्धि का लक्ष्य है। हालाँकि इसके लिए जमीन चाहिए और भूमि अधिग्रहण का मसला राजनीतिक दाँव-पेंचों में उलझ चुका है। साथ ही किसान को भंडारण की सही सुविधा मिले तो किसानों को फसल की उचित कीमत मिल सकेगी।
विश्लेषक अभी जीडीपी की नयी सीरीज के इन आँकड़ों से अपने विश्लेषण का तालमेल बिठाने में भी लगे हैं। नयी जीडीपी सीरीज निजी और सरकारी कंपनियों के मुनाफे और वेतन-वृद्धि पर आधारित है। पुरानी सीरीज से हट कर नयी सीरीज पर आने के बाद विकास दर के आँकड़े अचानक पहले से ज्यादा दिखने लगे हैं। स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक को 2015-16 में 6.3% विकास दर रहने के अपने पुराने अनुमान को नयी सीरीज के मद्देनजर ही बदल कर 7.7% करना पड़ा।
इन आँकड़ों पर उद्योग जगत ने संतोष जताया है। उद्योग संगठन सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी का कहना है कि अर्थव्यवस्था सुधार के संकेत दे रही है और अगले वित्त वर्ष में यह इससे भी तेज हो सकती है। बनर्जी के मुताबिक निवेश माँग में सुधार हुआ है, जिससे लगता है कि सरकार के नीतिगत और सुधार-संबंधी प्रयासों का जमीनी असर होने लगा है। आगे चल कर सरकारी निवेश में होने वाली वृद्धि निजी निवेश को भी खींचेगी, जिससे अर्थव्यवस्था में माँग का नया चक्र शुरू होगा। बनर्जी को उम्मीद है कि आने वाले समय में खपत वाली माँग भी जोर पकड़ेगी। (शेयर मंथन, 30 मई 2015)

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