राजीव रंजन झा
बाजार को बस चार दिनों की तेजी की जरूरत होती है नयी ऊँचाइयों पर निगाहें टिका लेने के लिए। अभी पिछले हफ्ते ही बाजार ने निफ्टी के 3,400-3,500 तक जाने की उम्मीदें बांध ली थीं। यह बड़ा स्वाभाविक भी था, क्योंकि तब निफ्टी 3,100 के ऊपर कई दिनों तक टिकता नजर आ रहा था। और अब वापस वही बाजार फिर से निराशा के सागर में गोते लगा रहा है और निफ्टी को 2,100 के नीचे जाने के डर से मरा जा रहा है। कुछ लोग तो 1,800 के स्तर भी देख रहे हैं।
तो इसका मतलब क्या है? क्या बाजार में इस समय कारोबारी दायरा इतना फैल चुका है कि यह 100 के पैमाने पर 50 से लेकर 100 तक का बन रहा है? आखिर हम ऊपर की ओर अगर 3,500 या 3,600 को ऊपरी सीमा मान लें और नीचे 1,800 की संभावना को लेकर चलें, तो इसका मतलब यही बैठता है ना?
वास्तव में इसका मतलब यही है कि बाजार में भरोसे की कमी हद से ज्यादा है और बाजार की अगली दिशा वास्तव में क्या होगी, इसे लेकर 100% असमंजस कायम है। इस असमंजस की वजहें हम सबको मालूम हैं। जब तक कंपनियों की भविष्य की आमदनी को लेकर बाजार आश्वस्त नहीं होता, तब तक बाजार इसी तरह तुनकमिजाज बना रहेगा। अगर इन्फोसिस का ही ताजा उदाहरण लें, तो कंपनी के शानदार नतीजों के बावजूद काफी विश्लेषक भविष्य की आमदनी को लेकर ज्यादा उम्मीदें नहीं लगाना चाहते। कंपनी ने तीसरी तिमाही में अपने मुनाफे में सालाना आधार पर 33.3% की बढ़त दर्ज की है। इसी तरह 2008-09 की चौथी तिमाही का ईपीएस अनुमान 2007-08 की चौथी तिमाही से 21.4% ज्यादा है। लेकिन जब मैंने कुछ विश्लेषकों से बात की तो वे पूरे भरोसे के साथ यह मानने को तैयार नहीं थे कि 2009-10 के दौरान कंपनी की ईपीएस 20-25% की दर से बढ़ सकेगी।
दरअसल सारी कहानी यही है। अगर कंपनी की ईपीएस 20-25% की दर से बढ़ने का पक्का भरोसा हो, तो शेयरों के इन भावों पर अटके रहने की कोई वजह भी नहीं रहेगी। यहाँ इन्फोसिस का जिक्र केवल एक उदाहरण के तौर पर है। इन्फोसिस एक ऐसी कंपनी है, जिसके कामकाज और विश्वसनीयता पर बाजार को काफी भरोसा रहा है। जब उसके भविष्य के प्रदर्शन को लेकर बाजार इतने असमंजस में है, तो बाकी कंपनियों के बारे में छायी अनिश्चितता को लेकर क्या कहा जाये! लेकिन अक्टूबर-दिसंबर की तिमाही के नतीजे इस अनिश्चितता को कुछ हद तक कम करेंगे, या शायद लोग अगली तिमाही का भी इंतजार करना पसंद करें।