राजीव रंजन झा : कल शाम जब यह खबर आयी कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 13 क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के नियमों में ढील देने का फैसला किया है और इनमें संचार (टेलीकॉम), रक्षा और बीमा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र भी हैं, तो लगा कि अगले दिन सुबह-सुबह बाजार में पटाखे चलेंगे।
लेकिन आज सुबह बाजार के शुरुआती कारोबार को देख कर लग रहा है मानो सुतली पटाखा भी ठीक से नहीं चल पाया। सेंसेक्स महज 100 अंक ऊपर नजर आ रहा है, निफ्टी में भी 30 अंक के आसपास की मजबूती है। ये आधा फीसदी की बढ़त तो वैसे ही मंगलवार की तीखी गिरावट के बाद स्वाभाविक रूप से निचले स्तरों पर खरीदारी के चलते और तकनीकी सहारे के चलते आ जाती। बाजार कल दोपहर में ही निचले स्तरों से कुछ सँभलने का रुझान दिखा रहा था। फिर भला एफडीआई की इन भारी-भरकम घोषणाओं का बाजार पर असर क्या रहा? क्या बाजार ने इन घोषणाओं को एकदम नजरअंदाज कर दिया?
संचार क्षेत्र में 100% एफडीआई की मंजूरी दे दी गयी। भारती एयरटेल का शेयर सुबह-सुबह जरा उछला, लेकिन घंटे भर में ही सपाट हो गया, एकाध मिनट के लिए लाल भी हो गया। जानकार बता रहे थे कि रिलायंस कम्युनिकेशंस को बड़ा फायदा होगा इस फैसले से। अभी यह बस पौने दो फीसदी बढ़त पर अटका है। आइडिया सेलुलर भी सुबह जरा जोश में दिखा, लेकिन घंटे भर में ही इसका जोश सिमट कर सवा फीसदी पर अटक गया। एलऐंडटी के बारे में सोचा गया कि इसे रक्षा क्षेत्र में एफडीआई की घोषणाओं का अच्छा फायदा मिलेगा। अभी यह एक फीसदी से भी कम तेजी दिखा रहा है।
बाजार इस तरह की उदारवादी घोषणाओं को अक्सर हाथों-हाथ लेता है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ? आखिर इसका क्या कारण है? कल जितने बाजार विश्लेषकों से बात हुई, उन सबने सरकार के इस कदम का बड़े उत्साह से स्वागत किया। लेकिन वह स्वागत भाव आज बाजार के भावों में क्यों नहीं दिख रहा है? जाहिर है कि बाजार के मन में पहले से हावी चिंताएँ इस घोषणा से पैदा उत्साह को छलकने नहीं दे रहीं।
गौर करें कि आज भी बैंकिंग क्षेत्र के तमाम शेयर नुकसान पर चल रहे हैं। कल दोपहर में जब बाजार निचले स्तरों से थोड़ा सँभलता दिखा था, उस समय भी बैंकिंग क्षेत्र ने कमजोरी से उबरने का कोई संकेत नहीं दिया था। आज वही कमजोरी और पसरती दिख रही है।
इसके अलावा, बाजार भी यह देख रहा है कि सरकार ने अपने कार्यकाल के आखिरी महीनों में एफडीआई संबंधी जो घोषणाएँ की हैं, उनका कोई फायदा तुरंत नहीं होने वाला। अगर यही घोषणाएँ साल डेढ़ साल पहले हुई होतीं तो बाजार की प्रतिक्रिया निश्चित रूप से कुछ और रही होती। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 17 जुलाई 2013)
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