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7 महीनों बाद एफआईआई की खरीदारी

राजीव रंजन झा

इस साल अप्रैल के बाद पहली बार दिसंबर में ऐसा लग रहा है कि विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) शुद्ध रूप से खरीदार रहेंगे। सेबी के आँकड़ों के मुताबिक इस महीने अब तक एफआईआई ने दिसंबर महीने में 2000 करोड़ रुपये से ज्यादा की शुद्ध खरीदारी की है। हालांकि इस साल अब तक जितनी बिकवाली उनकी ओर से हो चुकी है, उसकी तुलना में दिसंबर की खरीदारी बेहद हल्की नजर आती है। लेकिन फिर भी यह इस मायने में ज्यादा महत्वपूर्ण है कि कम-से-कम उनकी बिकवाली का सिलसिला रुका तो है।

एक दिलचस्प पहलू यह है कि एफआईआई खरीदारी ऐसे समय में लौटती दिख रही है, जब अंतरराष्ट्रीय बाजारों की अनिश्चितता पहले से कुछ ज्यादा गंभीर ही लग रही है। यही नहीं, भारत पर वैश्विक मंदी के असर के बारे में भी अब लोग पहले से ज्यादा चिंतित नजर आ रहे हैं। तीसरी तिमाही के नतीजे काफी कमजोर रहने की आशंकाएँ जतायी जा रही हैं। कुछ ही महीनों में लोकसभा के चुनाव भी होने हैं। इन सारी स्थितियों के बावजूद विदेशी संस्थागत निवेशकों ने हाल में खरीदारी का ही रास्ता चुना है। इसी तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि संकट के इस साल में भारतीय बाजार को लगातार सहारा देते रहे म्यूचुअल फंडों ने हाल के कुछ दिनों में बिकवाली का रास्ता पकड़ा है। उनकी ओर से दिसंबर महीने में ज्यादा तो नहीं, लेकिन 400 करोड़ रुपये से कुछ ज्यादा की शुद्ध बिकवाली की गयी है। यह रकम बड़ी नहीं है, लेकिन फिर भी इतना तो बता रही है कि हाल की तेजी के बाद इन स्तरों पर खरीदारी जारी रखने में उन्हें एक हिचक हो रही है।

ताजा आँकड़े बता रहे हैं कि म्यूचुअल फंड करीब 37,000 करोड़ रुपये की नकदी लिये बैठे हैं। तो क्या इसका मतलब यह है कि वे अभी निचले भावों का इंतजार कर रहे हैं? या फिर घबराहट की किसी स्थिति में अपने निवेशकों की ओर से पैसा वापस निकाले जाने का डर उनमें बैठा है?

खैर, फिलहाल हम इस बात पर तो राहत महसूस कर ही सकते हैं कि एफआईआई ने अपनी बिकवाली रोक ली है। हालांकि केवल एक महीने के आँकड़े से कोई नतीजा निकालना मुश्किल है। लेकिन अगर यह रुझान टिकता है तो भारतीय बाजार को इससे एक बड़ा सहारा मिलेगा। भले ही उनकी ओर से कोई बड़ी खरीदारी न हो, लेकिन अगर उनकी बिकवाली का रुक जाना भी भारतीय बाजार से एक बड़ा दबाव हटा लेगा।

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