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हल्की उम्मीदें बजट से

राजीव रंजन झा

इस अंतरिम बजट से शेयर बाजार की उम्मीदें हाल के दिनों में घटती-बढ़ती रही हैं। पहले बाजार ने सोचा कि अंतरिम बजट है, इससे क्या उम्मीदें लगायें! फिर ध्यान में आया कि इसके ठीक बाद चुनाव होने हैं, इसलिए सरकार कुछ लॉलीपॉप बाँटने का लालच नहीं छोड़ पायेगी। इसलिए कुछ-न-कुछ फायदा तो मिलेगा ही। फिर उम्मीदें बढ़ने लगीं और धीरे-धीरे लोग उतनी ही दमदार उम्मीदें बाँधने लगे, जितनी उम्मीदें आम बजट से करते हैं।

मगर उसके बाद फिर ध्यान में आया कि खुद सरकार की झोली इस समय काफी खाली है और सरकारी खजाने का घाटा पहले ही बेहिसाब होता दिख रहा है। और ऐसे में अंतरिम बजट से दो महीने पहले वित्त मंत्री को दूसरी जिम्मेदारी सौंप दी गयी। पहले खुद प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह वित्त मंत्रालय संभालते रहे और अब प्रधानमंत्री की गैरहाजिरी में विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी को मंत्रालय अतिरिक्त ‘भार’ सौंप दिया गया। इस अतिरिक्त भार से वे कितना न्याय कर पायेंगे!
खैर, सरकार इस अंतरिम बजट में अपने मतदाताओं को, अर्थव्यवस्था को और बाजार को कितने तोहफे बाँटती है, अगले दो घंटों में इसका पता चल जायेगा। जहाँ तक मेरा अपना ख्याल है, सरकार इस अंतरिम बजट में ऐसा कुछ नहीं दे सकेगी जो बाजार के उत्साह को एकदम से बढ़ा दे। दरअसल ऐसी तमाम बातें चिदंबरम साहब ने अपने पिछले बजट में ही डाल दी थीं, और वही उनका चुनावी बजट था। यह तो बदलते राजनीतिक समीकरणों और फिर महँगाई का हौवा उछल जाने के चलते सरकार इस अंतरिम बजट तक खिंचती चली आयी, वरना सरकार ने अपनी ओर से पूरी तैयारी पहले ही कर ली थी।
अंतरिम बजट से जुड़ी उम्मीदों पर मीडिया में होने वाली चर्चाओं में इस बार एक खास बात मुझे दिखी। उद्योग जगत के तमाम प्रतिनिधियों ने भी बजट बाद या चुनाव बाद की स्थितियों का जिक्र करते समय यह विकल्प खुला रखा कि अगली सरकार यूपीए की भी बन सकती है या कोई और सरकार भी आ सकती है। यानी बाजार खुद को किसी भी राजनीतिक उठापटक के लिए मानसिक तौर पर तैयार कर रहा है।
खैर, आज अंतरिम बजट पर बाजार की प्रतिक्रिया को आँकते समय हमें बाजार की पृष्ठभूमि को भी ध्यान में रखना होगा। बाजार पहले ही अपने मौजूदा दायरे की ऊपरी सीमा पर है और अंतरराष्ट्रीय बाजार कमजोर हैं। इसलिए ज्यादा उम्मीदें ना ही लगायें तो अच्छा है।

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