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संसद का शीतकालीन सत्र भी हंगामेदार रहने के आसार

संसद का शीतकालीन सत्र 26 नवंबर से शुरू होने वाला है और 23 दिसंबर तक चलेगा। बीता मानसून सत्र पूरी तरह हंगामे की भेंट चढ़ गया था। लिहाजा इस बार केंद्र सरकार के सामने चुनौतियाँ बढ़ गयी हैं।

जीएसटी विधेयक, भूमि अधिग्रहण बिल, निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स आर्बिट्रेशन बिल और रियल स्टेट रेगुलेशन बिल सहित कई ऐसे विधेयक हैं, जो पिछले सत्र से ही लटके पड़े हैं। इन कानूनों को इस सत्र में पारित कराने के लिए सरकार को काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है। पिछले सत्र में सरकार ने भूमि अधिग्रहण बिल को तो एक तरह से ठंडे बस्ते में ही डाल दिया था।
सन कैपिटल के सीआईओ संदीप सभरवाल का कहना है कि वे आगामी सत्र से कोई खास उम्मीद नहीं लगा रहे हैं, हालाँकि उनका मानना है कि कुछ चीजों पर इस बार बात आगे बढ़ सकती है। यानी वे यह संभावना मान कर चल रहे हैं कि कुछ विधेयक पारित हो सकते हैं। हालाँकि अगर ऐसा नहीं होता है और सरकार अपने महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित नहीं करा पाती है, तो भी बाजार पर उसके चलते कोई नया दबाव बनेगा। सभरवाल कहते हैं कि यह संभावना पहले ही बाजार ने आँक ली है। बाजार में सभी मान कर चल रहे हैं कि इस सत्र में कुछ नहीं होगा।
राजनीतिक विश्लेषकों की ओर से ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि बिहार चुनावों में हुई निराशाजनक हार, साहित्यकारों-फिल्मकारों की ओर से पुरस्कार वापसी करने और दादरी कांड जैसे मुद्दे इस सत्र के दौरान छाये रहेंगे। यह सत्र भी हंगामेदार रहने की आशंका व्यक्त की जा रही है। इस बीच केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी फेरबदल होने की संभावनाएँ जतायी जा रही हैं, हालाँकि माना जा रहा है कि यह फेरबदल शीतकालीन सत्र पूरा होने के बाद होगा।
ये हैं महत्वपूर्ण बिल, जिन्हें पास कराना साबित हो सकता है टेढ़ी खीर
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान कुछ ऐसे महत्वपूर्ण बिल हैं, जिन्हें संसद के पटल से पारित कराना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। कुछ बिल ऐसे हैं जो पिछले सत्र से ही लटके पड़े हैं। इनमें भूमि सुधार बिल और जीएसटी बिल सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा श्रम मंत्रालय की तैयारियों के अनुसार चाइल्ड लेबर अमेंडमेंट बिल, मिनिमम वेज ऐक्ट पर भी विधेयक लाये जाने हैं।
इन मुद्दों से पार पाना नहीं होगा आसान
बिहार चुनाव में हुई अप्रत्याशित हार के बाद केंद्र सरकार मंत्रीमंडल में फेरबदल करने पर भी विचार कर रहा है। दादरी कांड और बीफ का मुद्दा भी पूरे सत्र के दौरान छाये रहने की आशंका जतायी जा रही है। हाल के दिनों में साहित्यकारों एवं फिल्मकारों द्वारा पुरस्कार लौटाये जाने का मुद्दा भी गरमाया रहेगा। ऐसे मुद्दों के बीच लंबित विधेयकों को पारित कराना सरकार के सामने बड़ी चुनौती होगी।
गौरतलब है कि राज्य सभा में एनडीए बहुमत से दूर है, जिसके चलते लोकसभा में अच्छा बहुमत होने के बावजूद सरकार के लिए अपने विधेयकों को संसद के दोनों सदनों से पारित कराना मुश्किल हो गया है। विपक्ष ने पिछले सत्र की पूरी अवधि में राजनीतिक टकराव का रास्ता अपनाया और इस बार शीतकालीन सत्र में भी बिहार में एनडीए की बुरी पराजय से विपक्ष के तेवर काफी आक्रामक रहने के संकेत हैं। (शेयर मंथन, 13 नवंबर 2015)

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