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पीएम ने माना, अब वक्त नहीं बचा सरकार के पास

राजीव रंजन झा : कल प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के बारे में मान लिया कि उनकी यूपीए-2 की सरकार इसे अमली-जामा नहीं पहना सकेगी।
उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि अब नयी सरकार ही इसे लागू करेगी। पिछले कई सालों से सरकार जिन दो बड़े आर्थिक सुधारों के लिए प्रयास कर रही थी, वे जीएसटी और प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) थे। दोनों को लेकर यूपीए-2 सरकार की प्रगति बेहद निराशाजनक रही है। डीटीसी का मसला तो पहले इस चक्कर में उलझ गया कि यह किसका मानस-पुत्र होगा, चिदंबरम का या प्रणव मुखर्जी का। पहले चिदंबरम ने इसका मसौदा तैयार कराया, फिर प्रणव मुखर्जी ने इसे शीर्षासन कराया और उसके बाद चिदंबरम दोबारा इसे अपने मनमाफिक कराने में लगे रहे। पहले तो इस अनुलोम-विलोम में डीटीसी की गाड़ी अटकी रही। लेकिन उसके बाद संसदीय समिति की सिफारिशें मिल जाने के बावजूद सरकार इस पर तेजी से कदम नहीं बढ़ा सकी, क्योंकि सरकार की राजनीतिक मशीनरी कुछ अन्य बातों में उलझी रही। कहना बड़ा मुश्किल है कि डीटीसी का भविष्य क्या है और कब यह अस्तित्व में आयेगा। अभी कयास लगाया जा रहा है कि शायद मानसून सत्र में इसे सदन के सामने रखा जाये, लेकिन सरकार की सुस्त रफ्तार को देखते हुए ज्यादा उम्मीदें नहीं पालना ही ठीक रहेगा।
जीएसटी के मामले में तो प्रधानमंत्री ने कह ही दिया कि गाड़ी आगे नहीं बढ़ पा रही और यूपीए-2 के शासन में इसे लागू नहीं किया जा सकेगा। प्रधानमंत्री का कल का बयान शायद लिखा तो गया लोगों को आश्वस्त करने के नजरिये से, लेकिन उसका वास्तविक संदेश उल्टा सामने आया। उनके शब्दों पर गौर करें तो वे भरोसा दिलाना चाहते हैं कि जीएसटी अब अगले साल ही लागू होने की स्थिति में है। लेकिन साथ में उन्होंने यह मान लिया कि लोकसभा चुनाव पूरे होने के बाद ही जीएसटी लागू हो सकेगा। जब यूपीए-2 के पूरे कार्यकाल का लेखा-जोखा होगा, तो उसमें इसकी प्रमुख नाकामियों में इसे गिना जायेगा। निश्चित रूप से उद्योग जगत और शेयर बाजार को इससे निराशा होगी।
लेकिन इस बयान में जीएसटी से भी आगे का एक व्यापक संदेश निहित है। इसका एक स्पष्ट संकेत यह भी है कि लोकसभा चुनाव में दरअसल उतना समय बाकी नहीं है, जितना कैलेंडर के हिसाब से दिखता है। दूसरी बात, जिस लहजे में उन्होंने कहा कि अगली सरकार चाहे जिसकी भी बने, उससे लगता है कि वे यूपीए-3 की संभावनाओं के बारे में बहुत आश्वस्त नहीं हैं। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 29 मई 2013)

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