
चिराग मेहता, वरिष्ठ फंड मैनेजर-आल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट्स
नये साल में सोना ने मजबूत शुरुआत की। सोना के अंतरराष्ट्रीय मूल्य के समतुल्य दर से काफी नीचे बिकने के कारण निवेशकों के लिए अब भी प्रसन्न होने का अवसर है।
बाजार में यह चाहत व्यापक रूप से है कि आगामी बजट में आयात शुल्क में 2% की कमी होगी। पिछले साल भी यह चाहत बाजार को थी जो पूरी नहीं हो पायी। इस साल भी वित्तीय परिदृश्य पहले से ही सिकुड़ा होने की वजह से इस चाहत के पूरे होने की उम्मीद कम ही लग रही है। हालाँकि सर्राफा बाजार में शुल्क छूट की उम्मीदों के मुकाबले कीमतों में कमी कहीं बहुत ज्यादा है। स्वर्ण कीमतों में कमी के लिए कम माँग को अन्य कारण माना जा रहा था। हालाँकि कीमत कम होने का कारण कमजोर माँग की बजाय देश में सर्राफा बाजार पर कसी सरकारी की नीतियाँ ज्यादा हैं। यह समझना आसान है कि आयात बढ़ना सरकार के लिए चिंता का कारण होता है क्योंकि इससे चालू खाते के घाटे पर दबाव बढ़ता है। लेकिन यह समझना नि:संदेह मुश्किल है कि सोना निर्यात पर रोक-टोक क्यों है? दरअसल सोना निर्यात के लिए 3% का न्यूनतम मूल्यवर्धन अनिवार्य है। अगर हम बिना किसी बाधा के सोना का निर्यात करने में समर्थ हो जायें तो बाजार अंतरराष्ट्रीय समतुल्य दरों के साथ संतुलन बना सकते हैं और सरकार को भी डॉलर हासिल होगा और गिरते रुपये पर दबाव कम होगा। इसलिए भारत को विश्व की स्वर्ण कारोबार राजधानी बनाने के लिए सरकार को सुधार लागू करने पर जोर देना चाहिए और सर्राफा बाजार को विकसित करने के लिए बड़ा सोचना चाहिए।
सरकार सर्राफा बाजार की चिंताएँ दूर करने के लिए गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम, सोवरन गोल्ड बॉन्ड इत्यादि जैसी योजनाएँ लागू कर नि:संदेह सही दिशा में कदम उठा रही है। इसके अलावा जन-धन योजना जैसी योजनाओं के जरिये सरकार ने ज्यादा से ज्यादा लोगों के वित्तीय समावेशन की दिशा में गंभीर प्रयास किया है। लेकिन हमें लगता है कि यह कदम समस्या को हल करने के लिए आधे-अधूरे मन से उठाये गये हैं। उपभोग को निरुत्साहित करने की दिशा में ये योजनाएँ और नीतियाँ लक्षणों का इलाज कर रही हैं न कि मूल बीमारी का। बाजार को बनाने या बिगाड़ने में सरकारी नीतियाँ बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। इसलिए केंद्रीय वित्त मंत्री से हमारा निवेदन है कि वे सीमा शुल्क से होने वाले अल्पकालिक लाभ से बेअसर हो कर भारत के सर्राफा बाजार को पूर्ण रूप से विकसित करने की दिशा में ध्यान दें। (शेयर मंथन, 23 फरवरी, 2016)