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सर्वोच्च न्यायालय में टाटा स्टील (Tata Steel) के खिलाफ भूषण स्टील प्रमोटरों की अपील नामंजूर

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने भूषण स्टील (Bhushan Steel) के तत्कालीन प्रवर्तकों की टाटा स्टील (Tata Steel) के खिलाफ अपील नामंजूर कर दी है।

भूषण स्टील के तत्कालीन प्रवर्तक नीरज सिंघल और बृज भूषण सिंघल ने 2018 में टाटा स्टील में कंपनी के विलय के बाद अपनी दो फीसदी की हिस्सेदारी बरकरार रखने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत में अपील दायर की थी।
सिंघल की अपील खारिज करते हुए न्यायाधीश एमआर शाह की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि इस मामले में वे नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्युनल (एनसीएलटी) और नेशनल कंपनी लॉ एपिलेट ट्रिब्युनल (एनसीएलएटी) के नजरिये से पूरी तरह सहमत हैं। पीठ ने कहा कि अगर एनसीएलएटी और इस अदालत में अपीलकर्ता की ओर से पेश मामले को मंजूरी दी जाती है तो हमारा मानना है कि रेजोल्यूशन प्लान (आरपी) व्यावहारिक नहीं रह सकता है।
सिंघल बंधुओं ने एनसीएलएटी के 7 मार्च के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसमें अपीलीय अदालत ने सिंघल बंधुओं को अपने ढाई करोड़ शेयर दो रुपये प्रति शेयर की दर से नये मालिक टाटा स्टील को बेचने का फैसला सुनाया था। सिंघल बंधुओं ने सुप्रीम कोर्ट में अपने अधिवक्ता हरिन पी रावल के माध्यम से कहा कि एनसीएलटी ने बीते साल अक्तूबर में गलती से यह व्यवस्था दी थी कि आरपी उन्हें कंपनी में किसी भी तरह से शेयरधारक बने रहने की इजाजत नहीं देता है। दरअसल, आरपी की मंजूरी के समय ही उन्हें कंपनी में किसी तरह का स्थान नहीं दिया जाना चाहिए था।
टाटा स्टील की तरफ से अधिवक्ता एएम सिंघवी ने सिंघल बंधुओं की अपील के खिलाफ सु्प्रीम कोर्ट में कहा कि कंपनी में उनकी हिस्सेदारी बरकरार रखने की अपील न सिर्फ आरपी के मानकों का उल्लंघन है, बल्कि स्वीकृत आरपी के कार्यान्वयन में रुकावट भी है।
एसबीआई की अपील पर एनसीएलटी ने 2017 में भूषण स्टील के खिलाफ दीवालिया प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया था। कंपनी पर देनदारों का 59,000 करोड़ रुपये का बकाया था। अपीलीय अदालत ने मई 2018 में टाटा स्टील के 35,000 करोड़ रुपये के आरपी को मंजूरी प्रदान कर दी थी।
(शेयर मंथन, 04 अक्तूबर 2022)

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