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क्योंकि पवन बंसल चिदंबरम नहीं हैं

राजीव रंजन झा : आज शेयर बाजार में रेल बजट पर लोगों की निगाहें लगी रहेंगी, खास कर इस वजह से कि एक युग के बाद किसी कांग्रेसी रेल मंत्री के हाथों से रेल बजट पेश होगा। 

रेल मंत्रालय में आखिर कुछ तो खास है, जिसके चलते चाहे एनडीए रहा हो या यूपीए, उसे यह मंत्रालय अपने गठबंधन के किसी खास सहयोगी को देना पड़ जाता है। खैर, वे सब बातें कभी और। आज मेरे मन में सवाल यही है कि क्या पवन बंसल के रेल बजट से पी चिदंबरम के आम बजट के बारे में कोई संकेत लेना चाहिए? 

शेयर बाजार में काफी लोग ऐसा करेंगे, क्योंकि इसके लिए कई तर्क हैं। चूँकि पवन बंसल कांग्रेस से हैं, इसलिए रेल बजट कांग्रेस की मौजूदा राजनीतिक सोच को सामने रखेगा। वही सोच चिदंबरम के बजट में भी दिखेगी, ऐसा मानना स्वाभाविक है। गठबंधन के किसी घटक दल के रेल मंत्री की तुलना में पवन बंसल प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की ज्यादा सुनेंगे, यह तो कहा ही जा सकता है। प्रधानमंत्री की वही सोच हमें आम बजट में भी दिखेगी, यह भी स्वाभाविक है।
लेकिन क्या प्रधानमंत्री की सोच और कांग्रेस मुख्यालय की सोच अभी बिल्कुल एक जैसी होगी? यह बात पूरे यकीन से कहना मुश्किल है। हालाँकि सरकार और पार्टी दोनों ओर से यही दावे किये जाते रहे हैं और आगे भी किये जायेंगे कि दोनों एक ही रास्ते पर हैं। लेकिन सच तो यही है कि मनमोहन सिंह अब नेपथ्य की ओर बढ़ेंगे। क्या अगले चुनाव के बाद मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री होंगे? कांग्रेस हार गयी तो फिर इसका सवाल ही नहीं उठता। अगर कांग्रेस जीत गयी तो भी कोरसगान राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बनाने का होगा।
इस लिहाज से अब डॉ. मनमोहन सिंह के पास इस पद पर ज्यादा-से-ज्यादा साल सवा साल का समय है। वे इस समय का उपयोग अपनी बिगड़ी छवि को वापस सँभालने में करना चाहेंगे – वह छवि जो एक विद्वान अर्थशास्त्री की है। वह छवि जो एक ईमानदार प्रशासक की है। उनकी छवि के इन दोनों पहलुओं पर यूपीए-2 के दौरान काफी बट्टा लगा है। ईमानदारी के पहलू पर उनके हाथों में कुछ खास करने लायक है नहीं। जो कुछ वे कर सकते हैं, वह अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर ही है।
यानी अगले साल सवा साल के दौरान वे आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ा कर उसके कुछ सकारात्मक नतीजे दिखाने की ही उम्मीद कर सकते हैं। इस रास्ते में चिदंबरम उनके सक्षम सारथी हो सकते हैं। लेकिन पवन बंसल जानते हैं कि उनका राजनीतिक भविष्य मनमोहन सिंह तय नहीं करेंगे, बल्कि यह 10 जनपथ से तय होगा।
अगर हम कांग्रेस और सरकार के बीच इस बारीक विरोधाभास को किनारे भी कर दें, तो पवन बंसल और पी चिदंबरम की सोच और व्यक्तित्व में काफी फर्क है। इसलिए मैं तो पवन बंसल का रेल बजट देख कर चिदंबरम के बजट का पूर्वानुमान लगाने का जोखिम नहीं लूँगा। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 26 फरवरी 2013)

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