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‘सयानों’ को पूजता देश

राजीव रंजन झा

“चाहे जो भी हो गया, तुम राजाओं के राजा हो। हमें उम्मीद है कि तुम अपना खोया वैभव फिर से पा लोगे।“ यह लिखा गया है कॉर्पोरेट भारत के आज के सबसे बड़े खलनायक बी रामलिंग राजू के बारे में। पढ़ कर ताज्जुब हो रहा है! यकीन न हो तो आज का हिंदुस्तान टाइम्स उठा कर देख लें, जिसमें बाकायदा ऐसे एक बैनर की तस्वीर छापी गयी है। यह बैनर लगा है हैदराबाद से 400 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में राजू परिवार के पैतृक गाँव गरगपरु में, जिस पर दोनों राजू भाइयों की फोटो भी छपी है। राजू की गिरफ्तारी से इस गाँव के लोग इतने उदास हैं कि उन्होंने मकर संक्रांति का पर्व भी नहीं मनाया।

यह केवल इस एक गाँव की अनोखी बात नहीं है। शायद यह बात हमारे समाज के रक्त-गुणों का हिस्सा है। शायद इसीलिए बाकी संसार में जलाये जाने वाले रावण को उसके गृह-क्षेत्र में पूजा जाता है। शायद इसीलिए हम तमाम भ्रष्ट और अपराधी नेताओं को केवल इस नाम पर वोट देते रहते हैं कि वह हमारी जाति का है या हमारा अपना है। अपने लोगों के सौ खून हम माफ कर सकते हैं। हाल में दिल्ली से सटे नोयडा में एक गाँव के कुछ लड़कों ने एमबीए की एक छात्रा और उसके साथी की कार को कब्जे में लेकर उनका अपहरण कर लिया और अपने गाँव में ले जाकर छात्रा का सामूहिक बलात्कार किया। इस मामले में सबसे चौंकाने वाली बात रही गाँव के लोगों की प्रतिक्रिया। गाँव के लोगों ने समाचार चैनलों पर दावा करना शुरू कर दिया कि पुलिस ने उनके गाँव के बेकसूर लड़कों को जबरन फंसा दिया है। जो लोग मान रहे थे कि यह घटना घटी है, उनके लिए भी यह कोई बड़ी बात नहीं थी। गाँव के सरपंच ने एक अखबार से कहा कि बस बलात्कार ही तो किया है, इसमें कौन-सी बड़ी बात हो गयी है!
इसलिए अगर अपने गाँव में हर मकर संक्रांति पर मुर्गों की लड़ाई प्रायोजित करने वाले राजू की गिरफ्तारी से उस गाँव के लोग उदास हैं, तो इसमें कोई ताज्जुब नहीं। हम सब अपने-अपने राजुओं की तरफदारी करते सारा जीवन गुजारते हैं, क्योंकि हम यही मानते हैं कि जो पकड़ा गया वही चोर है और जो नहीं पकड़ा गया वह सयाना है। ऐसे सयानों को हम तब तक पूजते रहते हैं, अपना नायक मानते रहते हैं, जब तक कि वह कहीं पकड़ा न जाये। और अगर पकड़ा जाये तो भी अगर वह ‘अपना’ है, तो हम हमेशा उसके साथ हैं।

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