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रुझान सही पर, सौदा गलत क्यों हो जाता है आपका

राजीव रंजन झा : पिछले हफ्ते लखनऊ में हुए निवेशक दरबार में एक सहभागी का सवाल ऐसा था, जो शायद बाजार में ज्यादातर निवेशकों और खास कर कारोबारियों को परेशान करता होगा।

उनका सवाल यह था कि अक्सर किसी सौदे में शेयर भाव लक्ष्य से पहले ही क्यों पलट जाता है? निश्चित रूप से उनके इस सवाल से देश के लाखों कारोबारियों की सहानुभूति होगी! एक कारोबारी को सबसे ज्यादा अफसोस दो मौकों पर होता है। एक तो उस समय, जब कोई शेयर घाटा काटने का स्तर (स्टॉप लॉस) छूने के बाद वापस उसी ओर चल पड़ता है, जिस तरफ जाने का अनुमान उस कारोबारी ने सौदा करते समय लगाया था। आपने बढ़त की उम्मीद में एक शेयर खरीदा, लेकिन वह शेयर ऊपरी लक्ष्य की ओर बढ़ने के बदले नीचे आने लगा। उसने घाटा काटने का स्तर छुआ और उसके बाद वापस ऊपर चढ़ गया। सचमुच, ऐसी स्थिति एक कारोबारी को मानसिक रूप से काफी परेशान कर सकती है। दूसरे, उन्हें सबसे ज्यादा कोफ्त तब होती है, जब शेयर उनकी सोची दिशा में ही आगे बढ़ता है, लेकिन तय लक्ष्य तक जाने से पहले ही वापस पलट जाता है। उन्हें कुछ समय पहले तक जितना फायदा दिख रहा होता है, वह सारा धुल जाता है या शायद कुछ नुकसान भी हाथ लगता है।
आपने किसी शेयर की चाल समझ तो ली, लेकिन अपने सौदे में उसका फायदा नहीं ले पाये! गड़बड़ कहाँ हो जाती है? पहले उदाहरण में शायद घाटा काटने का स्तर ठीक जगह पर नहीं लगा था। दूसरे उदाहरण में शायद लक्ष्य सटीक नहीं था। आपने चाल तो ठीक पड़ी, लेकिन उस चाल में कितना दम है इसका ठीक अंदाजा नहीं लग सका।
कभी-कभी हो सकता है कि आपकी रणनीति में कोई गड़बड़ न हो, लेकिन आपके सौदे के बाद स्थितियाँ कुछ बदल जायें। आखिर यह बेहद गतिशील बाजार है और हर पल कुछ नया करता रहता है। हम केवल कयास लगा सकते हैं, इसमें कुछ पक्का नहीं है। बाजार की स्थितियाँ बदल जाने के बारे में आप कुछ नहीं कर सकते, सिवाय चौकन्ना रह कर समय रहते अपनी रणनीति बदल लेने के। लेकिन बाकी गड़बड़ियों को ठीक करने, यानी घाटा काटने के स्तर और लक्ष्य भाव को दुरुस्त करने का जरूर ध्यान रखा जा सकता है।
ये दोनों ही गड़बड़ियाँ आम तौर पर अपनी कारोबारी समयावधि को ठीक से नहीं समझने के चलते होती हैं। हर शेयर की चाल लंबी अवधि, मध्यम अवधि और छोटी अवधि के लिए एक जैसी हो, यह जरूरी नहीं है। कोई शेयर लंबी अवधि के लिए तेज, लेकिन उसी समय मध्यम अवधि के लिए कमजोर हो सकता है। वही शेयर शायद छोटी अवधि में तेज हो। यहाँ गलती यह हो सकती है कि आपने किसी शेयर का चुनाव तो लंबी या मध्यम अवधि की तेजी को देख कर किया, लेकिन छोटी या एकदम छोटी अवधि में उसकी कमजोरी का रुझान नहीं देख पाये। ऐसी स्थिति में अगर आप एकदिनी (इंट्राडे) या 2-4 दिनों के सौदे करेंगे तो नुकसान ही उठाना पड़ेगा।
अगर कोई शेयर लंबी अवधि और छोटी अवधि दोनों के लिए तेज हो, तो भी दोनों तरह की अवधियों के लिए लक्ष्य और घाटा काटने के स्तर अलग-अलग होंगे। मान लीजिए कि कोई शेयर 100 रुपये का है और उसमें लंबी अवधि के लिए 150 का लक्ष्य दिख रहा है। ऐसे शेयर में लंबी अवधि के लिए घाटा काटने का स्तर भी 75-80 रुपये के आसपास का हो सकता है। लेकिन उसी शेयर में एकदम छोटी अवधि की तेजी का फायदा उठाने के लिए आप 102, 105 रुपये जैसे लक्ष्यों की बात सोचेंगे और इन छोटे लक्ष्यों के लिए घाटा काटने के स्तर भी 98-99 जैसे बेहद करीब के भावों पर होंगे।
ऐसा भी नहीं है कि ऊपर जितना लक्ष्य दिख रहा हो, उसकी आधी राशि घटा कर नीचे घाटा काटने का स्तर तय कर लें। सहारा कहाँ मिलेगा और बाधा कहाँ मिलेगी, इस बारे में तकनीकी चार्ट के संकेत ही देखने पड़ेंगे। आप अपनी सुविधा से कहीं भी घाटा काटने का स्तर तय कर लें या मन में खुद ही कोई लक्ष्य बना लें, उससे बात नहीं बनेगी। तकनीकी रूप से साफ तौर पर समझें कि कहाँ सहारा मिल रहा है, अगला कौन-सा लक्ष्य दिख रहा है। अगर इन दोनों के हिसाब से फायदे का सौदा बन रहा हो, यानी लक्ष्य ज्यादा बड़ा हो और घाटा काटने का स्तर करीब हो, (आपको लाभ-जोखिम का 2:1 का अनुपात मिल रहा हो), तो आप उस सौदे में हाथ डालें।
कई बार बाजार छकाता भी है। आखिर तकनीकी चार्ट तो सारी दुनिया के पास उपलब्ध हैं। इसलिए कुछ खास तकनीकी स्तर बाजार में सबकी निगाह में होते हैं। ऐसी हालत में कई बार बाजार इन स्तरों से पहले ही पलट जाता है या उन स्तरों को पार करके दिशा बदलता है। ऐसी स्थिति को सँभालने के बारे में कोई नियम नहीं बनाया जा सकता। वहाँ तो बस आपकी समझ और फुर्ती ही आपको फायदा दिला सकती है। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 18 फरवरी 2013)

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