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भारत की विकास दर 2020-21 में -0.9% तक गिरने की आशंका : सीआईआई

देश के प्रमुख उद्योग संगठन भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industry) ने वित्त वर्ष 2020-21 में भारत की विकास दर यानी जीडीपी बढ़ने की दर -0.9% से 1.5% के दायरे में रहने की संभावना जतायी है।

सीआईआई (CII) ने गुरुवार 23 अप्रैल को जारी बयान में कहा कि 3 मई को लॉकडाउन के दूसरे चरण की अवधि पूरी होने तक इसके 40 दिन पूरे हो चुके होंगे। सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा है कि व्यवसायों में आये गतिरोध से अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान के चलते वित्त वर्ष 2020-21 में जीडीपी वृद्धि दर पिछले कई दशकों के सबसे निचले स्तर पर रहने वाली है।
सीआईआई ने कहा है कि लॉकडाउन में अधिकांश क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियाँ काफी घट गयी हैं। विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) में से केवल खाद्य प्रसंस्करण (फूड प्रोसेसिंग), दवा और चिकित्सा उपकरण क्षेत्रों में कामकाज हो रहा है। निर्माण (कंस्ट्रक्शन) और खनन गतिविधियाँ पूरी तरह रुक गयी हैं। सेवाओं में अधिकांश व्यापार, परिवहन और सेवा-सत्कार (हॉस्पिटैलिटी) क्षेत्र बंद हैं। वित्त, आईटी और सरकारी सेवाएँ आंशिक रूप से चल रही हैं। बिजली क्षेत्र में कामकाज जारी है, लेकिन लॉकडाउन के चलते माँग काफी घट गयी है।
निवेश गतिविधियों के बारे में सीआईआई का कहना है कि इसमें कोई महत्वपूर्ण सुधार की आशा नहीं है, क्योंकि क्षमता उपयोग अपने वांछित स्तर से नीचे है। खपत संबंधी माँग सुस्त रहने वाली है, क्योंकि लोगों की आय पर असर पड़ा है। बाहरी मोर्चे पर देखें तो दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएँ इस महामारी से त्रस्त हैं। डब्लूटीओ के आकलन के अनुसार 2020 में वैश्विक व्यापार 13 से 32% तक घटने की आशंका है। बनर्जी कहते हैं कि इस स्थिति में न केवल अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए, बल्कि कोई मानवीय संकट रोकने के लिए भी सरकारी हस्तक्षेप महत्वपूर्ण है।
सीआईआई ने 'आर्थिक रूप से सँभलने की एक योजना' नाम से एक परचे में तीन अलग-अलग परिदृश्य में वृद्धि की संभावनाओं का आकलन किया है।
इसमें आधारभूत (बेसलाइन) परिदृश्य यह है कि सालाना जीडीपी में मात्र 0.6% वृद्धि दर्ज होगी, क्योंकि लॉकडाउन अवधि के बाद भी वस्तुओं और व्यक्तियों की मुक्त आवाजाही पर रोक-टोक लगी रहने से आर्थिक गतिविधियाँ सीमित रहेंगी। इसके चलते आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) में बाधाएँ आयेंगी, निवेश गतिविधियों के सँभलने की गति सुस्त रहेगी, छोटी अवधि में श्रमिकों की कमी होगी और घरेलू आय में कमी के कारण खपत-संबंधी माँग हल्की रहेगी।
आशावादी परिदृश्य यह है कि लॉकडाउन अवधि बीतने के बाद चीजें ज्यादा तेजी से सँभलेंगी। उसकी सर्वोत्तम स्थिति में सालाना जीडीपी में 1.5% की वृद्धि हो सकेगी।
गतिरोध अधिक लंबे समय तक चलने के परिदृश्य में मौजूदा हॉट-स्पॉट चिह्नित क्षेत्रों में प्रतिबंध ज्यादा समय तक बने रहेंगे और नये क्षेत्र हॉट-स्पॉट चिह्नित होते रहेंगे, जिससे आर्थिक गतिविधियाँ बार-बार रुकती-चलती रहेंगी। इस तीसरे परिदृश्य में सालाना जीडीपी 0.9% घट सकती है, यानी ऋणात्मक वृद्धि दर्ज होगी।
बनर्जी कहते हैं, 'इसमें संदेह नहीं है कि अर्थव्यवस्था उथल-पुथल वाले समय से गुजर रही है, और इस संकट से बाहर निकलने के लिए भारत को खर्च करना होगा। इस चरण में सरकार को वह सब जरूर करना चाहिए जो इस संकट से उबरने के लिए आवश्यक है।'
सीआईआई ने सुझाव दिया है कि सरकार को तत्काल ही राजकोषीय (फिस्कल) रूप से हस्तक्षेप करना चाहिए। सीआईआई ने सरकार से कहा है कि वह पहले से घोषित 1.76 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहनों के अलावा जन-धन खाताधारकों को कुल दो लाख करोड़ रुपये की राशि भी हस्तांतरित करे। इसके अलावा, सीआईआई ने कहा है कि बैंकों की ओर से 4-5% ब्याज पर अतिरिक्त कामकाजी पूँजी सीमाएँ (वर्किंग कैपिटल लिमिट) दी जानी चाहिए, जो ऋण लेने वाले नियोक्ता के अप्रैल-जून के वेतन-भुगतान के बराबर हो।
सीआईआई के परचे में 1.50 लाख करोड़ रुपये की एक निधि या एसपीवी बनाने का सुझाव भी दिया गया है, जो कंपनियों के ए रेटिंग और इससे ऊँची रेटिंग वाले एनसीडी या बॉन्डों को खरीदे। इस निधि को शुरू करने के लिए सरकार 10,000-20,000 करोड़ रुपये की आरंभिक पूँजी दे सकती है और इस निधि में बाकी निवेश बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों, जैसे एलआईसी, पीएफसी, ईपीएफ, एनआईआईएफ, आईआईएफसीएल वगैरह की ओर से हो सकता है। इससे उद्योग जगत को पर्याप्त तरलता (लिक्विडिटी या आसान शब्दों में नकदी) उपलब्ध होगी, और सरकार का अपना पैसा भी कम लगेगा।
छोटे-मँझोले उद्यमों (एमएसएमई) के लिए सीआईआई ने सुझाव दिया है कि एक क्रेडिट प्रोटेक्शन स्कीम लायी जाये, जिसमें ऋण के 75-80% हिस्से की गारंटी आरबीआई दे। मतलब यह कि अगर कर्जदार भुगतान में चूक करे तो आरबीआई वह ऋण खरीद ले और बैंक को ऋण का 75-80% हिस्सा चुका दे, जिससे बैंक का जोखिम सीमित रहे। उद्योग एवं व्यापार को दिये जाने वाले ऋणों के लिए सिडबी गारंटी दे, जबकि कृषि प्रसंस्करण क्षेत्र के ऋणों की गारंटी नाबार्ड दे सकता है।
बनर्जी कहते हैं, "अर्थव्यवस्था सँभालने के लिए छोटी अवधि में सरकारी खर्च बढ़ाये बिना सरकारी राजस्व भी डगमगायेगा, और भविष्य में ऊँचे घाटे की समस्या बनी रहेगी।" (शेयर मंथन, 23 अप्रैल 2020)

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