राजीव रंजन झा : माननीय मुलायम सिंह यादव सरकार के हजार हाथों और सीबीआई से डरते हैं, जबकि बाजार और उद्योग जगत राजनीतिक अस्थिरता से डरता है।
यह कहना भी गलत नहीं होगा कि इस समय केंद्र में राजनीतिक स्थिरता की चाबी मुलायम सिंह के हाथों में दिख रही है, क्योंकि एक-एक करके यूपीए सरकार को सहारा देने वाले कई बड़े सहयोगी दलों ने उसका दामन छोड़ दिया है। बाजार इस समय उलझन में है कि अगले लोकसभा चुनाव कब होंगे। शायद सच तो यह है कि खुद राजनीतिक दल भी इस बारे में उलझन में ही हैं और केवल अटकलबाजियों का बाजार गर्म है। मुलायम सिंह यादव कई बार कह चुके हैं कि वे सरकार नहीं गिरायेंगे, लेकिन कांग्रेस खुद ही अक्टूबर-नवंबर के आसपास चुनाव करा सकती है। अभी-अभी लालकृष्ण आडवाणी ने भी कहा कि लोकसभा चुनाव साल 2013 के अंदर ही हो जाने की काफी संभावना है।
राजनीतिक उलटफेर की आशंकाएँ बाजार को पहले भी परेशान करती रही हैं। लेकिन हाल में बाजार कुछ आश्वस्त हो चला था कि कांग्रेस वाकई मई 2014 तक के समूचे कार्यकाल तक सरकार चलाना चाहती है और वह इसमें सफल भी रहेगी। इस आधार पर बाजार ने उम्मीद लगायी कि सरकार आर्थिक सुधारों की गाड़ी को बीच के समय में और आगे बढ़ा पायेगी। लेकिन मार्च के अंत और अप्रैल की शुरुआत में दिखी राजनीतिक पैंतरेबाजी ने बाजार के इस आकलन को जोखिम में डाल दिया है।
द्रमुक को अरसे से यूपीए से पल्ला झाड़ने का एक बहाना चाहिए था। भ्रष्टाचार के मामलों में लगी चोटों से घायल हो कर यूपीए से बाहर जाना राजनीतिक रूप से उसके लिए उपयुक्त नहीं था। इसलिए द्रमुक ने श्रीलंका जैसा भावनात्मक मुद्दा मिलने का इंतजार किया और इस मौके का इस्तेमाल कर लिया।
द्रमुक के हट जाने के बाद ऐसी स्थिति बन चुकी है, जिसमें मुलायम सिंह यादव या मायावती दोनों में से किसी के भी हाथ खींचने पर केंद्र सरकार तकनीकी रूप से अल्पमत में आ जायेगी। बाजार को मायावती से ज्यादा डर मुलायम सिंह यादव की पैंतरेबाजी से है। मुलायम बार-बार भले ही कहते रहे हैं कि वे सरकार को गिराना नहीं चाहते और समर्थन वापस नहीं लेंगे, लेकिन उनकी बातों पर भरोसा शायद ही किसी को हो।
इसलिए यह मान लेना चाहिए कि भारतीय शेयर बाजार अब राजनीतिक अस्थिरता के जोखिम का पहलू देखते हुए ही आगे की चाल तय करेगा। इसके भावों में राजनीतिक अस्थिरता की छूट (डिस्काउंट) जुड़ जायेगी। लेकिन क्या यह राजनीतिक अस्थिरता अगले लोकसभा चुनावों से खत्म हो जायेगी? बाजार को डर आने वाले दिनों में यह डर सतायेगा कि कहीं चुनावों के बाद की स्थिति ज्यादा अस्थिर न हो जाये।
द्रमुक को अरसे से यूपीए से पल्ला झाड़ने का एक बहाना चाहिए था। भ्रष्टाचार के मामलों में लगी चोटों से घायल हो कर यूपीए से बाहर जाना राजनीतिक रूप से उसके लिए उपयुक्त नहीं था। इसलिए द्रमुक ने श्रीलंका जैसा भावनात्मक मुद्दा मिलने का इंतजार किया और इस मौके का इस्तेमाल कर लिया।
द्रमुक के हट जाने के बाद ऐसी स्थिति बन चुकी है, जिसमें मुलायम सिंह यादव या मायावती दोनों में से किसी के भी हाथ खींचने पर केंद्र सरकार तकनीकी रूप से अल्पमत में आ जायेगी। बाजार को मायावती से ज्यादा डर मुलायम सिंह यादव की पैंतरेबाजी से है। मुलायम बार-बार भले ही कहते रहे हैं कि वे सरकार को गिराना नहीं चाहते और समर्थन वापस नहीं लेंगे, लेकिन उनकी बातों पर भरोसा शायद ही किसी को हो।
इसलिए यह मान लेना चाहिए कि भारतीय शेयर बाजार अब राजनीतिक अस्थिरता के जोखिम का पहलू देखते हुए ही आगे की चाल तय करेगा। इसके भावों में राजनीतिक अस्थिरता की छूट (डिस्काउंट) जुड़ जायेगी। लेकिन क्या यह राजनीतिक अस्थिरता अगले लोकसभा चुनावों से खत्म हो जायेगी? बाजार को डर आने वाले दिनों में यह डर सतायेगा कि कहीं चुनावों के बाद की स्थिति ज्यादा अस्थिर न हो जाये। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 04 अप्रैल 2013)
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