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ठीक है आरबीआई (RBI), दिसंबर नहीं तो जनवरी सही

राजीव रंजन झा : आज सुबह 11 बजते ही भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने शेयर बाजार को एक झटका दिया और बाजार की उम्मीदों के विपरीत सीआरआर तक में कोई कटौती नहीं की।

बाजार यह मान कर चल रहा था कि इस बार मध्य तिमाही समीक्षा में आरबीआई अगर अपनी रेपो दर (Repo Rate) और रिवर्स रेपो (Reverse Repo) ब्याज दरों में भले ही कटौती न करे, लेकिन कम-से-कम नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में 0.25% अंक की कटौती जरूर करेगा। बाजार की ये उम्मीदें धरी की धरी रह गयीं। इसका सीधा असर सेंसेक्स, निफ्टी और बैंक निफ्टी जैसे सूचकांकों पर दिखा, जो चंद मिनटों के अंदर काफी लुढ़क गये।
लेकिन इसके बाद जो दिखा, वह भी महत्वपूर्ण है। जिस रफ्तार से ये सूचकांक गिरे, काफी हद तक उसी रफ्तार से ये वापस सँभलते भी नजर आये। अगर हम निफ्टी की बात करें तो यह फिसल कर 5823 तक गिर गया था। लेकिन अब करीब 11.30 बजे यह वापस 5850 के पास लौट आया है। आरबीआई की घोषणा से पहले यह 5870 के पास था, हल्की बढ़त के साथ। इसलिए आरबीआई के फैसले से होने वाले नुकसान की पूरी भरपाई हो गयी, ऐसा नहीं कहा जा सकता। लेकिन बाजार के गिरने और सँभलने के चलते आज के एकदिनी चार्ट पर अंग्रेजी के वी जैसी आकृति का बनना यह संकेत देता है कि बाजार इस घटना से आगे बढ़ जाना चाहता है।
शायद बाजार इस बात पर यकीन करना चाहता है कि चलो इस बार नहीं तो जनवरी में ही सही। अब लोग उम्मीद कर रहे हैं कि शायद आरबीआई पिछली तिमाही समीक्षा में दिये गये संकेतों के अनुरूप जनवरी में ही ब्याज दरों में कटौती का फैसला करे। आरबीआई ने हाल में भी यह संकेत दिया था कि उसे विकास दर और महँगाई दर के बीच संतुलन बना कर चलना है। हालाँकि अरसे से यह तर्क दिया जा रहा है कि आरबीआई की मौजूदा नीतियों से महँगाई दर काबू में नहीं आ रही, विकास दर जरूर काफी घट गयी है।
मैंने तो उल्टे आरबीआई के लिए यह खुला प्रस्ताव रखा है कि वह चाहे तो ब्याज दरें 2-4% बढ़ा ले, बशर्ते वह वादा करे कि उसके ऐसा करने से गेहूँ-चावल, फल-सब्जियाँ और दूध-अंडे के दाम घट जायेंगे। क्या आरबीआई यह साबित कर सकता है कि ब्याज दरें ऊँची रखने से महँगाई पर अंकुश लगा है? लेकिन हमारे-आपके तर्क करने से क्या होगा, जब आरबीआई वित्त मंत्री पी चिदंबरम के तर्क सुनने को भी तैयार नहीं है।
इससे पहले आरबीआई की छवि समय से आगे चलने वाले केंद्रीय बैंक की थी। जब रेड्डी गवर्नर थे तो उन्होंने समय रहते या समय से पहले ही ब्याज दरों में कटौती का चक्र शुरू करके यह सुनिश्चित किया कि भारत पर 2008 की वैश्विक मंदी का कम-से-कम असर हो। लेकिन सुब्बाराव शायद कुछ अलग करना चाहते हैं। इसलिए वे इस बार समय से पीछे चल रहे हैं। आरबीआई ने अपनी ब्याज दरों में कटौती का चक्र शुरू भी नहीं किया है, जबकि संभावना यह बनती है कि विकसित देशों के केंद्रीय बैंक अगले 3-6 महीनों में ब्याज दरें बढ़ाने का चक्र शुरू करेंगे।
अगर आरबीआई ने ब्याज दरें घटाने का चक्र करीब साल डेढ़ साल पहले शुरू कर दिया होता तो शायद विकास दर 6% के नीचे नहीं गयी होती। लेकिन अब लकीर पीट कर क्या किया जाये? गनीमत यही है कि आरबीआई को जितना समय गँवाना था, वह गँवा चुका है। अब उसे भी अहसास होगा कि महँगाई दर घटने के इंतजार में वह अनंत समय ब्याज दरें ऊँची रख कर नहीं चल सकता। इसलिए दिसंबर नहीं तो जनवरी सही। जब इतना इंतजार किया है तो महीने डेढ़ महीने और सही। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 18 दिसंबर 2012)

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