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साल पूरा, पूँजी आधी?

राजीव रंजन झा

सेंसेक्स नाम का अभिमन्यु चक्रव्यूह के सातवें  दरवाजे को पार नहीं कर पायेगा, यानी लगातार सातवें साल बढ़त नहीं दिखा पायेगा, यह तो काफी पहले ही तय हो गया था। लेकिन कई सबक देने वाले इस साल के अंतिम दिन अगर नफा-नुकसान जोड़ें, तो मोटे तौर पर यही दिखता है कि बीते साल सेंसेक्स घट कर आधा रह गया।  लेकिन क्या निवेशकों के पैसे भी घट कर आधे रह गये? 

वास्तव में मंदी का बाजार भी लोगों को कमाने के काफी मौके देता है। लेकिन ये मौके केवल कारोबारियों के लिए होते हैं। एक निवेशक को तो ऐसे माहौल में अपनी पूँजी लगातार घटती ही नजर आती है। लेकिन अगर उनके लिहाज से भी देखें, तो एक अनुशासित निवेशक के लिए शायद नुकसान वैसा नहीं होगा, जैसा हमें सेंसेक्स की गिरावट से नजर आता है। 

अगर किसी निवेशक ने बीते साल की हर उठापटक के बीच भी नियमित निवेश करना जारी रखा होगा, तो उसका नुकसान सेंसेक्स में दिख रहे 50% से ज्यादा नुकसान जैसा नहीं, उससे काफी कम होगा। चलिये, सेंसेक्स को एक शेयर मान कर एक उदाहरण देखते हैं। यह मान कर चलते हैं कि किसी ने बीते साल हर महीने 1 सेंसेक्स खरीदा और खरीदने का स्तर उस महीने के दायरे में लगभग नीचे की ओर रहा। जैसे अगर जनवरी का दायरा 21,207-15,332 का था, तो उसका खरीद भाव 17,000 का रहा। वैसे ही अगर फरवरी का दायरा 18,895-16,458 का था, तो भी उसका खरीद भाव 17,000 का रहा। इस तरह हर महीने 1-1 सेंसेक्स खरीदने पर बीते 12 महीनों का औसत खरीद भाव 13,625 बनता। 

रिलायंस जैसे शेयर में अगर किसी ने इसी तरह की रणनीति अपना कर हर महीने लगभग 25,000 रुपये का निवेश किया होता, (आकलन के लिए हर महीने का बंद भाव ले लेते हैं) तो उसका औसत खरीद भाव करीब 1850-1900 रुपये के आसपास होता। यानी, उसका नुकसान केवल 33-34% का होता, जबकि जनवरी में बने 3,252 रुपये के शिखर से रिलायंस के मौजूदा भाव का नुकसान 61.6% का है। 

शायद एक आम निवेशक के पास इस तरह के नियमित निवेश से बेहतर विकल्प नहीं है। यह सवाल जरूर पूछा जा सकता है कि अगर निचले भाव आने की संभावना है, तो उनका इंतजार क्यों न किया जाये। लेकिन वह तो केवल एक संभावना ही है ना, सेंसेक्स महाराज ने आपसे वादा तो नहीं किया है! 

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