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साल 2014 में जीरे पर रहेगी खास नजर

रेलिगेयर कमोडिटीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जीरे की मौजूदा कीमतें साल 2014 में इसकी मजबूती की बड़ी वजह हो सकती हैं। 

इससे कीमतों को इन स्तरों पर कुछ सहारा मिल सकता है। साल 2014 में भंडारण की ऊँची दरों और बेहतर उत्पादकता से एक अच्छी संभावना बनती नजर आ रही है। कारोबारियों का मानना है कि फरवरी-मार्च 2014 में नयी फसल आने तक ही इसमें नीचे का रुझान रह सकता है। नयी फसल के आने पर घरेलू और निर्यात के स्तर पर माँग बढ़ने की उम्मीद है। तुर्की, सीरिया और ईरान जैसे विकासशील देशों में राजनीतिक अस्थिरता की वजह से जीरे के उत्पादन और भंडार में कमी बनी हुई है। ऐसे में जीरे का निर्यात मुख्य रूप से भारत से ही किया जायेगा। डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती से भी निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है। ऐसे में साल 2014 में जीरे की कीमत में तेज वापसी की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।

कुल मिला कर जीरे की नयी फसल आने तक बाजार का रुझान बिना किसी हलचल के रह सकता है। रेलिगेयर कमोडिटीज के अनुसार, हालाँकि मई-जून में निर्यात और घरेलू माँग में मजबूती बढ़ने की संभावना है जिसके बाद सारा रुझान मानसून पर निर्भर करेगा। अन्य निर्यातक देशों में स्थिति अच्छी न होने की वजह से साल 2014 में जीरे का निर्यात बढ़ सकता है। डॉलर बनाम रुपये की चाल से भी जीरे की कीमतें प्रभावित हो सकती हैं क्योंकि निर्यातकों को मजबूत डॉलर से फायदा पहुँचेगा। 
हल्दी की नयी फसल के आने के बाद इसमें छोटी अवधि के लिए गिरावट की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। हालाँकि कीमतों के निचले स्तरों पर होने से यह गिरावट सीमित रह सकती है। हल्दी के पुराने भंडार की अच्छी गुणवत्ता न होने से नयी फसल की गुणवत्ता का  बेहतर होना आवश्यक है। डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती से भी निर्यात के स्तर पर सहारा मिल सकता है। जून से मानसून का प्रभाव भी अहम साबित हो सकता है। साल 2013 में कीमतों के काफी नीचे आ जाने की वजह से इस साल हल्दी के उत्पादन में गिरावट की संभावना है। हालाँकि यह रुझान सीमित रह सकता है। 
साल 2013 में चना की कीमतों के काफी गिर जाने के साथ साल 2014 में यह रुझान सीमित रह सकता है। रेलिगेयर कमोडिटीज का मानना है कि निकट अवधि में सभी दालों के अच्छे उत्पादन की खबरों से बाजार की धारणा पर दबाव पड़ सकता है। मार्च-अप्रैल में चना की नयी आवक आने पर दालों का वर्तमान आयात बाजार में आपूर्ति बढ़ा सकता है, लेकिन इन निचले स्तरों पर स्टॉकिस्टों द्वारा बिकवाली न करने की वजह से कीमतों को यहाँ कुछ सहारा मिल सकता है। चना में छोटी अवधि के लिए रुझान अस्थिर बना रह सकता है। नयी फसल आ जाने के बाद कीमतों के निचले स्तर पर जाने की संभावना है और अप्रैल-मई में इसमें सुधार होने की उम्मीद है। इस समय तक त्योहारी सीजन में माँग कीमतों के अधिक गिरने को रोके रखेगी। साल 2013 में ज्यादातर दालों की कीमतें काफी नीचे गिर चुकी हैं। कारोबारियों के मुताबिक कोई मजबूत मूलभूत कारक न होने से रिपोर्टों से यह पता चलता है कि स्टॉकिस्ट इन निचले स्तरों पर स्टॉक को बाजार में लाने के इच्छुक नहीं हैं। मध्यम और लंबी अवधि में कीमतों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे गिरना स्थायी नहीं होगा।
साल 2013 की ही तरह साल 2014 भी ग्वारसीड के लिए एक मजबूत साल रहने की उम्मीद है। हालाँकि साल की शुरुआती छमाही के दौरान उच्च उत्पादन के आँकड़े पिछले साल की तरह कीमतों को बढ़ाने में सक्षम नहीं होगे। रेलिगेयर कमोडिटीज के अनुसार ऐसी संभावना है कि ग्वारसीड की वर्तमान दर (4000 के स्तर से ठीक ऊपर) निचले स्तर पर रह सकती है। हालाँकि आगे गिरावट सीमित रह सकती है। ग्वारसीड की उच्च आपूर्ति बाजार की धारणा पर दबाव बनाये रखेगी, लेकिन अमेरिका और यूरोपीय संघ से निर्यात के मौजूदा स्तरों से बढ़ने की उम्मीद है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके भंडार के साल 2013 के आरंभ के मुकाबले घटने की खबर है। इस साल निर्यात में बढ़ोतरी देखी जा सकती है और डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती से भी निर्यातकों को फायदा पहुँच सकता है। 
रेलिगेयर कमोडिटीज की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2014 में वैश्विक स्तर पर सोयाबीन तेल का उत्पादन पिछले साल के रिकॉर्ड स्तर 442 लाख टन से 5.5% बढ़ सकता है। आगामी महीनों में अर्जेंटीना और ब्राजील में सोयाबीन की अच्छी फसल की संभावना की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों पर दबाव बढ़ेगा। ब्राजील और अर्जेंटीना से प्रतिकूल मौसम संबंधी खबरों से कीमतों में इजाफा हो सकता है। वर्तमान में चीन से व्यापक माँग के साथ सोयाबीन की आपूर्ति पेचीदा बनी हुई है। नये साल के आसपास दक्षिण अमेरिका से कम उत्पादन और लॉजिस्टिक खतरे की वजह से कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है। हालाँकि 2014 में दक्षिण अमेरिका से सोयाबीन में पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति होगी, जिससे बाजार पर दबाव पड़ेगा। पाम ऑयल की तुलना में सोया जैसे खाने योग्य तेल की खपत बढ़ेगी, जिससे निचले स्तरों पर बाजार को सहारा मिलेगा।  (शेयर मंथन, 04 जनवरी 2014)

 

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