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संतुलित बजट (Budget) और आरबीआई (RBI) के कदम से बदली बाजार की चाल

Ajay Baggaअजय बग्गा, बाजार विश्लेषक

यह बजट (Budget) संतुलित रहा और अच्छी बात यह रही कि इसमें सरकारी घाटा (Fiscal Deficit) को जीडीपी (GDP) के 3.5% पर लाने की बात कही गयी है।

सरकार के बही-खाते को सही ढंग से सँभाला गया है। बुनियादी ढाँचे और गाँवों पर विशेष ध्यान दिया गया है। बजट पेश होने के बाद पीएसयू बैंकों को लेकर थोड़ा झटका लगा, और उसी वजह से बाजार गिरा, मगर उसके बाद की गतिविधि काफी तेज रही है और सरकार ने इस पर अच्छी बातें कही हैं।

तेजी के मुख्य कारण
कुल मिला कर दूसरी नजर में देखने के बाद बजट काफी संतुलित लग रहा है। बजट पेश होने के समय मायूसी दिखने और बाद में बाजार में काफी अच्छी तेजी आने के कई कारण हैं। एक तो सरकार ने घाटा 3.5% पर लाने की प्रतिबद्धता दिखायी, जिसको बाजार ने सराहा है। दूसरे, सरकार ने बजट में पीएसयू बैंकों के लिए 25,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। इसके अलावा रिजर्व बैंक (RBI) ने रियल एस्टेट, विदेशी मुद्रा और विलंबित कर (डेफर्ड टैक्स) जैसी संपत्तियों का पुनर्मूल्यांकन करके उसका एक भाग अपनी टियर-1 पूँजी के रूप में दिखाने की अनुमति दी है, जिससे पीएसयू बैंकों को 35,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त पूँजी मिल जायेगी। इससे बाजार को लगा कि अब बैंकों के लिए दिक्कत नहीं है। इसी की वजह से बुधवार 2 मार्च को पीएसयू बैंक सूचकांक में काफी जोरदार उछाल आ गयी।
तीसरी बात यह थी कि बाजार में पहले से ही हद से ज्यादा बिकवाली हो चुकी थी। बाजार में नाउम्मीदी का एक दौर था। उसमें मंदड़िये (शॉर्ट) जाल में फँस गये, क्योंकि वैश्विक बाजारों में भी एक तेजी आ गयी। हम केवल बजट को ही बाजार में आयी उछाल का श्रेय नहीं देंगे।
इसके अलावा बाजार में उम्मीद जगी है कि सरकार ने घाटा 3.5% पर रखा है तो रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी अब ब्याज दरों में कटौती करेगा। अप्रैल की मौद्रिक नीति से पहले या उस नीति के आने तक आरबीआई की ब्याज दरों में 0.25% अंक की कमी होने की आशा की जा रही है। ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद से सब कुछ बढ़ा है। हालाँकि जब दरों में वास्तव में कटौती होगी, उस समय संभवतः हम बाजार में बिकवाली आती हुई देख सकते हैं। अभी इस उम्मीद के आधार पर खरीदारी की जा रही है। वहीं जो बिकवाल थे, उनके बिकवाली सौदे कट गये जबकि काफी खरीदारी सौदे वाले आ गये। बाजार काफी गिर भी चुका था, इसलिए लोगों में यह धारणा बनी कि अभी दो तिमाहियों तक गड़बड़ है, पर माहौल थोड़ा ठीक-ठाक होते हुए दिख रहा है।
चौथी बात यह हुई कि वैश्विक बाजार भी सँभल गये। अमेरिकी और यूरोपीय बाजारों ने अच्छा प्रदर्शन किया। उसकी वजह से कुछ हल्की नकारात्मक बातें, जैसे चीन और जापान के पीएमआई के आँकड़े कमजोर रहने को बाजार ने नजरअंदाज कर दिया। वैश्विक बाजारों में उत्साह की एक धारणा बन गयी। वैश्विक बाजारों में पिछले दो महीनों में काफी बिकवाली हो गयी, जिसके बाद अब बाजार खुद को सँभाल रहा है।

छोटी अवधि में सकारात्मक हुई चाल
भारतीय बाजार की दिशा अभी तो सकारात्मक दिखने लगी है। हद से ज्यादा बिकवाली हो चुकी थी, और देखें तो बाजार इतना भी कुछ ज्यादा नहीं बढ़ा है। पिछले मार्च में अगर 9,000 का स्तर था, जबकि इस मार्च में आप 7,300 के पास बैठे हैं और नीचे से उछाल आने का उल्लास मना रहे हैं। इससे आप देख सकते हैं कि किस हद तक बाजार की धारणा कमजोर हो चली थी। यहाँ से बहुत छोटी अवधि में लग रहा है कि बिकवाली सौदे कटने (शॉर्ट कवरिंग) से बाजार बढ़ना चाहिए।

बड़ा रुझान वैश्विक बाजारों और एफआईआई पर निर्भर
पर बाजार का बड़ा रुझान तय करना मुश्किल है। यह काफी हद तक निर्भर करेगा वैश्विक रुझान पर। खास कर अमेरिकी बाजार और अमेरिकी अर्थव्यवस्था कैसी रहती है, इस पर काफी कुछ निर्भर है। घरेलू बातें ज्यादा हावी नहीं होने वाली हैं। पर बाजार की दिशा का संबंध विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की खरीद-बिक्री से है। बजट के अगले दिन कल मंगलवार को उनकी बड़ी खरीदारी आयी तो आपने देखा कि बाजार किस तरह से बढ़ गया। वहीं पिछले चार महीनों से एफआईआई की बिकवाली चल रही थी, जो बाजार को नीचे ले जा रही थी। इसलिए कुल मिला कर एफआईआई निवेश और वैश्विक बाजारों की धारणा पर निर्भरता रहेगी। यहाँ सरकार अपना काम कर रही है, पर ज्यादा कुछ उनके हाथों में नहीं है और ज्यादा उम्मीद भी नहीं है।

जीएसटी अब 2020 तक ही
आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने कह ही दिया है कि जीएसटी शायद 2017-18 में लागू हो पायेगा। पर मुझे लगता है कि जीएसटी उस समय भी लागू नहीं होगा। अब अगली सरकार ही जीएसटी लायेगी। कारण यह है कि जब जीएसटी लाया जायेगा, उसके दो साल तक काफी गड़बड़ होगी। उसको लागू करने और सीखने में बहुत हलचल मचने वाली है। इसलिए कह सकते हैं कि अभी तो जीएसटी गया, अब वह 2020 में आयेगा। जो नयी सरकार आयेगी, वही इसे लागू करेगी। (शेयर मंथन, 03 मार्च 2016)

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