
राजीव रंजन झा
चुनाव से पहले वोट-लुभावन घोषणाएँ करने का बड़ा मौका अगले हफ्ते आने वाला है – वोट ऑन एकाउंट या अंतरिम बजट के रूप में। संसद का यह सत्र पूरा होते ही चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकता है और उसके साथ ही लागू हो जायेगी आयोग की आचार संहिता। इसलिए स्वाभाविक है कि यूपीए गठबंधन इस मौके को अच्छी तरह इस्तेमाल करना चाहेगा और इसमें अधिक-से-अधिक वोट-लुभावन घोषणाएँ करने की कोशिश करेगा।
इसी बात को ध्यान में रख कर बाजार ने भी काफी उम्मीदें लगा ली हैं। कुछ रियायतें मिल जायें, कुछ खास क्षेत्रों के लिए नयी राहत योजनाएँ आ जायें, यह उम्मीदें लगायी जा रही हैं और इनको लेकर कयास लगाने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। लेकिन कुछ तो समय की नजाकत है और कुछ इस मौके की अपनी सीमाएँ हैं। इन दोनों बातों के मद्देनजर ये उम्मीदें कितनी पूरी होंगीं, इनका पता तो सदन में होने वाली घोषणाओं के साथ ही चलेगा।
अंतरिम बजट से पहले इसी शुक्रवार को अंतरिम रेल बजट पेश होना है। अब रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने अगर बीते 5 सालों में कभी यात्री किराया नहीं बढ़ाया, तो चुनाव से ठीक पहले बढ़ाने से तो रहे। वैसे भी अंतरिम रेल बजट की परिपाटी रही है कि किरायों और मालभाड़ों से छेड़छाड़ न की जाये। और इसी फरवरी से कुछ खास सामानों, जैसे अनाज और खाद के मालभाड़े में इजाफा किया जा चुका है। इसलिए कुछ छिटपुट सामानों के मालभाड़ों को इधर-उधर करने के अलावा किरायों और मालभाड़ों में कोई बड़ा बदलाव तो शायद नहीं ही होगा। कुछ नयी रेलगाड़ियों और नयी रेललाइनों के नाम जरूर आ सकते हैं, कुछ ऐसी योजनाओं का ऐलान हो सकता है जिनसे गरीब वर्गों को लगे कि हमारे लिए कुछ किया गया है।
अंतरिम बजट में कर प्रावधानों में बदलाव नहीं करने का चलन रहा है, हालाँकि खुद मंत्रियों की ओर से संकेत दिये जा रहे हैं कि सरकार पर ऐसा कोई बंधन नहीं है। जैसा कि चिदंबरम ने कहा है, 16 फरवरी तक इंतजार करें, सब कुछ संभव है! लेकिन असलियत देखें तो सरकार का खजाना इतना भरा-पूरा नहीं है कि वह ज्यादा रेवड़ियाँ बाँट सके। ऐसे में एक सकारात्मक माहौल बनाने के लिए कुछ छिटपुट घोषणाएँ भले ही कर दी जायें, इस अंतरिम बजट में अर्थव्यवस्था को सहारा देने वाली कोई बड़ी घोषणा हो सकेगी, इस बात पर संदेह है।