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मार्च के बाद कुछ गिरावट आने की आशंका : गुल टेकचंदानी

मेरा अनुमान है कि निफ्टी जून 2013 में 5600-5700 पर होगा और दिसंबर 2013 में यह वापस 6000 के आसपास लौट सकता है।
अभी बाजार में एक गिरावट (करेक्शन) बाकी है, वह जब भी आये। निफ्टी 6200-6300 के आसपास ही साल के दौरान शिखर बना सकता है। निफ्टी 6200-6300 तक जाने के बाद एक नरमी आनी तो स्वाभाविक है। हालाँकि इसके बाद जब यह फिर से 6300 के ऊपर निकलेगा तो 7000 तक जाने की उम्मीद रहेगी। 
सेंसेक्स की प्रति शेयर आय (ईपीएस) 2012-13 में 1250 रुपये के आसपास रह सकती है। वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर (जीडीपी वृद्धि) 2012-13 में 6% के आसपास रह सकती है। इसके अगले साल अगर किस्मत अच्छी रही तो 6.6-6.7% की विकास दर मिल सकती है। अगर परियोजनाएँ ठीक से चलें और डीजल की कीमतों को नियंत्रण-मुक्त किया जाये तो 7% विकास दर भी हो सकती है। इस समय सबसे बड़ी चिंताओं में कच्चा तेल, सरकारी आयात, नीतिगत फैसले यानी राजनीति वगैरह को गिन सकते हैं। मुझे अब अमेरिका के बारे में उतनी चिंता नहीं है। यूरोप भी अब स्थिर हो रहा है। 
अभी सोने के आयात पर काफी हल्ला मचा है, लेकिन वह ऐसी बड़ी समस्या नहीं है क्योंकि उसमें कुछ कमी आयी है। हमारी सबसे बड़ी समस्या सामानों का और तेल का आयात है। साथ ही सरकारी बांड वगैरह में किये गये निवेश के वापस भुगतान का भी दबाव है। अगर विदेशियों ने सरकारी बांडों में निवेश कर रखा है तो वे उसका ब्याज तो लेंगे ही ना। उससे भी चालू खाते घाटे (सीएडी) पर दबाव पड़ता है। साथ ही सरकारी सब्सिडी भी एक बड़ी चिंता है। जब तक सब्सिडी को तार्किक नहीं बनाया जाता, तब तक सरकारी घाटे (फिस्कल डेफिसिट) पर नियंत्रण पाना मुश्किल होगा। अगर सरकारी घाटा नियंत्रण में नहीं आया तो चालू खाते के घाटे पर भी नियंत्रण की बात भूल जायें। 
भारतीय शेयर बाजार के लिए अभी सकारात्मक पहलू यह है कि अमेरिका में फिस्कल क्लिफ का समाधान हो गया है और काफी नकदी भारतीय बाजार में आ रही है। साथ ही सरकार ने भी कई नीतिगत मसलों पर कदम उठाये हैं। रबी की फसल अच्छी होने की उम्मीद है। इसलिए ऐसी कोई खराबी नहीं दिखती। दरअसल सरकार को काम करना होगा। वे दो साल से सो रहे थे। 
बीते साल में भारतीय बाजार वैश्विक बाजारों से तेज चला है, इसलिए 2013 में यह कुछ धीमा चल सकता है। मार्च 2013 के बाद मैं बाजार को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं हूँ। बजट के बाद चीजें काफी अलग हो सकती हैं। ऐसा भी नहीं है कि अमेरिका में पूरी तरह स्थिरता आ गयी है। अगर वे खर्चों में कटौती करते हैं तो उनकी अर्थव्यवस्था में धीमापन आयेगा। दूसरी ओर हमारे देश में चुनावी गहमागहमी शुरू हो जायेगी। ब्याज दरों से प्रभावित होने वाले क्षेत्र अगले 12 महीनों में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, जैसे कि बैंक, बुनियादी ढाँचा, बिजली और ऑटो। साथ ही खपत पर आधारित कहानी (कंजंप्शन स्टोरी) तो भारत में ताउम्र चलनी है। आज अमेरिका और यूरोप में होने वाली खपत 23,000 अरब डॉलर की है। अगले 10 सालों में एशिया की खपत 21,000 अरब डॉलर की होगी। 
जब निफ्टी कुछ गिर कर 5600-5700 तक आयेगा तो वही शेयर गिरेंगे, जो पहले चढ़े हैं। जैसे ब्याज दरों में कटौती होने से पहले तक बैंक शेयर चढ़ेंगे। बाद में बजट के बाद या मार्च के बाद जब हकीकत सामने आयेगी कि दरों में कटौती से आमदनी नहीं सुधरी है तो उत्साह टूटेगा। गुल टेकचंदानी, निवेश सलाहकार (Gul Teckchandani, Investment Advisor) 
(शेयर मंथन, 05 जनवरी 2013)

 

Comments 

vishal
0 # vishal -0001-11-30 05:21
hume aase kush jankari chahiye
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