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नतीजों से पहले ही निफ्टी (Nifty) 7200 के लक्ष्य के पास

राजीव रंजन झा : इन पंक्तियों के लिखते समय निफ्टी (Nifty) 7,100 को पार कर चुका है और सेंसेक्स (Sensex) 24,000 की दहलीज पर खड़ा दिख रहा है। कल जो एक्जिट पोल सामने आये, वे बाजार में शुक्रवार से ही चल रही अटकलों से मेल खाते हुए रहे हैं।

इसलिए आज सुबह एक बार फिर से बाजार जोश में नजर आ रहा है। हाल में निफ्टी 8 मई को 6638 के निचले स्तर तक गया था। वहाँ से लगभग 7120 के मौजूदा स्तर पर निफ्टी 7.25% ऊपर आ चुका है। यह सारी उछाल केवल तीन कारोबारी सत्रों में आयी है, बल्कि तीसरा सत्र तो अभी चल ही रहा है।

तकनीकी विश्लेषक बता रहे हैं कि 7200 के आसपास निफ्टी के लिए तकनीकी बाधा होगी। दरअसल अगस्त-दिसंबर 2013 के दौरान जितनी बड़ी (लगभग 1300 अंकों की) उछाल आयी थी, उस उछाल की बराबरी फरवरी 2014 की तलहटी 5933 से करने पर लगभग 7200 का लक्ष्य मिलता है।

हालाँकि आज के कारोबार में भी बाजार जिस मजबूती से आगे बढ़ने का रुझान दिखा रहा है, वह मन में शंका पैदा करता है कि बाजार इन बाधाओं का कितना सम्मान करेगा! बाजार के मौजूदा उत्साह का स्पष्ट कारण यही है कि एक्जिट पोल भाजपा के नेतृत्व में एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिलता दिखा रहे हैं, यानी नये सहयोगियों को तलाशने की जद्दोजहद के बगैर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन सकेंगे।

लेकिन लोगों के मन में कहीं-न-कहीं एक खटका तो होगा ही कि ये केवल एक्जिट पोल के नतीजे हैं, वास्तविक परिणाम तो 16 मई को ही आने हैं। एक्जिट पोल ने यह गुंजाइश बाकी नहीं छोड़ी है कि वास्तविक परिणाम इन अनुमानों से भी बेहतर निकलें। यानी एक्जिट पोल या तो बिल्कुल ठीक साबित होंगे, या गलत होंगे तो एनडीए के नुकसान की ओर गलत होंगे। इस जोखिम के बावजूद बाजार के सामने फिलहाल एक्जिट पोल के नतीजों को ही मान कर उसके मुताबिक प्रतिक्रिया देने के अलावा कोई विकल्प नहीं।

अब अगर 16 मई को भी एक्जिट पोल के मुताबिक ही थोड़ा ऊपर-नीचे के वास्तविक परिणाम आ जायें तो बाजार कुछ और जश्न मना लेगा, लेकिन सेंसेक्स और निफ्टी रॉकेट नहीं बनेंगे। एक्जिट पोल के बाद इस समय जो मजबूती दिख रही है, वह एनडीए को लगभग 300 सीटें मिलने की संभावनाएँ भुना रही हैं। इसलिए वास्तविक परिणाम में लगभग 300 सीटें आ जाने पर भी बाजार केवल उतना ही अतिरिक्त जोश दिखा सकेगा, जितना वह इस समय एक्जिट पोल के गलत होने का जोखिम मान रहा होगा। मेरा आकलन है कि बाजार एक्जिट पोल पर काफी हद तक यकीन कर रहा है और इनके गलत होने के जोखिम को ज्यादा वजन नहीं दे रहा।

हालाँकि एक बार फिर से इतिहास पर नजर चली ही जाती है। एजेंसियों ने 1998 के चुनाव में एक्जिट पोल में भाजपा और सहयोगियों को 214-249 सीटें तक दी थीं, वास्तव में 252 सीटें मिली थीं। दूसरी तरफ कांग्रेस और सहयोगी दलों को 149-164 सीटें तक मिलने का आकलन था, वास्तव में 166 सीटें आयी थीं। यानी काफी हद तक एक्जिट पोल रुझान को परखने में सफल रहे थे।

इसके बाद 1999 में भाजपा और सहयोगियों को 316-334 के अनुमानों की तुलना में वास्तव में 296 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस और सहयोगियों को 138-146 के अनुमानों के मुकाबले 134 सीटें आयी थीं। इन अनुमानों को भी हकीकत के करीब कहा जा सकता है।

गड़बड़ 2004 में हुई थी, जब इंडिया शाइनिंग की चमक के चलते एक्जिट पोल सही तस्वीर नहीं पेश कर पाये। भाजपा और सहयोगियों को 240-284 तक सीटें मिलने का अनुमान था, मगर वास्तव में केवल 189 सीटें आ सकीं। दूसरी ओर कांग्रेस और सहयोगियों को 164-197 के अनुमानों की बनिस्बत 222 सीटें मिल गयीं।

इसके बाद 2009 के चुनाव में भी एक्जिट पोल मतदाताओं के मिजाज को परखने में चूक गये थे। एनडीए को 175-199 तक सीटें दी जा रही थीं, लेकिन वास्तव में केवल 159 सीटें मिलीं। वहीं यूपीए को 191-216 सीटों के अनुमानों के मुकाबले 262 सीटें मिल गयीं।

पिछले दो चुनावों के उदाहरण सामने रखते हुए ही कुछ लोग शंका जाहिर करते हैं कि एक्जिट पोल गलत भी हो सकते हैं। उनकी यह शंका बेबुनियाद तो नहीं है। लेकिन इन चुनावों में जीतने और हारने वाले के बीच इतना बड़ा फासला दिख रहा है कि एक्जिट पोल के नतीजों में थोड़ी-बहुत चूक हो भी रही हो तो उससे स्थिति में कोई नाटकीय परिवर्तन नहीं आने वाला है। बात केवल इतनी ही रहेगी कि नरेंद्र मोदी को एक-दो और सहयोगी दल साथ लाने की जरूरत पड़ेगी या नहीं? Rajeev Ranjan Jha

(शेयर मंथन, 13 मई 2014)

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