विजय मंत्री, बाजार विश्लेषक (Vijai Mantri, Market Expert) : यह बजट औसत से बेहतर रहा है। इस बजट में पेंशन और बीमा के लिए रखी गयी बातें सबसे बेहतर लग रही हैं। साथ ही काले धन और बेनामी पर लगाम कसने की कोशिश की गयी है।
ये सब छोटे-छोटे कदम हैं, पर इनका असर दूरगामी होगा। पेंशन योजना में निवेश पर कर छूट बढ़ाने से पेंशन क्षेत्र को तेजी मिलेगी। सामाजिक सुरक्षा के जो प्रावधान किये गये हैं, वे लंबी अवधि में काफी सकारात्मक होंगे। काले धन पर कही गयी बातें काफी अच्छी हैं। अब देखना है कि इन पर अमल कैसा होता है।
अगर रियल एस्टेट पर ज्यादा अंकुश लगाया जाये और बैंक लॉकरों में रखी गयी चीजों की जानकारी कर अधिकारियों को उपलब्ध कराना अनिवार्य किया जाये तो यह ज्यादा प्रभावी होगा। काला धन केवल स्विस खातों में नहीं रहता, यहाँ बेनामी, रियल एस्टेट और लॉकरों में भी रहता है। देश में जितने करदाता हैं, उनसे कहीं ज्यादा संख्या लॉकरों की है। काले धन पर अभी जो कानून बनाये जाने वाले हैं, वे कितने प्रभावी रहेंगे, यह उन पर होने वाले अमल से तय होगा।
बाजार को अगली दिशा इस बजट से नहीं, बल्कि निवेश में तेजी आने और कंपनियों की आय के आधार पर मिलेगी। निवेश बढ़ने के मामले में अभी वास्तविक परिणाम नहीं मिल रहे हैं। इस बजट में सरकारी निवेश बढ़ाने के प्रस्ताव दूरगामी हैं। हालाँकि बाजार के लिए तात्कालिक रूप से कंपनियों के कारोबारी नतीजे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।
इस बजट से विकास दर को तत्काल बढ़ावा मिलता नहीं दिख रहा है। इसमें 6-12 महीने का समय लग सकता है। यह बजट विकास को थोड़ा बढ़ावा दे रहा है। बुनियादी ढाँचे पर खर्च में जो वृद्धि की गयी है, वह पर्याप्त तो नहीं है। यह वृद्धि अच्छी बात है, पर बाजार अपने बुनियादी पहलुओं से कहीं आगे निकल आया है। मौजूदा मूल्यांकन को उचित ठहराने के लिए विकास दर को कहीं ज्यादा ऊपरी स्तर पर और ज्यादा तेज होने की जरूरत है। मगर शेयर बाजार बजट की प्राथमिकता नहीं है और न ऐसा होना चाहिए।
गार को टालने की घोषणा उम्मीदों के अनुरूप ही रही है। जीएसटी के बारे में ऐसा लगता है कि यह कई सालों से हमेशा एक साल बाद लागू होता नजर आता है। अभी देखना होगा कि क्या वित्त मंत्री सारे राज्यों को साथ ला पाते हैं।
इस बजट से सबसे बड़ी निराशा यह रही कि आशाएँ पूरी नहीं हुईं। वेतनभोगी वर्ग के लिए कुछ नहीं हुआ। बजट में विकास को बढ़ावा देना और करों को घटाना चाहिए था। (शेयर मंथन, 01 मार्च 2015)