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बीते साल 49,795 करोड़ रुपये घट गये राष्ट्रीयकृत बैंकों के सकल डूबे कर्ज

सरकार की चार आर- रिकॉग्निशन, रिजॉल्यूशन, रीकैपिटलाइजेशन और रिफॉर्म्स- की रणनीति की वजह से पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान राष्ट्रीयकृत बैंकों के सकल डूबे कर्ज में कमी दर्ज की गयी है।

वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने मंगलवार को राज्य सभा में एक प्रश्न के उत्तर में यह बात बतायी।

वैश्विक कामकाज के बारे में भारतीय रिजर्व बैंक के आँकड़ों के मुताबिक राष्ट्रीयकृत बैंकों की ओर से दिया गया सकल कर्ज 31 मार्च 2014 को बढ़ कर 34,03,717 करोड़ रुपये हो गया था। 31 मार्च 2008 को यह राशि 11,33,137 करोड़ रुपये रही थी। इसके बाद बैंकों के साफ-सुथरे और पूरी तरह प्रावधान वाले बैलेंस शीट के लिए साल 2015 में शुरू किये गये एसेट क्वालिटी रिव्यू (एक्यूआर) से काफी मात्रा में डूबे कर्जों (एनपीए) का पता चला। एक्यूआर और उसके बाद बैंकों की ओर पारदर्शी पहचान की प्रक्रिया के माध्यम से संकटग्रस्त कर्जों को एनपीए का दर्जा दिया गया। फिर उन संकटग्रस्त कर्जों पर संभावित घाटों के लिए प्रावधान किया गया, जो पहले नहीं किया गया था। आरबीआई के मुताबिक डूबे कर्जों में बढ़ोतरी के मुख्य कारणों में शामिल हैं आक्रामक तरीके से कर्ज वितरण, कुछ मामलों में विलफुल डिफॉल्ट/ कर्ज से संबंधित धोखाधड़ी/ भ्रष्टाचार के साथ ही साथ अर्थव्यवस्था में धीमापन।

संकटग्रस्त कर्जों की एनपीए के रूप में पहचान की पारदर्शी व्यवस्था की वजह से राष्ट्रीयकृत बैंकों के सकल डूबे कर्ज (ग्रास एनपीए) 31 मार्च 2018 को बढ़ कर 6,16,586 करोड़ रुपये हो गये। 31 मार्च 2015 को यह राशि 1,92,809 करोड़ रुपये रही थी। वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा मंगलवार को राज्य सभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया गया कि उसके बाद सरकार की ओर से चार आर- रिकॉग्निशन, रिजॉल्यूशन, रीकैपिटलाइजेशन और रिफॉर्म्स- की रणनीति अपनायी गयी, जिसकी वजह से राष्ट्रीयकृत बैंकों के सकल डूबे कर्ज 31 मार्च 2019 तक 49,795 करोड़ रुपये घट कर 5,66,791 करोड़ रुपये रह गये।

आरबीआई के दिशा-निर्देशों और बैंकों के निदेशक मंडलों द्वारा अनुमोदित नीतियों के मुताबिक जिन कर्जों पर चार साल पूरा होने के बाद पूरी तरह प्रावधान कर दिये गये हैं, उन कर्जों को बैंकों के बैलेंस शीट से राइट-ऑफ के जरिये हटा दिया गया है। राइट-ऑफ किये गये इन कर्जों के कर्जदारों को इस प्रक्रिया से कोई लाभ नहीं होता, क्योंकि कर्ज की अदायगी की उनकी जिम्मेदारी बनी रहती है और कर्ज की रिकवरी की प्रक्रिया भी जारी रहती है। (शेयर मंथन, 24 जुलाई 2019)

 

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