शेयर मंथन में खोजें

भारत नहीं होगा आरसीईपी (RCEP) में शामिल, ये हैं वजह

भारत ने 16 देशों वाले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership) या आरसीईपी व्यापार समझौते में शामिल नहीं होने का निर्णय लिया है।

भारत ने चीन के प्रभाव सहित अपनी अन्य चिंताओं और हितों के मद्देनजर आरसीईपी में नहीं जुड़ने का फैसला लिया। आरसीईपी एक मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) है, जिसके सदस्य देशों को एक-दूसरे के साथ सरल व्यापार करने की सुविधा मिलती। 16 देशों के बीच यह समझौता होने पर दुनिया का सबसे बड़ा कारोबारी ब्लॉक वजूद में आता, जिनमें दुनिया की लगभग आधी आबादी रहती है। इन 16 देशों की कुल जीडीपी विश्व की 25% है, जबकि वैश्विक कारोबार में इन देशों की भागीदारी 30% है।
समझौते के तहत समूह के सदस्य देशों को आयात और निर्यात पर शून्य या बेहद कम टैक्स देना होता। मगर जानकार मानते हैं कि यह भारत के हित में नहीं था, क्योंकि आरसीईपी में शामिल होने से भारत को चीन से आयात होने वाले उत्पादों पर 80% तक शुल्क घटाना होता। वहीं ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के उत्पादों पर 86% तथा आसियान (10 दक्षिण एशियाई देशों का अंतर-सरकारी संगठन, जिसमें ब्रूनेई, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, मयनमार, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं), जापान तथा दक्षिण कोरियाई उत्पादों पर 90% तक शुल्क घटाना पड़ता। वहीं अमेरिका से चल रहे व्यापार विवाद के कारण चीन इस करार को जल्द से जल्द लागू करवाना चाहता है।
बता दें कि भारतीय उद्योग समूहों ने आरसीईपी में चीन की मौजूदगी के कारण चिंता जतायी थी। साथ ही उन्होंने डेयरी, धातु, इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायन समेत कई अन्य क्षेत्रों में आयात शुल्क में कटौती न करने की अपील भी की थी। क्योंकि इन क्षेत्रों में आयात शुल्क कम होने का स्थानीय उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता था। इसके अलावा आरसीआईपी में जो देश हैं, भारत का व्यापार उनके साथ लाभदायक नहीं रहा है। इन देशों के साथ भारत का पिछले एक साल वित्तीय घाटा करीब 104 अरब डॉलर का रहा। (शेयर मंथन, 05 नवंबर 2019)

कंपनियों की सुर्खियाँ

निवेश मंथन पत्रिका

देश मंथन के आलेख