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गिरवी शेयर : कितनी चिंता, कितना जोखिम

राजीव रंजन झा

गिरवी शेयरों पर चली बहस में एक दिलचस्प टिप्पणी टाटा संस के निदेशक इशात हुसैन ने की है। उनका कहना है कि शेयरों को गिरवी रखना उतना ही पुराना है, जितने पुराने पहाड़ हैं! टाटा समूह पैसे जुटाने के लिए शेयरों को गिरवी रखता रहा है और इसका कहना है कि जरूरत पड़ने पर वह आगे भी ऐसा करेगा। समूह की कई कंपनियों अपने गिरवी रखे शेयरों का ब्यौरा सामने रखा है।

हुसैन ने इस बहस में एक और नया बिंदु जोड़ा है। वे कहते हैं कि किसी कंपनी की ओर से शेयर गिरवी रखने और किसी व्यक्ति की ओर से शेयर गिरवी रखे जाने में अंतर है। शायद हुसैन बात तो सही कह रहे हैं, लेकिन सही शब्दों को नहीं चुन पाये। सारी कंपनियाँ टाटा संस नहीं होतीं। इसलिए निवेशकों को गिरवी रखे शेयरों पर मिल रही सूचनाओं की बाढ़ में यह छाँटना होगा कि शेयरों को गिरवी रखना कहाँ उचित रहा है और कहाँ जोखिम भरा।
सत्यम के गिरवी शेयरों की कहानी सामने आने के बाद बाजार में एक ऐसी हवा चली कि जिस किसी कंपनी के प्रमोटरों ने शेयर गिरवी रखे हों, उस शेयर की जबरदस्त धुलाई हो गयी। लेकिन कुछ दिनों तक यह हवा चलने के बाद अब थोड़ी थमी है। इससे लगता है कि अब बाजार ने सबको एक ही लाठी से हाँकना बंद कर दिया है।
निश्चित रूप से गिरवी रखे शेयरों की जानकारी बाजार के लिए महत्वपूर्ण रहेगी और जब भी किसी कंपनी के मामले में इसके चलते निवेशकों को कोई अतिरिक्त जोखिम दिखेगा तो वे उस पर प्रतिक्रिया भी करेंगे। लेकिन यह ठीक नहीं है कि जिस कंपनी के साथ प्रमोटरों के गिरवी शेयरों की कहानी जुड़ जाये, उसे खराब या कमजोर मान लिया जाये।
लेकिन कई मामलों में शेयरों का गिरवी होना जोखिम भरा हो सकता है। अगर प्रमोटरों के काफी शेयर गिरवी पड़े हैं, तो इसका मतलब यह भी है कि उस कंपनी में प्रमोटर के अपने हित बेहद सीमित रह गये हैं। ज्यादा गिरवी शेयरों के चलते कंपनी अचानक जबरिया अधिग्रहण की चपेट में भी आ सकती है। निवेशकों को हर मामले में अलग-अलग विश्लेषण करना होगा और देखना होगा कि किन स्थितियों में कितने शेयर गिरवी रखे गये हैं।

 

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