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रुपये की चाल देगी सेंसेक्स-निफ्टी की दिशा का संकेत

राजीव रंजन झा : यह दिलचस्प है कि जिस समय सेंसेक्स पहली बार 22,000 के आँकड़े को छू रहा है, उसी समय एक डॉलर की कीमत पिछले सात महीनों के निचले स्तर पर आ गयी है, यानी रुपया सात महीनों की सबसे मजबूत स्थिति में है।

याद करें कि अगस्त 2013 के अंत में इसके एकदम विपरीत स्थिति थी। तब रुपया अपनी ऐतिहासिक कमजोरी दिखा रहा था, जबकि शेयर बाजार गोते खा रहा था। अगस्त 2013 के अंत में ही एक डॉलर की कीमत 68.81 रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर गयी थी। यही वह समय था, जब निफ्टी ने 5119 की तलहटी बनायी थी। कल निफ्टी 6562 के नये रिकॉर्ड पर पहुँचा, सेंसेक्स ने भी 22,024 का नया रिकॉर्ड चूमा और एक डॉलर की कीमत फिसल कर 60.79 रुपये तक आ गयी। हमने 12 अगस्त के बाद से अब तक डॉलर का भाव इससे ऊपर ही देखा था।

इस स्थिति को समझना जरूरी है। अगर अगस्त 2013 के एकदम विपरीत स्थिति दिख रही है तो क्या इसका मतलब यह भी है कि हम शेयर बाजार और रुपये दोनों की चाल एक बार फिर यहाँ से पलटने वाली है? या फिर शेयर बाजार अभी कुछ और ऊपर जायेगा और साथ ही रुपया भी अभी कुछ और मजबूत होगा? बाजार का शिखर और रुपये में डॉलर की कीमत की तलहटी बनने और दिशा बदलने का वक्त आने में क्या अभी कुछ समय बाकी है?

शेयर बाजार में सेंसेक्स-निफ्टी ने पिछले दिन की तीखी उछाल के बाद कल सोमवार को जरा सुस्ताने की कोशिश की। दोनों एक दायरे में सिमटे रहे और अंत में काफी हद तक सपाट बंद हुए। सेंसेक्स केवल 15 अंक ऊपर 21,935 पर बंद हुआ, जबकि निफ्टी 11 अंक ऊपर 6537 पर। लेकिन डॉलर और रुपये के चार्ट में कल भी गहमागहमी जारी रही, अच्छा-खासा उतार-चढ़ाव दिखा। एक डॉलर की कीमत ऊपर 61.33 रुपये तक गयी और नीचे 60.79 रुपये तक भी आयी।

अगर डॉलर और रुपये का चार्ट देखें तो पिछले कई महीनों से एक डॉलर की कीमत मोटे तौर पर 61 रुपये से 63 रुपये के दायरे में चलती रही है। पिछले साल अक्टूबर से ऐसा ही रुझान रहा है, केवल बीच में नवंबर 2013 में इसने 63 रुपये के ऊपर जाने की कोशिश की, लेकिन जल्दी ही अपने इस दायरे में लौट आया।

अब अगर डॉलर 61 रुपये के नीचे अटका रहा तो यह अक्टूबर 2013 से अब तक के दायरे से नीचे फिसल जाने का संकेत होगा। इसका सीधा मतलब यह होगा कि डॉलर की कीमत नीचे की दिशा पकड़ेगी और रुपया मजबूत होगा। क्या यह अगस्त-सितंबर 2013 जैसी चाल दोहरायेगा, जब डॉलर की कीमत 68.81 के शिखर से फिसल कर लगभग 61 रुपये पर लौट आयी थी, या फिर अक्टूबर 2013 से अब तक की तरह एक निचले दायरे में सिमट जायेगा?

अगर इसने एक नये निचले दायरे में बँधने की कोशिश की तो यह दायरा स्वाभाविक रूप से 59-61 का हो सकता है। गौर करें कि अप्रैल 2013 के अंत में 53.56 रुपये की तलहटी से अगस्त 2013 में 68.81 रुपये तक की उछाल की 50% वापसी 61.18 पर है और बीते पाँच महीनों से डॉलर की कीमत मोटे तौर पर इसी स्तर पर सहारा लेती रही है। यह सहारा पक्के तौर पर टूटने पर 61.8% वापसी के स्तर 59.38 रुपये की ओर फिसलना स्वाभाविक होगा। इसीलिए अब मोटे तौर पर 59-61 का दायरा बन सकता है। लेकिन अगर ऐसे किसी दायरे में बँधने के बदले डॉलर की कीमत ने नीचे का रुझान जारी रखा तो यह 80% वापसी के स्तर 56.61 की ओर भी जा सकता है।

रुपये में इस तरह की मजबूती आने का एक सीधा मतलब यह होगा कि शेयर बाजार में भी मजबूती जारी रह सकती है। वैसी स्थिति में निफ्टी के लिए 6700 और 7000 की ओर बढ़ना आसान हो जायेगा।

लेकिन दूसरी संभावना पर भी नजर रखने की जरूरत है। अगर डॉलर इन्हीं स्तरों पर थोड़ा-ऊपर नीचे छकाने के बाद वापस सँभलता दिखे, यानी एक बार फिर से 61 रुपये के इर्द-गिर्द इसे सहारा मिल जाये तो यह वापस 38.2% वापसी यानी 62.98 या मोटे तौर पर 63 रुपये की ओर जाने का प्रयास कर सकता है। इस स्थिति का मतलब यह होगा कि सेंसेक्स और निफ्टी को भी इन स्तरों से ज्यादा ऊपर जाने में परेशानी होगी और यहाँ छोटी अवधि के लिए इन्हें जरा सुस्ताना होगा, ठहरना पड़ेगा। Rajeev Ranjan Jha

(शेयर मंथन, 11 मार्च 2014) 

 

 

 

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