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तेल कंपनियों को आजादी या एक और चुनावी चाल

राजीव रंजन झा

पिछले कुछ समय से लगातार ऐसी अटकलें चल रही हैं कि जल्दी ही पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटायी जाने वाली हैं। सीधा तर्क यह है कि नाइमेक्स में कच्चे तेल की कीमतें 11 जुलाई 2008 को दर्ज 147.27 डॉलर प्रति बैरल के रिकॉर्ड से घट कर अब लगातार 40 डॉलर के नीचे चल रही हैं। डेढ़ महीने पहले 5 दिसंबर को सरकार ने पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाने का फैसला किया था। लेकिन अभी और कमी की गुंजाइश दिख रही है और कितनी कमी होगी, इसकी अटकलें लगातार मीडिया में आ रही हैं। पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाने से महँगाई दर और भी नरम हो जायेगी। इससे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के लिए रेपो और रिवर्स रेपो दरों को फिर से घटाना आसान हो जायेगा। इनके घटने से बैंकों के लिए कर्ज सस्ता करना मुमकिन हो सकेगा। कर्ज सस्ता होने से उपभोक्ताओं को भी राहत मिलेगी और उद्योगों को भी। कुल मिलाकर पूरी अर्थव्यवस्था को इससे एक अच्छा सहारा मिलेगा, वह भी ऐसे मुश्किल वक्त में।

ये सारे तर्क अपनी जगह पूरी तरह सही हैं। और बतौर उपभोक्ता, मुझे भी बड़ा अच्छा लगेगा जब अगली बार पेट्रोल पंप जाने पर मुझे अपनी जेब से कुछ कम रुपये निकालने पड़ेंगे। लेकिन इन सारी चर्चाओं के बीच एक बात यह कही जा रही है कि तेल कंपनियों को अपनी कीमतें तय करने के मामले में सरकारी नियंत्रण से आजादी देने के लिए यह कदम उठाया जायेगा। लेकिन जिस तरह चुनावी जंग से ठीक पहले यह पहल की जा रही है, सरकार की असली नीयत तेल कंपनियों को आजादी देने की तो नहीं लगती।
आज फिर हिंदुस्तान टाइम्स में खबर है कि पेट्रोल 10 रुपये, डीजल 3-4 रुपये और एलपीजी 25 रुपये सस्ता किया जा सकता है। इस खबर के मुताबिक पेट्रोलियम मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय और योजना आयोग को भेजे एक नोट में यह बात कही है। इस नोट में यह बात भी कही गयी है कि तेल कंपनियों को कीमतें खुद तय करने की आजादी दी जा सकती है। ये दोनों बातें एक साथ सच नहीं हो सकतीं। अगर तेल कंपनियों को यह आजादी देनी है, तो फिर यह सुझाव क्यों आ रहा है कि दाम कितने घटाये जाने चाहिए। दूसरे, रसोई गैस पर तो अब भी सब्सिडी देनी पड़ रही है। इसलिए अगर बाजार भाव की ओर बढ़ना है, तो उसके दाम घटाने का तर्क क्या है? सिर्फ इसलिए कि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं? और फिर क्या गारंटी है कि कच्चे तेल के दाम फिर से बढ़ने पर तेल कंपनियों की आजादी बनी रहेगी? राजनीतिक मजबूरियाँ तो तब भी रहेंगीं!

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