शेयर मंथन में खोजें

किंगफिशर (Kingfisher) की किस्मत तभी बदलेगी जब प्रबंधन बदलेगा

Rajeev Ranjan Jhaराजीव रंजन झा : आजकल किंगफिशर एयरलाइंस (Kingfisher Airlines) की बात छिड़ते ही काफी निवेशकों-कारोबारियों को सत्यम कंप्यूटर (Satyam Computer) की याद आती है।

उन्हें याद आता है कि कैसे घोटाले की खबर के बाद सत्यम का शेयर भाव करीब 7 रुपये तक फिसल गया था और उसके बाद यह जबरदस्त ढंग से वापस सँभला। ऐसे उतार-चढ़ाव में जहाँ काफी पुराने निवेशकों की जमा-पूँजी लुटी होगी, वहीं निचले स्तरों पर खरीदारी करने वाले काफी निवेशकों ने इसमें कई गुना फायदा भी कमाया। शायद 7 रुपये के भाव पर तो नहीं, लेकिन सत्यम को 10-15 के भाव पर खरीद कर बाद में कई गुना मुनाफा कमाने का किस्सा सुनाने वाले काफी निवेशक आपको मिल जायेंगे। लेकिन क्या इस संदर्भ में किंगफिशर और सत्यम की तुलना ठीक है? क्या किंगफिशर को भी सत्यम की तरह अपनी राख से उठ खड़े होने में कामयाबी मिलेगी?
मुझे दोनों मामलों में ज्यादा समानता नहीं दिखती, सिवाय इस बात के, कि किंगफिशर ने भी हाल में करीब 7 रुपये का निचला स्तर छू लिया जो संयोग से घोटाला फूटने के बाद सत्यम के ऐतिहासिक निचले भाव (9 जनवरी 2009 को एनएसई में 6.30 रुपये) के काफी करीब है। सत्यम कंप्यूटर का संकट शीर्ष प्रबंधन के स्तर पर वित्तीय घोटाले का नतीजा था, जबकि किंगफिशर एयरलाइंस का संकट कामकाजी स्तर पर विफलता का नतीजा है।
बेशक, यह तर्क दिया जा सकता है कि कामकाजी विफलता भी आखिरकार प्रबंधन की नाकामी का नतीजा है। लेकिन सत्यम घोटाले के बाद कंपनी की किस्मत तब बदली जब उसका प्रबंधन बदला। आज क्या किंगफिशर में नये प्रबंधन की बात हो रही है? नहीं। जिन बैंकों के 8000 करोड़ रुपये किंगफिशर में डूबते दिख रहे हैं, वे भी प्रबंधन से बस इतना कह रहे हैं कि आप और इक्विटी का इंतजाम कर लें तो हम आपकी आगे मदद कर सकते हैं। वाह! बैंकों के आशावाद का जवाब नहीं! अगर माल्या और इक्विटी पूँजी का इंतजाम कर सके तो ये बैंक आगे भी उनका साथ देने के लिए तैयार हैं। लेकिन इसका दूसरा मतलब यह भी है कि अगर माल्या अतिरिक्त इक्विटी का इंतजाम नहीं कर पाये तो वे अपने अरबों रुपये को बट्टे खाते में डालने के लिए तैयार हैं।
किंगफिशर के कर्जदाता बैंकों को साल भर पहले ही यह सख्त रवैया अपनाना चाहिए था कि मौजूदा प्रबंधन या तो कामकाज दुरुस्त करे या कंपनी पर नियंत्रण छोड़े। बैंकों को साल भर पहले ही वैकल्पिक प्रबंधन की बात सोचनी चाहिए थी, जब हवाई सेवा चल रही थी और एक सम्मानजनक बाजार हिस्सेदारी कायम थी। आज तो यह कहा जाने लगा है कि किंगफिशर एयरलाइंस चले इसकी सबसे ज्यादा गरज बैंकों को और इस हवाईसेवा के कर्मचारियों को है, यूबी समूह और माल्या परिवार को नहीं।
आज भी अगर कर्जदाता बैंकों का गठबंधन कंपनी लॉ बोर्ड में अर्जी डाल कर इस विमानसेवा का प्रबंधन अपने हाथ में ले ले, और कैप्टन गोपीनाथ जैसे किसी व्यक्ति को कमान सौंपे जिन्हें वास्तव में इस कारोबार और भारतीय बाजार की समझ हो तो किंगफिशर एयरलाइंस भी सत्यम कंप्यूटर की कहानी को दोहरा सकती है।
शायद भारतीय स्टेट बैंक (SBI) जैसे कर्जदाता बैंकों को अब भी यह उम्मीद है कि कोई विदेशी विमानसेवा कंपनी किंगफिशर में हिस्सेदारी खरीद कर इसकी किस्मत पलट देगी। आज सुबह एसबीआई के एमडी एस विश्वनाथन ने संकेत भी दिये कि किंगफिशर के प्रबंधन की कुछ विदेशी विमानसेवाओं से बातचीत चल रही है। आज किंगफिशर के शेयर भाव फिर से उछाल दिखने के पीछे जरूर ऐसी अटकलों का योगदान माना जा सकता है।
लेकिन मेरा सवाल है कि किंगफिशर में कुप्रबंधन की बात साबित करने के लिए क्या अब कुछ और प्रमाण जुटाने की भी जरूरत है? ऐसे में कर्जदाता बैंकों का गठबंधन कंपनी लॉ बोर्ड में जा कर इसके प्रबंधन को हटवाने की अर्जी क्यों नहीं लगा रहा है? क्यों यह गठबंधन अब भी उसी पुराने प्रबंधन से उम्मीदें लगाये बैठा है, जिसने बैंकों के 8000 करोड़ रुपये की बड़ी रकम को बट्टे खाते में डाले जाने के कगार पर खड़ा कर दिया है? Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 25 अक्टूबर 2012)

Add comment

कंपनियों की सुर्खियाँ

निवेश मंथन : डाउनलोड करें

बाजार सर्वेक्षण (जनवरी 2023)

Flipkart

विश्व के प्रमुख सूचकांक

निवेश मंथन : ग्राहक बनें

शेयर मंथन पर तलाश करें।

Subscribe to Share Manthan

It's so easy to subscribe our daily FREE Hindi e-Magazine on stock market "Share Manthan"