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चुनिंदा क्षेत्रों के मँझोले शेयरों में निवेश की रणनीति : प्रदीप गुप्ता

pradeep gupta anand rathi securutiesआनंद राठी फाइनेंशियल सर्विसेज के वाइस चेयरमैन प्रदीप गुप्ता का मानना है कि अर्थव्यवस्था में सुधार का भरोसा बनने पर माँग में वृद्धि होगी और निवेश चक्र सुधरेगा।

शेयर मंथन के संपादक राजीव रंजन झा से बातचीत में उन्होंने कहा कि अभी पूरी अर्थव्यवस्था में भले ही उत्साह नहीं बना हो, मगर कुछ क्षेत्रों में अच्छी गति से काम होने लगा है। मगर फिलहाल अगले साल के मध्य तक बुनियादी चुनौतियाँ बनी रहेंगी। इस दौरान कंपनियों की आमदनी में ठहराव के बावजूद मुनाफे में वृद्धि होने की संभावना रहेगी। बाजार इन स्तरों से 2-5% से ज्यादा नहीं गिरेगा। साल 2016 के लिए उनकी रणनीति है कि चुनिंदा क्षेत्रों में अच्छी बढ़त की संभावना वाले मँझोले शेयरों में निवेश किया जाये। प्रस्तुत हैं प्रदीप गुप्ता के विचार...

कंपनियों के मुनाफे की दर तो बनी हुई है, मगर लोग आमदनी को लेकर चिंतित हैं। अब आमदनी को लेकर दो बातें हुई हैं। एक तो लागत कम हुई है क्योंकि कमोडिटी के भाव नीचे आये हैं, और साथ ही माँग भी कम रही है। महँगाई दर भी कम हुई है। मेरा मानना है कि आमदनी में वृद्धि तेज होने में अभी कुछ समय लगेगा। कमोडिटी भावों में जैसे-जैसे कुछ वृद्धि होगी, उसके साथ आमदनी में वृद्धि होगी। माँग धीरे-धीरे बढ़ेगी, जब लोगों की जेब में पैसा होगा, वे महसूस करने लगेंगे कि वे पैसे बचा पा रहे हैं। अभी लोग बचत कर रहे हैं, वेतन के स्तर वही हैं और महँगाई दर घटी है, लेकिन लोगों के मन में अब भी है कि अभी पैसे बचाने पर ध्यान रखना चाहिए, खर्च नहीं करना चाहिए क्योंकि अर्थव्यवस्था ठीक नहीं है। उपभोक्ता महँगाई दर 9% से घट कर लगभग 5% पर आ गयी। लोगों के मन में है कि उन्हें वेतन में केवल 10% की वृद्धि मिल रही है, जो पहले ज्यादा होती थी। लेकिन अब महँगाई दर कम है। यहाँ जब फील गुड का माहौल बनेगा, जब लोगों को यह एहसास हो जायेगा कि भविष्य अच्छा है, तो भविष्य की सुरक्षा से लोगों का झुकाव खर्च की ओर बढ़ेगा और नयी माँग पैदा होगी।
निजी निवेश आये तो विकास दर 10% पर
कंपनियों को देखें तो सब यही बात कर रहे हैं कि हमारी आमदनी नहीं बढ़ रही है। लेकिन अगर आमदनी स्थिर है और मुनाफे में लगातार वृद्धि हो रही है तो पैसा बन ही रहा है ना। वे निवेश चक्र की ओर नहीं आ रहे हैं, क्योंकि भविष्य स्पष्ट नहीं है। उनका रुख यही है कि जब तक जमीनी तौर पर हमें अच्छा महसूस नहीं होगा, हम निवेश के लिए आगे नहीं आयेंगे। अभी उनके निवेश के बिना ही यह 7.5% पर है। अगर आज निजी क्षेत्र का निवेश आ जाये तो विकास दर 9-10% होने में समय नहीं लगेगा। मगर लोगों ने अपनी धारणाओं को जोड़ रखा है कुछ बातों से कि यह काम नहीं हुआ, वह काम नहीं हुआ।
कुछ क्षेत्रों में हुआ है अच्छा काम
लेकिन जिन क्षेत्रों में काम हुआ है, वहाँ लोगों से बात करें। जैसे रक्षा क्षेत्र में बात करें या रेलवे मंत्रालय में जायें, बुनियादी ढाँचे में जायें सड़क, कंस्ट्रक्शन, ईपीसी वगैरह में। इन क्षेत्रों की कंपनियाँ बता रही हैं कि चीजें आगे बढ़ने लगी हैं। इसीलिए जिन कमोडिटी के भाव वैश्विक बाजारों पर निर्भर नहीं हैं, जैसे सीमेंट, वहाँ निवेश की माँग चालू हो जायेगी। उनको सामने दिख रहा है कि माँग आ रही है। आने वाले समय में ऑटो पुर्जा क्षेत्र में मँझोली कंपनियों की माँग में वृद्धि होती दिखेगी। रेलवे के बुनियादी ढाँचे के लिए आपूर्ति करने वाली कंपनियाँ, जो इंजीनियरिंग और हेवी इंजीनियरिंग में हैं, वे अच्छा करने वाली हैं। वैगन बनाने वाली, ट्रैक बिछाने वाली और ईपीसी कॉन्ट्रैक्टर कंपनियाँ अच्छा करेंगी।
बुलेट ट्रेन की परियोजना को ही लें, तो भले ही काम जापानी कंपनी को मिले, मगर लोग तो यहीं के काम करेंगे और पैसा यहीं खर्च होगा। इस परियोजना के लिए जितना सस्ता कर्ज लिया गया है, वह कल्पना से बाहर की चीज है। उसमें केवल मुद्रा विनिमय दर (एक्सचेंज रेट) का जोखिम हो सकता है, लेकिन सच तो यह है कि रुपया ही येन से मजबूत चल रहा है। जब उसका काम शुरू होगा तो रोजगार पैदा होगा, पैसा यहीं के लोगों की जेब में जायेगा, और वो पैसा खर्च भी यहीं होगा। कम-से-कम 60% पैसा तो यहीं आना है। यह बात सही है कि परियोजना का काम पाँच साल बाद दिखना शुरू होगा, लेकिन उसका काम शुरू होने पर अगले छह महीने साल भर में पैसा घूमना शुरू हो जायेगा। नियंत्रण उनका होगा, लेकिन आगे वे आखिर सब-कॉन्ट्रैक्ट ही करेंगे। आपने भर्तियाँ शुरू कर दीं, काम चालू कर दिया, सफाई शुरू कर दी, तो उससे संबंधित कंपनियों को काम मिलेगा। वह सब पैसा कहाँ जायेगा?
जीएसटी तो अब 2017 में ही
अभी नकारात्मक बातें भी दिख रही हैं। कोई भी विधेयक पारित कराने के लिए सरकार को जूझना पड़ रहा है। जीएसटी को लेकर बीच में उम्मीद बन गयी थी कि शीतकालीन सत्र में यह पारित हो सकता है। लेकिन तब भी लोगों को यह मालूम था कि 2017 के पहले इसे लागू नहीं किया जा सकेगा। आज आपने पारित कर भी दिया तो उसको जमीन पर लाने के लिए आठ महीने का समय चाहिए। तमाम राज्य इसमें जुड़े हैं, उनको भी तैयारियाँ करनी हैं। इसलिए ये और तीन महीने झगड़ लें, क्या फर्क पड़ता है। अब लागू तो 2017 में ही होना है।
यह जरूर है कि जीएसटी लागू होने से विकास दर पर जो सकारात्मक असर पड़ सकता था, वह एक साल आगे खिसक जायेगा। लेकिन उस बात को बाजार ने पहले ही भाँप लिया था। यह मानना होगा कि विकास दर तेज होने की गति हल्की रहने वाली है। पहले मैं मान रहा था कि इस साल विकास दर 8% रहेगी, जैसा कि साल की शुरुआत में वित्त मंत्रालय का भी कहना था।
अभी लोगों की धारणा पर कुछ असर पड़ा है, लोग परेशान हो गये कि ये कुछ कर नहीं पा रहे हैं। इस सरकार के डेढ़ साल हो गये हैं। मेरे विचार से यह और एक-डेढ़ साल तक मजबूती से वह सब कर सकेगी जो इसे करना है। उसके बाद तो इसे स्वाभाविक रूप से लोकप्रिय कदमों की ओर जाना होगा। ये 2017 के मध्य से लोकलुभावन चीजों की ओर जाना शुरू करेंगे, क्योंकि उन्होंने लोगों की धारणा का भी ख्याल करना है। इन्होंने अब तक जो किया है, उसका असर 2016 में कुछ दिखना शुरू होगा। उससे भी कुछ सकारात्मक माहौल बनेगा।
बुनियादी चुनौतियाँ 2016 के मध्य तक
एकदम मूल (फंडामेंटल) बातों को देखें तो 2016 के मध्य तक चुनौतियाँ बनी रहेंगी। अभी तीसरी तिमाही के जो नतीजे आयेंगे, उनमें मुनाफे के स्तर पर चीजें ठीक रहेंगी पर आमदनी में कोई खास वृद्धि नजर नहीं आयेगी। मार्जिन स्थिर रहेंगे या थोड़े सुधरेंगे। यही समझने वाली बात है कि अगर स्थिति बहुत बुरी है तो आमदनी नहीं बढ़ने के बावजूद मार्जिन और मुनाफे में वृद्धि कैसे हो रही है। उद्योग में क्षमता इस्तेमाल का स्तर औसतन 70% पर अटका हुआ है। फिर वे किस तरह मुनाफा बना रहे हैं? अगर मुनाफे में वृद्धि होगी तो प्रति शेयर आय (ईपीएस) बढ़ेगी ही। और जो कुछ चिंताएँ हैं, उन्हीं की वजह से बाजार ऊपरी स्तरों से नीचे आया है। सेंसेक्स 30,000 के ऊपर से फिसल कर यहाँ इसीलिए है। जब सेंसेक्स 30,000 पर था, तब आपको लग रहा था कि आमदनी भी बढ़ेगी और मुनाफा भी बढ़ेगा। माना जा रहा था कि आमदनी में 14-15% की बढ़त होगी। पर पिछले साल इसमें 9-10% की वृद्धि हुई और इस साल भी यह 10% से ऊपर नहीं जाने वाली है। उसको देख कर मूल्यांकन को नीचे आना ही था।
छोटे-मँझोले शेयरों का प्रदर्शन बेहतर
लेकिन एक बदलाव हो रहा है। आपको शायद निफ्टी के स्तर पर ज्यादा बढ़त न दिखे, लेकिन मँझोले और छोटे शेयरों का प्रदर्शन निफ्टी से बेहतर रहा है। साल 2016 में चुनिंदा शेयरों पर ध्यान देना होगा। आपको यह देखना होगा कि कौन-से क्षेत्र वास्तव में अच्छा करने वाले हैं, और फिर उन क्षेत्रों में यह देखना होगा कि कौन-सी मँझोली या छोटी कंपनियाँ ज्यादा तेजी से बढ़ने वाली हैं। साल 2016 में यही मुख्य रणनीति होगी।
2-5% से ज्यादा नहीं गिरेगा बाजार
बाजार मार्च से नीचे गिरता रहा है। अगर औसत देखें तो मुझे लगता है कि इन भावों पर केवल 2-5% तक ही और गिरावट की गुंजाइश है। यह सही है कि फेडरल रिजर्व की ब्याज दर में बढ़ोतरी की वजह से एफआईआई बिकवाली आ सकती है। पैसा अमेरिकी बाजार की ओर जायेगा। विश्व में उभरते बाजारों के लिए जो राशि आवंटित है, वह निकलेगी। उभरते बाजारों में समस्या चीन को लेकर है। भारत को छोड़ कर बाकी सभी उभरते बाजारों में परेशानियाँ चल रही हैं। उभरते बाजारों में सबसे तेज वृद्धि भारत ही दिखा रहा है। इसलिए मैं कहूँगा कि उभरते बाजारों के लिए आवंटित राशि में कमी आयेगी और वह पैसा विकसित बाजारों की ओर जायेगा, मुख्य रूप से अमेरिका की ओर। लेकिन उभरते बाजारों के समूह में भारत की संभावनाएँ बेहतर रहेंगी। वैश्विक निवेशक उभरते बाजारों से थोड़ा हटेंगे, लेकिन तुलनात्मक रूप से भारत से कम हटेंगे।
बना रहेगा घरेलू निवेश प्रवाह
इस साल एफआईआई ने भारतीय बाजार में बिकवाली ही की है। हो सकता है कि अगले साल भी उनके आँकड़े नकारात्मक रहें या सामान्य रह जायें। लेकिन दूसरी ओर घरेलू म्यूचुअल फंड और वित्तीय संस्थाओं का सहारा बाजार को मिल रहा है, क्योंकि उनके पास पैसा आ रहा है। यहाँ निवेशकों के पास दूसरा विकल्प क्या है? इक्विटी के विपरीत पैसा खींचने वाले सबसे बड़े संपदा वर्ग सोना और रियल एस्टेट रहे हैं। लेकिन अभी सोना ठंडा है और रियल एस्टेट की भी संभावनाएँ नजर नहीं आ रही हैं। और वास्तव में खुदरा निवेशकों का बहुत ज्यादा पैसा तो अभी म्यूचुअल फंडों में आया ही नहीं है। अभी हाल में जो दो आईपीओ आये, उनमें भी खुदरा निवेशकों के आवेदन बहुत नहीं आये, मगर संस्थागत निवेशकों और एचएनआई के आवेदन 30-40 गुणा तक आये। इन बड़े निवेशकों के पास इक्विटी के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है।
जहाँ तक खुदरा निवेशकों की बात है, उनमें अभी आत्मविश्वास कम है। वह अभी थोड़ा रहने वाला है। मैं इसे बड़े और खुदरा निवेशकों के बदले ज्यादा जानकारी और कम जानकारी वाले निवेशकों के रूप में देखना चाहूँगा। ज्यादा जानकारी वाले निवेशक सही समय पर आते हैं और पैसे बनाते हैं।
अभी निवेशक के पास विकल्प क्या है? या तो मैं पैसा बैंक में रखे रहूँ, लेकिन मुझे पता है कि बैंक में पैसा रखने पर मेरी संपदा कम होती है। मेरे पास 100 रुपया है तो मैं वो पूरे 100 रुपये बैंक में नहीं रखने वाला हूँ। मैं अपॉर्चुनिटीज फंड या लिक्विड फंड में डाल कर रखूँगा या बैंक में रखूँगा। लेकिन कितना - 10%, 15% और बहुत हुआ तो 25% रखूँगा। घरेलू पैसे का प्रवाह बना हुआ है, वह कहाँ जायेगा? इसलिए घरेलू स्तर पर मुझे बहुत चुनौती नहीं दिखती है। इसके अलावा पेंशन फंड का भी लंबी अवधि का निवेश आना शुरू हो गया है। उनके 4,000-5,000 करोड़ रुपये का निवेश आयेगा। जो भी लंबी अवधि के निवेशक हैं, उनके पास निवेश बनाये रखने की शक्ति है। पेंशन फंड की भूमिका भी कुछ वैसी होगी, जैसी एलआईसी की रहती है। उसके अलावा यह सीमा लगी हुई है कि सेंसेक्स और निफ्टी के शेयरों के अलावा कहीं और जाना नहीं है। म्यूचुअल फंडों पर दबाव रहता है प्रदर्शन अच्छा करने का। उस तरह का दबाव पेंशन फंड के निवेश पर नहीं है और वे खरीद कर काफी लंबे समय तक रख सकते हैं।
निवेश के लायक चुनिंदा क्षेत्र
निवेश के लिहाज से मैं अभी चुनिंदा रूप से बुनियादी ढाँचा क्षेत्र पर ध्यान दे रहा हूँ, उसमें खास तौर पर इंजीनियरिंग, हेवी इंजीनियरिंग और पावर की ओर देख रहा हूँ। इसके अलावा उन उद्योगों पर ध्यान है, जिन पर वैश्विक कमोडिटी चक्र का असर नहीं होता है, जैसे कि सीमेंट है। खपत आधारित कहानियों में मँझोली ऑटो पुर्जा कंपनियाँ हैं। मैं मँझोली श्रेणी की ही बात कर रहा हूँ। उन हाउसिंग फाइनेंस या एनबीएफसी कंपनियों को देखा जा सकता है, जो एफोर्डेबल हाउसिंग या सस्ते मकानों की श्रेणी में सक्रिय हैं। खपत की कहानी के आधार पर एफएमसीजी कंपनियों को लिया जा सकता है। इनमें ऊँचे मूल्यांकन की समस्या मँझोले शेयरों में उतनी नहीं है और वे ऊपरी स्तरों से नीचे भी आये हैं। उनमें वृद्धि भी अच्छी रहेगी। दवा क्षेत्र में चुनौतियाँ हैं, क्योंकि वहाँ मूल्यांकन ऊँचे हो गये हैं।
आईटी का कमोडिटी चक्र से संबंध नहीं है, पर वह वैश्विक बाजार से जुड़ा है। आईटी पर अभी दो बातों का असर रहेगा। एक तो इसका वैश्विक परिदृश्य से संबंध है, दूसरे मुद्रा (करंसी) की विनिमय दर का। इसलिए वहाँ थोड़ी सुस्ती रहेगी। उसकी चाल इस बात पर निर्भर रहेगी कि रुपये की चाल कैसी रहती है। इसलिए अभी आईटी में निवेश का यह सही समय नहीं है। उसमें उतार-चढ़ाव बना रहेगा।प्रदीप गुप्ता, वाइस चेयरमैन, आनंद राठी फाइनेंशियल सर्विसेज (Pradeep Gupta, Vice Chairman, Anand Rathi Financial Services)

(शेयर मंथन, 28 दिसंबर 2015)

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