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भारत की जीडीपी 5.6% की दर से बढ़ेगी: ईआईयू

Manoj Vohra, EIUजानी-मानी अंतरराष्ट्रीय आर्थिक पत्रिका इकोनॉमिस्ट की इकाई इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) का मानना है कि साल 2008-09 में भारत की जीडीपी केवल 5.6% की दर से बढ़ेगी। वैश्विक मंदी का असर केवल भारत पर ही नहीं, बल्कि चीन पर भी पड़ेगा और उसकी विकास दर घट कर केवल 6% रह जायेगी। यह 1990 के बाद से इसकी सबसे धीमी  बढ़त होगी। हालाँकि भारत सरकार का मानना है कि देश की आर्थिक विकास दर इस कारोबारी साल में 7% रहेगी, लेकिन ईआईयू भारत सरकार के इस अनुमान सहमत नहीं है। इसका कहना है कि वैश्विक आर्थिक मंदी के साथ-साथ घरेलू कर्ज बाजार के सिकुड़ने और मांग में आयी गिरावट से भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा है, जो लगातार बढ़ता जा रहा है।

भारत में ईआईयू के निदेशक (रिसर्च) मनोज वोहरा ने कहा है कि "हाल के वर्षों में विश्व व्यापार में अच्छी बढ़त और विश्व भर में पर्याप्त नकदी उपलब्ध होने के चलते उभरते बाजारों ने काफी अच्छा दौर देखा। इसके चलते उनकी घरेलू माँग में भी इजाफा हुआ। लेकिन 2008 की दूसरी छमाही में माहौल नाटकीय रूप से बदल गया और 2009 में स्थिति इससे भी ज्यादा बिगड़ेगी।"

ईआईयू के मुताबिक इस अंतरराष्ट्रीय मंदी के चलते 2009 में वैश्विक अर्थव्यवस्था दूसरे विश्व युद्ध के बाद का सबसे खराब प्रदर्शन कर सकती है। इस शोध संस्था का अनुमान है कि 2009 में बाजार दरों के मुताबिक विश्व अर्थव्यवस्था 0.9% की गिरावट दर्ज करेगी। अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और जापान जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ 2009 में गिरावट दर्ज करेंगीं। इसके चलते साल 2009 में विश्व व्यापार में 1.5% की कमी आने का अंदेशा है।

ईआईयू का मानना है कि भारत में मौद्रिक नीति 2009 में कुछ और आसान बनायी जायेगी। इसका अनुमान है कि 2009 की पहली छमाही में आरबीआई दो बार रेपो दर को एक चौथाई फीसदी अंक घटा सकता है, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इससे ज्यादा कटौती का इच्छुक नहीं होगा। सरकारी घाटे के मामले में ईआईयू का अनुमान है भारत का बजट घाटा 2008-09 और 2009-10 में जीडीपी के 4.2% के बराबर रहेगा।

इन सबके बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सब कुछ उदासी भरा ही नहीं है। भारत विश्व की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यस्थाओं में से एक बना रहेगा। घरेलू खपत के बड़े आधार, अब भी मजबूत चल रहे वित्तीय क्षेत्र और अच्छे प्रबंधन वाली बहुत-सी मजबूत कंपनियों की बदौलत भारत इस स्थिति में दिखता है। ईआईयू ने यह भी माना है कि निर्यात पर तुलनात्मक रूप से कम निर्भर होने के चलते विश्व अर्थव्यवस्था के धीमेपन की मार भारत पर सीमित ही रहेगी। साथ ही कच्चे तेल की सस्ती कीमतों के चलते भारत को चालू खाते का घाटा कम रखने में मदद मिलेगी। घटती  महँगाई के चलते ब्याज दरों में कमी आ रही है और हाल में जो नीतिगत कदम उठाये गये हैं, उनका असर आने वाले महीनों में दिखने लगेगा। ईआईयू की टिप्पणी है कि एक तरफ जहाँ विकसित देश शून्य ब्याज दर की ओर बढ़ रहे हैं, वहीं भारत जैसे उभरते बाजार आकर्षक बने  रहेंगे।

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