अमेरिकी शेयर बाजारों से एशियाई शेयर बाजारों के अलगाव की बहस बेशक जारी है, लेकिन साल 2008 में एशियाई बाजार भी अच्छी-खासी गिरावट के शिकार बने। चीन के शंघाई कंपोजिट का हाल सबसे बुरा रहा और इस दौरान इसमें 65.4% की भारी गिरावट आयी। जापान के निक्केई सूचकांक में इस साल के दौरान 42% से अधिक की गिरावट आयी, जबकि ताइवान के ताइवान वेटेड में 46% की कमजोरी रही।
एशिया के सबसे लिक्विड बाजार माने जाने वाले सिंगापुर और हांगकांग के बाजारों का भी बीते साल यही हाल रहा। स्ट्रेट्स टाइम्स सूचकांक में 49% से अधिक और हैंग सेंग में 48% से अधिक की गिरावट आयी। थाईलैंड के शेयर बाजार सूचकांक में 47.6% की कमजोरी दर्ज की गयी। जहाँ भारतीय शेयर बाजार के सेंसेक्स सूचकांक में 52.4% की कमजोरी रही, वहीं पाकिस्तान के शेयर बाजार सूचकांक में 58% से अधिक की गिरावट आयी। यदि विदेशी निवेशकों की बात करें, तो इस दौरान विदेशी निवेशकों ने कुल मिला कर करीब 60 अरब डॉलर की पूँजी एशियाई बाजारों से निकाल ली।
आम लोग खुश हैं कि जीएसटी कम होने से चीजें सस्ती होंगी। महँगाई दर घटने वाला सस्तापन नहीं, असल में आपको पहले से कम पैसे खर्च करके सामान मिलेंगे। और सस्ता होने वाले सामानों की सूची बहुत लंबी है, अमीर-गरीब सबको फायदा मिलने जा रहा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवाने में अब तक नाकाम रहने से झुँझलाये अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत पर अपने टैरिफ की तलवार घुमा दी है। वहीं भारत ने स्पष्ट कर रखा है कि वह अपनी संप्रभुता और आर्थिक हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देगा और किसी के दबाव में नहीं आयेगा।