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इस टेलीकॉम नाटक में जीता कौन, हारा कौन?

राजीव रंजन झा : सफलता के अपने किस्सों को ही नष्ट करना सीखना हो तो आप भारत सरकार के पास आयें और खास कर दूरसंचार विभाग चले आयें।

टेलीकॉम क्रांति का दम भरने वाली सरकार ने इस क्षेत्र की लुटिया डुबाने में अपनी ओर से कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रखी है। लेकिन अगर इस क्षेत्र की लुटिया डूबेगी तो सरकार का खजाना भी कैसे भरेगा? यही दिख रहा है स्पेक्ट्रम की ताजा नीलामी में। नीलामी पूरी हो चुकी है, और सरकार को अपनी ठंडी उम्मीदों के मुकाबले भी एक चौथाई रकम तक नहीं मिल सकी। इस नीलामी में सरकार पहले ही मान रही थी कि उसे 3जी जैसे उत्साह की उम्मीद नहीं है। सरकारी हलकों में माना जा रहा था कि शायद 40,000 करोड़ रुपये तक इस नीलामी से मिल सकेंगे। मिले महज 9407 करोड़ रुपये। दीवाली में सरकार की यह सजी-धजी दुकान ग्राहकों के लिए तरसती रही!
हाल के इस नाटक में क्या टेलीकॉम कंपनियाँ सरकार को कुछ दिखाना चाहती थीं? क्या सरकार अदालत को कुछ दिखाना चाहती थी? क्या टीआरएआई अदालत और सरकार को कुछ दिखाना चाहती थी? कौन किसे क्या दिखाना चाहता था, यह मुझे समझ में नहीं आया। पर इतना समझ में आ रहा है कि सतत जारी टेलीकॉम नाटक के इस ताजा अंक के अंत में क्या हो रहा है। एक समूह जीता है, एक समूह हारा है।
जीते कौन? वे लोग जिनका साम्राज्य संभावित खतरों से बच गया। वे चार-पाँच लोग, जिन्हें इस बाजार में चार-पाँच से ज्यादा खिलाड़ियों की मौजूदगी सेहत के लिए नुकसानदेह लगती है। चार-पाँच लोगों के बीच कुछ आपसी समझदारी बना पाना आसान होता है। दिक्कत तब होने लगी थी कि जब 10-12 खिलाड़ी मैदान में उतर गये थे। उतर ही नहीं गये थे, बल्कि अच्छे से खेलने भी लगे थे। उन खिलाड़ियों के चुनाव में जो धाँधली थी, उस पर पहले कई बार लिखा है। इसलिए दोहराने का कोई फायदा नहीं। लेकिन फिलहाल मैदान से फालतू खिलाड़ी बाहर होते दिख रहे हैं। मैदान साफ हो रहा है।
नहीं समझ पाये जीतने वाले इस समूह को? आज के शेयर भावों को देख लीजिए, अंदाजा लग जायेगा। भारती एयरटेल आज सुबह करीब पौने पाँच फीसदी तक चढ़ने के बाद अभी करीब पौने तीन फीसदी ऊपर चल रहा है। आइडिया सेलुलर पौने चार फीसदी ऊपर चल रहा है।
हारे कौन? आम ग्राहक, जिन्हें आने वाले दिनों में शायद खराब सेवाओं के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़े। दरें बढ़ेंगी स्पेक्ट्रम की ऊँची कीमत के नाम पर, लेकिन इसका असली कारण यह होगा कि बाजार में प्रतिस्पर्धा कम होगी। उसी स्पेक्ट्रम की कमी के नाम पर सेवाओं की गुणवत्ता कमजोर होती जायेगी। आप कंपनी से शिकायत करेंगे तो वह कहेगी कि हम क्या करें, सरकार की नीतियाँ ऐसी ही हैं। सरकार से शिकायत करेंगे तो वह कहेगी कि हमने तो अदालत के फैसले के मुताबिक सब कुछ खुले बाजार और खुली नीलामी पर छोड़ दिया है। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 15 नवंबर 2012)

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