2017-2018 के दौरान भारत की बेरोजगारी दर 45 साल के उच्च स्तर पर पहुँच गई, बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार ने गुरुवार को एक सरकारी सर्वेक्षण के हवाले से बताया कि लोकसभा चुनावों में कुछ समय ही बचे हैं, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह एक बड़ा झटका है।
बिजनेस स्टैंडर्ड ने बताया कि जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस द्वारा किए गए आकलन में बेरोजगारी की दर 6.1% रही, जो 1972-73 के बाद सबसे उच्चतम स्तर पर थी।
कार्यवाहक अध्यक्ष और निकाय के एक अन्य सदस्य के इस्तीफे के बाद सर्वेक्षण एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है।
सरकार द्वारा वित्त पोषित राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के प्रमुख पी.सी. मोहनन ने बुधवार को कहा कि वह और उनके सहकर्मी जे मीनाक्षी नौकरियों के डेटा के गैर-प्रकाशन से नाखुश थे, जो दिसंबर में जारी होना था, उसे जीडीपी डेटा पर अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा कथित हस्तक्षेप के कारण जारी करने में देरी की गयी।
बिजनेस स्टैंडर्ड ने कहा कि रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रामीण इलाकों में 5.3% की तुलना में शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी 7.8% रही।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह आँकड़ा महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह देश के रोजगार की स्थिति का पहला व्यापक आकलन है, जो नवंबर 2016 में मोदी के फैसले के बाद देश के अधिकांश बैंक नोटों को रातोंरात प्रचलन से हटाने के लिए किया गया था।
भारत की अर्थव्यवस्था में सालाना 7% का विस्तार हुआ है - प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज़ गति - लेकिन असमान वृद्धि का मतलब है कि प्रत्येक वर्ष लाखों युवा भारतीयों के कार्यबल में प्रवेश करने के लिए पर्याप्त नौकरियां पैदा नहीं हुयी हैं। इस रिपोर्ट से मोदी सरकार पर दबाव बनाया है, क्योंकि आगामी आम चुनावों के बाद वह फिर से सत्ता में आना चाहते हैं।
इस महीने की शुरुआत में, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी, एक प्रमुख स्वतंत्र थिंक-टैंक, ने कहा था कि देश ने पिछले साल 1.1 करोड़ नौकरियां खो दिया। (शेयर मंथन, 31 जनवरी 2019)