शेयर मंथन में खोजें

ट्रंप टैरिफ रद्द करने का आदेश, चला अमेरिकी न्यायालय का हथौड़ा

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ओर से भारत समेत विश्व के काफी देशों के लिए घोषित उच्च सीमा-शुल्कों (टैरिफ) के मामले में एक नाटकीय मोड़ आ गया है। अमेरिका के एक संघीय व्यापार न्यायालय (फेडरल ट्रेड कोर्ट) ने ट्रंप की ओर से शुल्क संबंधी इन घोषणाओं को असंवैधानिक बता दिया है।

न्यूयॉर्क स्थित अंतरराष्ट्रीय व्यापार न्यायालय (Court of International Trade) ने अपने एक आदेश में कहा है कि ट्रंप ने अपनी शक्तियों से आगे जाकर ये निर्णय किये हैं और सामान्य रूप से कांग्रेस (अमेरिकी संसद) में निहित शक्तियों का अतिक्रमण किया है। ट्रंप ने इन शुल्कों की घोषणा के बाद इन्हें 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया था, जो समय-सीमा 8 जुलाई तक की थी। पर अब, इस आदेश में न्यायालय ने ट्रंप टैरिफ को रद्द ही कर दिया है।

ट्रंप टैरिफ को अंतरराष्ट्रीय व्यापार न्यायालय में चुनौती देने का काम अमेरिका के ही 12 राज्यों ने किया, जिनमें ट्रंप के विरोधी दल डेमोक्रेटिक पार्टी का शासन है। इन राज्यों ने तर्क दिया था कि ट्रंप टैरिफ से उनके आर्थिक हितों को चोट पहुँच रही है। साथ ही, विदेशी आपूर्ति पर निर्भर कंपनियों को भी इससे नुकसान होगा।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार न्यायालय ने 28 मई को यह फैसला दिया है कि 1977 का अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्ति अधिनियम (आईईईपीए) अमेरिकी राष्ट्रपति को दुनिया के लगभग सभी देशों से आयात पर शुल्क लगाने का "असीमित अधिकार" नहीं देता है।

इसी कानून के तहत ट्रंप ने 2 अप्रैल को 'लिबरेशन डे' की घोषणा करते हुए विश्व के अधिकांश देशों पर पारस्परिक शुल्क (रेसिप्रोकल टैरिफ) लगाये थे, जिन्हें प्रतिशोधात्मक शुल्क (रिटैलिएटरी टैरिफ) भी कहा जा रहा है। व्यापार न्यायालय ने निर्देश दिया कि "इन टैरिफ आदेशों को रद्द किया जायेगा और इन्हें लागू करने पर स्थायी रोक लगायी जायेगी।" न्यायालय ने ट्रंप प्रशासन को इन शुल्कों को वापस लेने के लिए 10 दिनों का समय दिया है।
तो, क्या यह ट्रंप की टैरिफ तुनकमिजाजी का अंत है? शायद अभी यह मान लेना जल्दबाजी हो सकती है। ट्रंप प्रशासन ने पहले ही संघीय सर्किट के लिए यूएस अपीलीय न्यायालय में अपील दायर कर दी है। आगे, यह मामला अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय तक जा सकता है।

इसके अतिरिक्त, यह निर्णय आईईईपीए के अतिरिक्त अन्य कानूनों के तहत लगाये गये शुल्कों को प्रभावित नहीं करता है, जैसे कि 1962 के व्यापार विस्तार अधिनियम की धारा 232, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर शुल्क लगाने की अनुमति देती है। उदाहरण के लिए, ट्रंप ने स्टील और एल्युमीनियम पर जो शुल्क लगाये हैं, उनकी घोषणा इस कानून के तहत हुई है। इसके अलावा, विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप 1974 के व्यापार अधिनियम की धारा 122 जैसे वैकल्पिक कानूनी रास्ते तलाश सकते हैं, जिसके तहत वे व्यापार घाटा रोकने के लिए 150 दिनों तक सीमित शुल्क लगा सकते हैं।
अमेरिकी संसद में ‘वन बिग ब्यूटीफुल बिल ऐक्ट’ नाम से एक विधेयक भी विचाराधीन है, जो सरकार को न्यायिक निर्णयों का उल्लंघन करने की शक्ति दे सकता है। यह विधेयक निचले सदन प्रतिनिधि सभा से पारित हो चुका है और उच्च सदन सीनेट के विचाराधीन है। हालाँकि, सीनेट में ट्रंप के ही रिपब्लिकन दल का बहुमत होने के बाद भी इस विधेयक को पारित कराना आसान नहीं माना जा रहा है। रिपब्लिकन पार्टी के ही कई सीनेटर इस विधेयक के विरुद्ध बताये जाते हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप के सामने मौजूद विकल्पों के बावजूद, यह निर्णय उनके लिए एक महत्वपूर्ण झटका है। वैश्विक व्यापार में अपनी मनमर्जी चलाने और अमेरिकी विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) को बढ़ावा देने के लिए ट्रंप ने टैरिफ का उपयोग हथियार की तरह करने जो रणनीति अपनायी, वह अब अनिश्चितता के भँवर में घिर चुकी है।

अर्थशास्त्रियों और राज्यों के अटॉर्नी जनरलों सहित आलोचकों का तर्क है कि ये शुल्क अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए कीमतों को बढ़ायेंगे, आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित करेंगे और वैश्विक व्यापार युद्धों का जोखिम उत्पन्न करेंगे। न्यायालय के निर्णय से ये तर्क और मजबूत हुए हैं। न्यायालय के फैसले के तुरंत बाद अमेरिकी शेयर बाजार में तेजी आयी, जिससे दिखता है कि व्यापारिक तनाव में कमी से निवेशकों को राहत मिली है।
हालाँकि न्यायालय के निर्णय ने फिलहाल ट्रंप के पंख काट दिये हैं, लेकिन इसके बाद भी ट्रंप प्रशासन अपनी इस नीति पर टिके रहने का संकल्प दिखा रहा है। इससे लगता है कि "ट्रंप के टैरिफ वाले नखरे" अभी खत्म नहीं हुए हैं। ट्रंप प्रशासन इस कानूनी लड़ाई को आगे बढ़ाता दिख रहा है, इसलिए अनिश्चितता बनी रह सकती है।

हालाँकि, यदि अपीलीय न्यायालय अंतरराष्ट्रीय व्यापार न्यायालय के इस निर्णय को स्थगित नहीं करता है, तो यह भारत के लिए अमेरिका के साथ अपनी बातचीत में मजबूत रुख दिखाने का अवसर होगा। हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के नेतृत्व में भारत का एक प्रतिनिधिमंडल अमेरिका में एक सप्ताह तक बातचीत करके वापस लौटा है। भारत और अमेरिका के बीच मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर बातचीत के लिए अमेरिका के वार्ताकारों का दल जून के प्रथम सप्ताह में आने वाला है।

मगर, अब भारत के सामने ऐसी बाध्यता नहीं होगी कि वह 8 जुलाई, यानी 90 दिनों की समय-सीमा पूरी होने से पहले किसी तरह से अमेरिका के साथ व्यापार समझौता कर ही ले। भारत इस समझौते के लिए अब अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार कर सकता है और अधिक दृढ़ता के साथ अपनी माँगें रख सकता है। (शेयर मंथन, 29 मई 2025)

कंपनियों की सुर्खियाँ

निवेश मंथन पत्रिका

देश मंथन के आलेख

विश्व के प्रमुख सूचकांक

निवेश मंथन : ग्राहक बनें

शेयर मंथन पर तलाश करें।

Subscribe to Share Manthan

It's so easy to subscribe our daily FREE Hindi e-Magazine on stock market "Share Manthan"