राजीव रंजन झा
निर्मला सीतारमण की ओर से प्रस्तुत पाँचवें बजट ने शेयर बाजार को प्रसन्न ही किया है, और ऐसी कोई बड़ी बात इसमें नहीं है जिससे बाजार असहज हो।
बजट पेश होने से पहले बाजार में एक बड़ी चिंता थी कि कहीं पूँजीगत लाभ कर (कैपिटल गेन टैक्स) के नियमों में कोई ऐसा परिवर्तन न हो जाये, जिससे शेयर बाजार के निवेशकों पर नया कर बोझ आ जाये। ऐसा कुछ नहीं हुआ, तो इससे बाजार ने बड़ी राहत महसूस की है।
साथ में अंदेशा था कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अंतिम पूर्ण बजट होने के चलते कहीं मोदी सरकार एकदम लोक-लुभावन बजट पेश करने की तरफ न चली जाये। हालाँकि यह अंदेशा मोदी सरकार के नौ वर्षों के कार्यकाल में आये तमाम बजटों को देखते हुए होना नहीं चाहिए था, पर बाजार का यह स्वभाव है कि यदि कोई खतरा संभव लगता है तो उस खतरे के प्रति सजग रहे। इसलिए यह बातें हो रही थीं, पर जब एकदम चुनावी नजरिये से पेश किया हुआ, रेवड़ियाँ बाँटने वाला बजट नहीं आया तो शेयर बाजार को इससे भी बड़ी राहत मिली।
विकास के मोदी मॉडल में आधारभूत ढाँचा (इन्फ्रास्ट्रक्चर) की केंद्रीय भूमिका रहती है। जब गुजरात मॉडल चर्चा में आया था, तो उस समय भी लोग यही बातें करते थे कि गुजरात में सड़कें कितनी अच्छी हो गयी हैं। प्रधानमंत्री मोदी जानते हैं कि जब सड़कें बनती हैं, अच्छी होती हैं, तो सबको दिखती हैं और वोट भी खींचती हैं। पर सड़कों पर जोर देने का उद्देश्य इतना सीमित नहीं है। पुरानी मान्यता है कि जब सड़कें बनती हैं तो वे समृद्धि लाने का रास्ता भी खोलती हैं। इसमें रेलवे और बंदरगाह और लॉजिस्टिक्स आदि को भी जोड़ कर देखना चाहिए। मोदी सरकार लगातार उसी दिशा में काम करती रही है।
इसीलिए इस बजट में भी आधारभूत ढाँचे के तेज विकास के लिए पूँजीगत आवंटन (कैपिटल एलोकेशन) सीधे 33% बढ़ा कर 10 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। केवल चार साल पहले से ही तुलना करें तो इन चार वर्षों में पूँजीगत आवंटन को साल-दर-साल तेजी से बढ़ाते हुए तिगुना कर दिया गया है। इस बजट में रेलवे के लिए 2.40 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। मोदी सरकार के आरंभिक वर्षों में रेलवे के नेटवर्क का काफी तेजी से विस्तार किया गया था, जो बीच में कहीं धीमा पड़ा। अब लगता है कि रेलवे की आधारभूत संरचना पर फिर से तेजी से काम करने का इरादा बना है।
मोदी सरकार ने आधारभूत संरचना के लिए 100 लाख करोड़ रुपये के खर्च की महत्वाकांक्षी योजना पहले से ही घोषित कर रखी है। यह बजट दर्शाता है कि सरकार उस दिशा में सही में गंभीर है, उसके लिए संसाधन खर्च करने जा रही है और परिणाम लाकर दिखाने को कटिबद्ध है। गति-शक्ति योजना पर जोरों से काम चल रहा है। इस बजट में भी कहा गया है कि परिवहन संबंधी आधारभूत संरचना और लॉजिस्टिक्स तैयार करने के लिए 100 महत्वपूर्ण परियोजनाएँ चलायी जायेंगी, जिन पर 75,000 करोड़ रुपये का खर्च होगा। 50 नये हवाई-अड्डे, हेलीपैड और वाटर एयरोड्रॉम बनाये जाने हैं।
समावेशी वृद्धि (इन्क्लूसिव ग्रोथ) को एक नारे के रूप में यूपीए सरकार ने चलाया था। पर यूपीए शासन में यदि कोई वृद्धि दिखी तो भ्रष्टाचार में दिखी और समावेशी वृद्धि के बदले पक्षपाती पूँजीवाद (क्रोनी कैपिटलिज्म) ही छाया रहा। एनडीए-2 या मोदी सरकार ने आरंभ में विकास को अपना मुख्य नारा बनाया और उस दिशा में काम करके दिखाया। वादों को पूरा करना और लक्ष्यों को हासिल करना, परियोजनाओं का केवल शिलान्यास नहीं बल्कि उसे पूरा करके उद्घाटन भी करना – यह मोदी सरकार के काम करने का तरीका बना। पर मोदी सरकार के विकास में "सबका" शब्द जुड़ा हुआ रहा।
मोदी सरकार की ओर से रखे गये तमाम बजटों में शायद ही कोई ऐसा बजट हो, जिसके केंद्र में गाँव, गरीब और किसान नहीं रहे। राजनीतिक आरोप लगता रहा कि मोदी सरकार पूँजीपतियों की हितैषी है, पर वास्तव में मोदी सरकार ने जनकल्याण की ऐसी तमाम योजनाएँ लागू की, जिन्हें एक तरह से समाजवादी सोच की योजनाओं के रूप में देखा जा सकता है। हालाँकि समाजवाद की माला जपने वाले लोगों ने (कांग्रेस सहित) ऐसी योजनाओं को कभी जमीन पर उतारने और लोगों को उनका सच्चा लाभ दिलाने का काम नहीं किया। मोदी सरकार ने जो योजनाएँ बनायीं, उनमें परिणाम लाकर दिखाया। इसी "सबका विकास" को अब समावेशी विकास (इन्क्लूसिव डेवलपमेंट) के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
मगर इस समावेशी विकास में जनकल्याण और रेवड़ियाँ बाँटने के बीच एक बारीक रेखा खींची हुई है, जिसे देख पाने में अक्सर लोगों को भ्रम भी होता है। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार प्रयास किया है इस बारीक रेखा के बारे में बताने का, पर इन दिनों जब सब कुछ दलगत राजनीति के चश्मे से देखा जाता हो तो बारीक रेखाओं को न देख पाना अस्वाभाविक भी नहीं है। गरीबों के लिए आयुष्मान योजना के रूप में मुफ्त स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराना या कोरोना के संकट काल में 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त अनाज बाँटना इस बारीक रेखा के अंदर आ जाता है, पर मुफ्त बिजली देना या कर्जमाफी करना उसके दायरे से बाहर चला जाता है।
इस बजट में भी गरीबों के लिए बहुत कुछ है, युवाओं के रोजगार के लिए बहुत कुछ है, मध्यम वर्ग का भी ध्यान रख लिया गया है, पर कोई यह नहीं कह सकता कि चुनावी रेवड़ियाँ बाँटी गयी हैं। और यह सब करते हुए विकास के पथ पर देश की अर्थव्यवस्था को गति देने का लक्ष्य भी बखूबी साधा गया है। विकास का यह मॉडल शेयर बाजार को भी पसंद है। - Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 2 फरवरी 2023)
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