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केयरएज रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री से जानें क्या जीएसटी सुधार और खाद्य कीमतों में गिरावट ने महंगाई को काबू में किया?

हाल ही में सीपीआई डेटा पर केयरएज रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने अपनी राय रखी है। 

 सीपीआई डेटा पर केयरएज रेटिंग्स का कहना है कि अक्टूबर महीने में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित महंगाई दर घटकर 0.3% पर आ गई है, जो हमारी उम्मीदों के अनुरूप है। यह गिरावट जीएसटी दरों में तर्कसंगत सुधार (GST rationalisation) और खाद्य और पेय पदार्थों की श्रेणी में जारी अपस्फीति (डिफ्लेशन) के कारण संभव हुई है। खाद्य वस्तुओं की टोकरी में अपस्फीति और गहराया है। सितंबर के 1.4% से घटकर यह अक्टूबर में 3.7% पर पहुंच गया। हालांकि, कीमती धातुओं में दो अंकों की तेज बढ़ोतरी ने कोर सीपआई (core CPI) को अक्टूबर में 4.4% तक पहुंचा दिया। अगर हम कीमती धातुओं को छोड़ दें, तो कोर सीपीआई केवल 2.5% पर बनी रही, जो काफी संतुलित स्तर है।

आगे की बात करें तो खाद्य महंगाई (food inflation) आने वाले महीनों में मध्यम स्तर पर बनी रहेगी। कृषि गतिविधियां बेहतर हैं और पिछले वर्ष के मुकाबले आधार प्रभाव भी सकारात्मक है। साथ ही, पर्याप्त जलाशय स्तर (Reservoir level) और मजबूत खरीफ बुवाई से खाद्य कीमतों में स्थिरता की उम्मीद है। हालांकि, कुछ जोखिम भी बने हुए है। जैसे मानसून की देरी से वापसी और कुछ इलाकों में भारी बारिश से फसलों को नुकसान हुआ। इसके अलावा, खाने के तेलों की श्रेणी में दो अंकों की महंगाई अभी भी चिंता का विषय है। खासकर तब जब वैश्विक वनस्पति तेल की कीमतें ऊँची बनी हुई हैं।

वैश्विक परिदृश्य में, कमजोर वैश्विक वृद्धि, चीन में अतिरिक्त उत्पादन क्षमता और ओपेक (OPEC) ने कच्चे तेल के उत्पादन में बढ़ोतरी के कारण अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी कीमतें सामान्य रहने की उम्मीद है। सितंबर के अंत में जीएसटी दरों में किए गए सुधार का सकारात्मक असर अक्टूबर की महंगाई दर में साफ दिखाई दिया। आने वाले समय में, हम उम्मीद कर रहे हैं कि तीसरी तिमाही (Q3 FY26) में औसत महंगाई लगभग 0.9% पर रहेगी, जबकि चौथी तिमाही (Q4 FY26) में यह बढ़कर करीब 3.1% तक जा सकती है। पूरे वित्त वर्ष 2025-26 के लिए औसत महंगाई के 2.1% के आसपास रहने की संभावना है।

मौद्रिक नीति के दृष्टिकोण से देखें तो घटती महंगाई दर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को आर्थिक वृद्धि पर अधिक ध्यान केंद्रित करने का अवसर दे सकती है। बाहरी चुनौतियों और अमेरिका के साथ व्यापार वार्ताओं से जुड़ी अनिश्चितताओं के बीच, अगर वित्त वर्ष की दूसरी छमाही (H2 FY26) में आर्थिक वृद्धि कमजोर होती है, तो हाल की महंगाई दरें आरबीआई को ब्याज दरों में कटौती करने की गुंजाइश दे सकती हैं।

 

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