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क्या आप बेअसर हैं हिंदुस्तान कॉपर (HCL) के उतार-चढ़ाव से?

राजीव रंजन झा : कई बार विनिवेश की खबर से किसी शेयर के भाव में उछाल देख कर मुझे चौंकना पड़ता है।

मैं समझ नहीं पाता कि आखिर विनिवेश से उस शेयर का भाव क्यों बढ़ना चाहिए। लेकिन बाजार की चाल के आगे तर्क ज्यादा काम नहीं आते। पर यह भी सच है कि बाजार की चाल तर्क के दामन को छोड़ कर ज्यादा दूर तक और ज्यादा समय तक नहीं चल पाती। हिंदुस्तान कॉपर (HCL) के बिक्री प्रस्ताव या ऑफर फॉर सेल (OFS) में कुछ ऐसा ही किस्सा दिखता है।
पिछले हफ्ते गुरुवार को खबर आयी थी कि सरकार ने कंपनी में अपनी 4% हिस्सेदारी ओएफएस के जरिये बेचने के लिए 155 रुपये का न्यूनतम भाव तय किया है। मजेदार बात यह थी कि उस दिन यह शेयर 11% से ज्यादा उछल कर 266 रुपये के भाव पर था। यानी ओएफएस का न्यूनतम भाव उस दिन के बाजार भाव से करीब 42% कम था। यहाँ दो सवाल बनते हैं। अगर ओएफएस का 155 रुपये का न्यूनतम भाव ही एचसीएल के उचित मूल्यांकन के करीब था, तो बाजार भाव इतना ऊपर क्यों था? जिस दिन इतने निचले ओएफएस भाव की घोषणा की गयी, उस दिन भी इस शेयर के भाव में 11% की उछाल क्यों थी?
ध्यान दें कि ओएफएस अगले ही दिन सुबह 9.15 बजे खुल कर उसी दिन 3.30 बजे बंद होने वाला था। यानी अगर बाजार की धारा में बह कर किसी निवेशक या कारोबारी ने 22 नवंबर के कारोबार में यह शेयर खरीदा हो, तो उसे अपनी गलती सुधारने का कोई मौका भी नहीं मिला। अगले दिन 23 नवंबर को यह शेयर करीब 255 के भाव पर खुलने के तुरंत बाद टूट गया और 212.95 के निचले स्तर पर चला गया, यानी 20% के निचले सर्किट पर। यही उस दिन इस शेयर का बंद भाव भी रहा। निचले सर्किट का मतलब होता है कि उस शेयर को सब बेचना चाहते हैं, पर कोई खरीदने वाला नहीं है।
शुक्रवार 23 नवंबर के इस पतन के बाद आज भी यह शेयर 20% निचले सर्किट पर है। आज इसकी निचली सर्किट सीमा 170.40 रुपये पर है और यही इसका मौजूदा भाव भी है। पिछले हफ्ते के उतार-चढ़ाव से पहले के 6-8 महीनों में यह शेयर ऊपर करीब 280-290 और नीचे करीब 240-250 तक के स्थिर दायरे में चल रहा था। इस साल जनवरी की शुरुआत में यह शेयर 200 से नीचे के भावों से चढ़ कर 300 के कुछ ऊपर तक गया और उसके बाद मोटे तौर पर करीब 240-250 से 280-290 के दायरे में टिक गया।
क्या मोटे तौर पर इस साल की शुरुआत से चला आ रहा यह भाव गलत ढंग से ऊँचे स्तरों पर अटका था? जानकार बतायेंगे इस शेयर में प्रमोटर यानी सरकार की हिस्सेदारी काफी ज्यादा होने के चलते खुले बाजार में खरीद-बिक्री के लिए काफी कम मात्रा उपलब्ध थी। दरअसल इस ओएफएस से पहले एचसीएल में सरकारी हिस्सेदारी 99.59% थी, यानी लगभग सौ फीसदी। इसमें निवेशकों-कारोबारियों की रुचि कम होने के कारण भाव में ज्यादा उतार-चढ़ाव भी नहीं था। लेकिन अगर हम 155 रुपये को उचित मूल्यांकन मान लें तो 22 नवंबर का बंद भाव 266 रुपये दरअसल इस उचित भाव से करीब 72% ऊँचा भाव है। क्या बाजार में शेयर की कम मात्रा और कम रुचि इस ऊँचे भाव की पूरी कहानी बता देते हैं?
माजरा तो यह है कि 155 के भाव पर भी तमाम विश्लेषकों ने इसे काफी महँगा शेयर बताया। इस भाव पर इसका पीई अनुपात 44 के आसपास बैठता है, जो एक धातु शेयर के लिए काफी महँगा कहा जा सकता है। एंजेल ब्रोकिंग की एक रिपोर्ट कहती है कि खनन क्षेत्र की दूसरी प्रमुख कंपनियों, जैसे कोल इंडिया, एमओआईएल और एनएमडीसी के शेयर केवल 5 से 10 तक के पीई अनुपात के भाव पर उपलब्ध हैं।
अगर किसी निवेशक या कारोबारी ने लगभग ढाई सौ रुपये के भाव पर यह शेयर खरीद रखा हो तो अगले वाक्य को जरा दिल सँभाल कर ही पढ़ें। अगर हम हिंदुस्तान कॉपर को भी इस पीई दायरे की ऊपरी सीमा यानी 10 का पीई भी देना चाहें, तो 155 के मुकाबले केवल एक चौथाई यानी करीब 40 रुपये का उचित शेयर भाव नजर आता है।
अगर किसी निजी कंपनी में यह कहानी होती तो देश भर का मीडिया फौरन ही किसी घोटाले की बू सूंघ लेता। लेकिन एक सरकारी कंपनी में यह खेल क्यों और कैसे चला, यह एक बड़ी पहेली है जिसका कोई स्पष्ट जवाब मेरे पास नहीं है।
ओएफएस आम तौर पर संस्थागत निवेशकों के लिए खोली गयी खिड़की है। एचसीएल के ओएफएस में सबसे ज्यादा बोलियाँ भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC), भारतीय स्टेट बैंक (SBI) और पंजाब नेशनल बैंक (PNB) ने लगायीं। अगर आपने एचसीएल के शेयर में कोई खरीद-बिक्री नहीं की, तो शायद आप खुश हो सकते हैं कि इससे आपको कोई चपत नहीं लगी। लेकिन जरा इस लिहाज से सोचिए कि क्या एलआईसी के पास आपका कुछ पैसा लगा है? क्या एसबीआई और पीएनबी में आपने कुछ पैसा जमा कर रखा है? क्या एसबीआई और पीएनबी के शेयर आपके पास हैं? अगर इनमें से कुछ बातों का जवाब हाँ में है, तो आपको चिंता करने की और सरकार से कुछ सवाल पूछने की भी जरूरत है। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 26 नवंबर 2012)

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