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आरबीआई ने अर्थव्यवस्था धीमी पड़ने के संकेत दिये

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अब औपचारिक रूप से यह साफ कर दिया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था धीमी पड़ती जा रही है। आरबीआई ने अंतरराष्ट्रीय स्थितियों को इसका प्रमुख कारण माना है। इसने मौद्रिक नीतियों की तिमाही समीक्षा से पहले जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मजबूत बढ़त दिखाने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था 2008-09 की दूसरी तिमाही में धीमी पड़ी है। हालाँकि कृषि क्षेत्र की स्थिति ठीक लग रही है, लेकिन औद्योगिक क्षेत्र की विकास दर में तीखी कमी आयी है। साथ ही सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) भी धीमा पड़ रहा है।

आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में विभिन्न संस्थाओं के विकास दर अनुमानों का सर्वेक्षण भी किया है, जिससे संकेत मिलता है कि अर्थव्यवस्था में और धीमापन आया है। इस ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक विभिन्न संस्थाओं के विकास दर अनुमानों का औसत 6.8% है, जबकि पहले यह औसत अनुमान 7.7% था। आरबीआई के इस सर्वे में सबसे ताजा अनुमान प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी) का है, जिसने इसी महीने कहा था कि 2008-09 में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 7.1% रहने का अनुमान है।

आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी होने का खतरा मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय आर्थिक धीमेपन, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों के टूटने और इनकी वजह से घरेलू माँग में कमी होने की वजह से है। लेकिन दूसरी ओर कुछ सकारात्मक पहलू भी काम कर रहे हैं। मसलन आयकर में छूट की सीमा बढ़ने और आयकर की विभिन्न दरों की सीमाएँ बढ़ने, छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने, किसानों की कर्ज माफी और चुनावों से पहले होने वाले खर्च की वजह से खपत बढ़ने की उम्मीद है। एक ओर जहाँ भविष्य में विकास दर घटने का खतरा बना रहेगा, वहीं कच्चे तेल और दूसरी कमोडिटी के भावों में गिरावट के साथ-साथ सरकारी राहत योजनाओं से विकास दर को सहारा मिलने की उम्मीद है। इन स्थितियों के मद्देनजर आरबीआई का मानना है कि विकास दर के नीचे फिसलने का खतरा ज्यादा लग रहा है।

हाल में महँगाई दर (डब्लूपीआई बढ़ने की दर) में कमी के पीछे आरबीआई ने घरेलू माँग में कमी को भी कुछ हद तक जिम्मेदार माना है। इसने कहा है कि महँगाई दर में कमी मुख्य रूप से ईंधन, धातु और खाने-पीने की कुछ चुनिंदा चीजों की कीमतें घटने की वजह से आयी है। इन कमोडिटी भावों में कमी जुलाई 2008 के बाद से अंतरराष्ट्रीय बाजार के भावों में आयी गिरावट के अनुरूप रही है, लेकिन इसमें कुछ योगदान घरेलू माँग में कमी का भी रहा है। इस साल खरीफ की फसल कम रहने की आशंका के चलते कृषि कमोडिटी के भावों में बढ़ोतरी का जोखिम बना रहेगा। मगर अंतरराष्ट्रीय भावों के घटने और रबी की बुवाई सुधरने से यह जोखिम काफी हद तक संतुलित हो जायेगा। साथ ही, भारत सरकार ने हाल में राहत योजना के तहत सेनवैट में 4% की जो कमी की थी, उसके चलते भी ज्यादातर चीजों के दाम घटेंगे। आरबीआई का कहना है कि मार्च 2009 तक महँगाई दर पिछले अनुमान से भी काफी नीचे आ जायेगी।  

आरबीआई का कहना है कि नवंबर-मध्य के बाद से नकदी की स्थिति काफी सहज हो चुकी है। सितंबर-मध्य और अक्टूबर 2008 के दौरान नकदी की स्थिति काफी कस गयी थी, लेकिन इसके बाद स्थिति को सुधारने के लिए कई कदम उठाये गये थे।

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