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आरबीआई (RBI) ने आखिर कुछ तो राहत दी ब्याज दरें घटा कर

राजीव रंजन झा : कल भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अर्थव्यवस्था की स्थिति पर अपनी जो रिपोर्ट जारी की थी, उसे देख कर बाजार कुछ अंदेशे में पड़ गया था। लेकिन गनीमत रही कि आरबीआई ने आखिरकार नौ महीनों बाद ब्याज दरों में कटौती का फैसला कर लिया।

इसने अपनी रेपो दर (Repo Rate) को 0.25% घटा कर 7.75% कर दिया। आरबीआई ने इससे पहले अप्रैल 2011 की नीतिगत समीक्षा में ब्याज दरों में कटौती की थी। तब इसने सबको चौंकाते हुए एक साथ 0.50% अंक की कटौती कर दी थी। लेकिन इसके बाद आरबीआई ने एकदम से सख्त रवैया अपना कर ब्याज दरों को स्थिर बनाये रखा।
इस बार आरबीआई ने रेपो दर के साथ-साथ नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में भी 0.25% की कमी की है, जिससे सीआरआर अब 4% पर आ गया है। यह दिलचस्प है कि आरबीआई जहाँ रेपो दर घटाने के बारे में काफी संकोच बरतता रहा है, वहीं सीआरआर के मामले में यह हाल में उदार रहा है। इसी कारण सीआरआर 1974 के बाद से अब तक के सबसे निचले स्तर पर है। सीआरआर घटाने से बैंकों के पास कुछ अतिरिक्त नकदी आ जाती है, जो वे अपने ग्राहकों को कर्ज देने में इस्तेमाल कर सकते हैं। दरअसल सीआरआर उनकी जमाराशि का वह प्रतिशत है, जो उन्हें अनिवार्य रूप से आरबीआई के पास जमा करके रखना पड़ता है। इस पर उन्हें कोई ब्याज भी नहीं मिलता।
इस नीतिगत समीक्षा में रेपो दर घटाने के मामले में आरबीआई ने बाजार के बहुमत का सम्मान किया है। ज्यादातर लोगों को 0.25% कमी की ही संभावना दिख रही थी। दरअसल आरबीआई ने हाल में भी जो टिप्पणियाँ की थीं, उन्हें देखते हुए 0.50% कमी की बात करना हद से ज्यादा उम्मीद रखने जैसा था। दूसरी ओर अगर चौतरफा माँग और सरकार के प्रत्यक्ष आग्रह के बावजूद अगर आरबीआई इस बात भी रेपो दर में कोई कमी नहीं करता तो इससे बाजार में काफी निराशा फैलती। आरबीआई ने बीच का रास्ता ही चुना।
लेकिन सीआरआर में कटौती बाजार के लिए एक सुखद आश्चर्य की तरह आयी है। बेशक लोग इसकी भी चर्चा कर रहे थे, लेकिन वह चर्चा उम्मीद के रूप में कम और माँग के रूप में ज्यादा थी। लिहाजा इस नीतिगत समीक्षा का परिणाम बाजार के लिए उम्मीद से कुछ बेहतर माना जा सकता है।
लेकिन क्या इसे दरों में कटौती के सिलसिले की शुरुआत माना जाये? यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी। गवर्नर डी सुब्बाराव की चिंताएँ बरकरार हैं। न केवल घरेलू मोर्चे पर, बल्कि अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को लेकर भी। महँगाई दर अब भी उनके लिए सहज दायरे से ऊपर ही है। ऐसे में अगर इस कटौती के बाद वे फिर कई महीनों के लिए चुप्पी साध लें तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा, जैसा पहले उन्होंने अप्रैल 2011 के बाद नौ महीनों तक किया। उद्योग जगत माँग कर रहा है कि यहाँ से अभी रेपो दर में 0.75% से 1% तक की और भी कटौती होनी चाहिए। दीपक पारिख तो कह रहे हैं कि इस साल 1.50% की कमी जरूरी है। लेकिन इन उम्मीदों पर आरबीआई की चिंताएँ भारी हैं। आप भले ही कहते रहें कि आरबीआई के संकोची बर्ताव का अब तक कोई खास सकारात्मक असर न तो महँगाई पर, और न ही किसी दूसरे मोर्चे पर दिखा है। लेकिन आरबीआई अर्थव्यवस्था के बारे में हमसे-आपसे ज्यादा जानता है, इसलिए जितना मिल जाये, उतने पर खुश रहना बेहतर है। खुश रहने से सकारात्मक ऊर्जा बनती है, जिसकी अभी भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत जरूरत है। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 29 जनवरी 2013)

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