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जारी है सत्यम का झूठ

राजीव रंजन झा

किसी किस्से में एक ठग आकर सबसे कहता है कि देखो, मैं बड़ा पापी था। मैं अब तक सबसे झूठ बोलता रहा और सबको ठगता रहा। लेकिन अब मेरी अंतरात्मा जाग गयी है। अब मैंने फैसला किया है कि अब मैं अपना सारा पाप सबको सच-सच बता दूँगा और कभी किसी से कोई झूठ नहीं बोलूँगा। क्या इस ठग की बातों पर यकीन किया जा सकता है?
इसके बाद उसी ठग के गिरोह के कुछ खास लोग आपके सामने आकर कहते हैं कि भाई इस ठग ने हमें भी धोखा दे रखा था। इसके गोरखधंधों के बारे में हमें कुछ भी नहीं मालूम था। लेकिन अब हम अपना काम बड़ी ईमानदारी से करेंगे। सत्यम के निवेशकों के सामने इस समय न केवल रामलिंग राजू के बयानों की असली सच्चाई समझने की चुनौती है, बल्कि यह उलझन भी है कि जो नया नेतृत्व सामने आया है उस पर वे कितना यकीन कर सकते हैं।

पहली बात, सत्यम के चेयरमैन पद से इस्तीफा देने वाली चिट्ठी में रामलिंग राजू ने लिखा कि अपनी अंतरात्मा पर काफी लंबे समय से वे एक बोझ लेकर चल रहे थे और इसलिए अब वे कंपनी की कुछ बातें अपने निदेशक बोर्ड के ध्यान में लाना चाहते हैं। यानी जो राजू एक दिन पहले तक किसी भी तरह से सत्यम में अपनी स्थिति बचाये रखना चाहते थे, उनकी अंतरात्मा अचानक जाग गयी और उसने उन्हें विवश कर दिया अपने गुनाहों का इकरारनामा लिखने के लिए! कहीं शंकर शर्मा को सुन रहा था और उन्हीं के शब्द दोहराने का मन करता है कि हमारे देश में लोग इतने धार्मिक नहीं हैं! तो फिर पहली बात, किन स्थितियों में राजू यह इकरारनामा लिखने पर मजबूर हो गये? दूसरी बात, इस पत्र में लिखी बातें भी कितनी सच हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि वास्तव में कंपनी की नकदी लगभग शून्य दिखाने का मकसद वास्तव में जाते-जाते कंपनी के पास पड़ी नकदी को हड़पने का एक अनोखा तरीका निकालना है?
जब तक यह साफ नहीं होगा कि किन स्थितियों में राजू ने अपना यह इकरारनामा लिखा, तब तक वास्तव में इस पत्र का मकसद भी रहस्य के घेरे में रहेगा। अब ऐसी खबरें आ रही हैं कि डीएसपी मेरिल लिंच के अधिकारी सेबी को सावधान करने के लिए एक दिन पहले ही सेबी के दफ्तर गये थे। कुछ खबरें बता रही हैं कि डीएसपी मेरिल लिंच ने राजू के इस्तीफे से कुछ पहले ही सेबी को कोई चिट्ठी सौंपी। इन खबरों में कितनी सच्चाई है, यह बात कहनी मुश्किल है। पहली नजर में यह मांग करने का जी करता है कि सेबी इस बात को साफ करे। लेकिन यह ऐसी ही बात हो सकती है कि पुलिस को अपने मुखबिर की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए कहा जाये। इसलिए शायद हमें इस बारे में कभी पुख्ता तौर पर पता नहीं चल पाये कि सेबी को डीएसपी मेरिल लिंच से कोई जानकारी दी गयी थी या नहीं, और अगर कोई जानकारी दी गयी थी तो वह क्या थी। लेकिन अगर यह बात सच है, तो इस्तीफा देने का फौरी कारण यह हो सकता है। लेकिन क्या राजू ने अपना भांडा फूटने से पहले खुद ही गुनाह कबूलने की समझदारी दिखायी, या फिर अब भी उन्होंने कोई खेल चला रखा है?
राजू कह रहे हैं कि कंपनी के बही-खातों में 5,361 करोड़ रुपये की जो नकदी दिखायी गयी है, उसमें से 5,040 करोड़ रुपये बढ़ा-चढ़ा कर दिखाये गये और ये वास्तव में कंपनी के पास हैं ही नहीं। उनका कहना है कि कंपनी का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन 24% दिखाया गया, लेकिन वास्तव में यह मार्जिन केवल 3% है। उनके मुताबिक सितंबर तिमाही (इस कारोबारी साल की दूसरी तिमाही) में उन्होंने अपना ऑपरेटिंग प्रॉफिट 2,112 करोड़ रुपये दिखाया, जबकि वास्तव में यह केवल 61 करोड़ रुपये था। अगर ऑपरेटिंग प्रॉफिट के स्तर पर स्थिति वास्तव में इतनी खराब थी, तो शुद्ध लाभ का सवाल ही कहाँ उठता है। फिर तो कंपनी को वास्तव में हर महीने घाटा होता रहा होगा। अगर वास्तव में यही कहानी थी, जो वे अब सुना रहे हैं, तो फिर दूसरी तिमाही में उन्होंने कंसोलिडेटेड स्तर पर 71.96 करोड़ रुपये के कर का भुगतान किस तरह किया?
अपने पत्र में राजू ने यह भी दावा किया है कि आँकड़ों में जो भी गड़बड़ी की गयी, वह केवल स्टैंडअलोन आँकड़ों तक सीमित थी और सहायक कंपनियों के आँकड़े उनके असली स्तरों पर ही दिखाये गये। अगर दूसरी तिमाही के स्टैंडअलोन आँकड़े भी देखें तो 68.43 करोड़ रुपये का कर भुगतान किया। पारंपरिक समझदारी बताती है कि जब कभी किसी कंपनी की आमदनी और मुनाफे के आँकड़ों पर संदेह हो, तो उसके कर भुगतान और डिविडेंड भुगतान के आँकड़ों को देखो। ऐसा इसलिए कहा जाता है कि कोई कंपनी अपनी आमदनी और मुनाफे के आंकड़ों को तो बढ़ा-चढ़ा कर दिखा सकती है, लेकिन कर भुगतान और डिविडेंड भुगतान के बारे में झूठ बोलना आसान नहीं है।
जब कंपनी के पास नकदी थी ही नहीं, तो यह सारा भुगतान कैसे किया गया? क्या कर्ज लेकर? क्या कर्ज लेकर कोई कंपनी सरकार के खाते में कर चुकाएगी, और वह भी ऐसी कंपनी जो सालों से अपने निवेशकों और अपने ही बोर्ड से झूठ बोलती रही हो? क्या यकीन किया जा सकता है इस बात पर?
अगर हम कंपनी के कर भुगतान और कुल आमदनी का अनुपात देखें, तो पिछली तिमाही के स्टैंडअलोन नतीजों में यह 2.46% का, और कंसोलिडेटेड नतीजों में 2.48% का है। इसी तरह कर भुगतान और पीबीडीटी का अनुपात स्टैंडअलोन नतीजों में 9.45% का और कंसोलिडेटेड नतीजों में करीब 10.8% का है। यानी कर भुगतान के मामले में कंपनी के कंसोलिडेटेड और स्टैंडअलोन आँकड़ों में कोई खास बड़ा अंतर नहीं दिखता है। जैसा मैंने पहले कहा, कर भुगतान के आँकड़े पर हमें इतना ध्यान इसीलिए देना चाहिए कि इस मामले में झूठ बोलना बड़ा मुश्किल है और इस बात की तुरंत जाँच भी हो सकती हैं कि वास्तव में उतना कर भुगतान किया गया था या नहीं।
दूसरी बात, अगर आप आईटी क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी टीसीएस से तुलना करें, तो सितंबर तिमाही के कंसोलिडेटेड नतीजों में टीसीएस के लिए कर भुगतान और कुल आमदनी का अनुपात 3.25% बनता है। इसी तरह टीसीएस का कर भुगतान और एबिटा का अनुपात करीब 14.5% बैठता है। यानी सत्यम का कर भुगतान अपने क्षेत्र की सबसे प्रमुख कंपनी के आसपास ही था। तो क्या राजू साहब यह बताना चाह रहे हैं कि कंपनी को घाटा होते रहने के बावजूद वे कागजों में मुनाफा दिखाने के लिए लगातार सरकारी खजाने में कर जमा कराते रहे?
अब बात करते हैं सत्यम की कमान संभालने वाले नये नेतृत्व की। अगर रामलिंग राजू कंपनी के खातों में गड़बड़ी करने, अपने निदेशक बोर्ड और अपने निवेशकों से गलतबयानी करने के दोषी हैं, तो फिर कैसे उन्हीं की सिफारिश वाले नाम को कंपनी की कमान सौंप दी गयी है? अंतरिम सीईओ बने राम मायनमपटि ने कल संवाददाताओं के हर सवाल पर यही जवाब दिया कि उन्हें स्थिति की जानकारी नहीं है। ताज्जुब है! कंपनी की आमदनी के मुख्य स्रोत, यानी अंतरराष्ट्रीय कारोबार को संभालने वाले प्रमुख व्यक्ति का यह जवाब कतई यकीन करने के काबिल नहीं है कि उन्हें आँकड़ों में हेराफेरी का कभी कोई अंदाजा नहीं लग सका। मेटास सौदों के बाद की स्थिति को सँभालने के लिए सत्यम ने अपना जो टास्कफोर्स बनाया, उसमें भी राम मायनमपटि प्रमुख भूमिका में थे। लेकिन इसके बाद भी न तो मायनमपटि को और न ही टास्कफोर्स के बाकी लोगों को संकट की कोई जानकारी थी!
अगर रामलिंग राजू का यह कहना सही है कि कई सालों से सत्यम की आमदनी को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जा रहा था, जबकि वास्तव में उतनी आमदनी नहीं हो रही थी, तो यह काम कंपनी के कुछ खास शीर्ष अधिकारियों की सक्रिय हिस्सेदारी के बिना संभव नहीं हो सकता था। और साथ ही यह काम प्राइसवाटरहाउस की सहमति और जानकारी के बिना भी नहीं हो सकता था, जो कंपनी की ऑडिटिंग कर रही थी। इस तरह की धोखाधड़ी एक गंभीर अपराध है।
लेकिन जिस तरह से लगातार कर भुगतान और डिविडेंड भुगतान करने वाली कंपनी के बारे में कहा जा रहा है कि उसके पास कोई नकदी नहीं बची है और न ही वास्तव में इतने सालों से वह इतनी कमाई करती रही है, उससे यह अंदेशा पैदा होता है कि कहीं कंपनी की जमा-पूँजी हड़पने के लिए यह भी कोई नाटक तो नहीं। हो सकता है कि मेटास अधिग्रहण का रास्ता विफल हो गया, तो कंपनी के पास पड़ी नकदी को हड़पने के लिए कोई नया षडयंत्र किया गया हो।
एक लंबे अरसे से यह कयास लगता रहा था कि रामलिंग राजू परिवार सत्यम में अपनी हिस्सेदारी बेच कर निकलना चाहता है। जब किसी रणनीतिक निवेशक को हिस्सेदारी बेचना संभव नहीं लगा तो शायद इस परिवार ने कंपनी में अपनी हिस्सेदारी धीरे-धीरे कम करनी शुरू कर दी। एक्सचेंजों को दी गयी अंतिम सूचना के मुताबिक राजू परिवार के नियंत्रण वाली एसआरएसआर होल्डिंग की हिस्सेदारी कंपनी में घट कर केवल 3.6% रह गयी थी, और इनमें से भी 1.73% हिस्सेदारी के बराबर शेयर गिरवी रखे हैं। यानी वास्तव में राजू परिवार की हिस्सेदारी 2% से भी कम रह गयी है। मार्च 2001 के अंत में प्रमोटरों की हिस्सेदारी 25.6% थी। यह घट कर मार्च 2002 में 22.26%, मार्च 2003 में 20.74%, मार्च 2004 में 17.35%, मार्च 2005 में 15.67%, मार्च 2006 में 14.02% और मार्च 2007 में 8.79% पर आ गयी थी। इस लगातार घटती हिस्सेदारी से साफ है कि राजू परिवार सत्यम से धीरे-धीरे बाहर निकलने की रणनीति पर काम कर रहा था।
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि भले ही अब राजू ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन केवल 3% रहने की बात कर रहे हों, लेकिन पहले भी सत्यम जो मार्जिन दिखाती रही थी, वह इस क्षेत्र की दूसरी दिग्गज कंपनियों से काफी कम रहता था। इसलिए अब यह संदेह करने का कारण बनता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि वास्तव में कंपनी तो अच्छा कमा रही थी, लेकिन वह कमाई कंपनी के खातों में नहीं आ रही थी, या फिर उस कमाई को खर्चों के रूप में बाहर निकाल दिया जा रहा था।
इसलिए यह बेहद जरूरी लगता है कि सरकार इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करे, कंपनी का प्रबंधन तुरंत ही मौजूदा अधिकारियों की टीम से छीन कर अपनी ओर से एक प्रशासक नियुक्त करे, जिससे पूरे मामले की सही तरीके से छानबीन हो सके। उसके बाद कंपनी के शेयरधारक नये प्रबंधन के बारे में फैसला करें।

 

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