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नमो मंत्र की धुन पर झूमा शेयर बाजार

राजीव रंजन झा : सेंसेक्स ने इस हफ्ते पहली बार 22,000 के ऊपर जा कर एक नया रिकॉर्ड बनाया है।

निफ्टी भी 6,500 के ऊपर नये रिकॉर्ड स्तर पर दिख रहा है। सिर्फ महीने भर पहले फरवरी के पहले हफ्ते में बाजार फिसलता दिख रहा था और सेंसेक्स 20,000 के नीचे चला गया था। इन चंद हफ्तों में आखिर ऐसा क्या हुआ, जिससे बाजार ने 10% से ज्यादा की जबरदस्त छलांग लगा ली? दरअसल इस दौरान लगभग हर चुनाव-पूर्व जनमत सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बहुमत के लिए जरूरी 272 सीटों के करीब खिसकती जा रही है।

कांग्रेस को 2009 में जितनी सीटें मिलने पर बाजार में ऊपरी सर्किट लग गया था, उससे कहीं ज्यादा सीटें इस बार भाजपा को मिलने की उम्मीदें बनने लगी हैं। अगर आज बाजार को लग रहा है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने की संभावना काफी मजबूत हो गयी है, तो यह उसके लिए मनमाँगी मुराद पूरी हो जाने जैसा है। इसलिए बाजार भी इन उम्मीदों को पहले से ही भुनाने में लग गया है। वह चुनावी नतीजों की औपचारिक घोषणा तक का इंतजार नहीं कर सकता।

महीने दो महीने पहले तक भी स्थिति इतनी साफ नहीं थी। तस्वीर बदलनी शुरू हुई थी दिसंबर 2013 के विधान सभा चुनावों के बाद। पाँच विधान सभाओं में से चार में भाजपा को बढ़त मिली थी, भले ही दिल्ली विधान सभा में वह बहुमत से जरा पीछे रह गयी। इन नतीजों के बाद ही बाजार ने एक उछाल दर्ज की थी, जिसमें निफ्टी उस समय तक के ऐतिहासिक शिखर 6,357 को पार करके 6,415 का नया रिकॉर्ड स्तर छू सका था।

लेकिन तब भी संशय के लिए जगह बाकी थी। विधानसभा चुनावों के नतीजे आने से पहले ही "निवेश मंथन" के दिसंबर 2013 के अंक में मैंने लोकसभा चुनावों के संदर्भ में कहा था कि कांग्रेस की सीटें घटने की बहुत साफ भविष्यवाणी की जा सकती है, वहीं दावे के साथ यह कह पाना मुश्किल है कि भाजपा बहुमत के लिए जरूरी आँकड़ा जुटाने की स्थिति में आ चुकी है।

जनवरी 2014 के अंत तक भी स्थिति बहुत नहीं बदली थी। लोकसभा के लिए चुनावी प्रचार अभियान शुरू होने के बाद भी ताजा जनमत सर्वेक्षण वही निष्कर्ष दे रहे थे। इसीलिए फरवरी 2014 के निवेश मंथन में मैंने लिखा था कि "अब यह तो स्पष्ट है कि कांग्रेस अपनी अब तक न्यूनतम संख्या की ओर बढ़ रही है। लेकिन क्या भाजपा अपनी अधिकतम संख्या की ओर बढ़ पायेगी? यह आज भी एक बड़ा प्रश्न-चिह्न है।"

लेकिन अब एक तरफ तो भाजपा के लिए हर नये जनमत सर्वेक्षण में सीटों के अनुमान पहले से कुछ बढ़े हुए दिखने लगे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस और यूपीए को मिलने वाली सीटों का अनुमान लगातार घटता दिख रहा है। सीएसडीएस ने जुलाई 2013 के सर्वेक्षण में कहा था कि भाजपा को 161 सीटें मिल सकती हैं। यह अनुमान अक्टूबर 2013 में बढ़ कर 191 पर और जनवरी 2014 में 201 पर पहुँच गया। उसका सबसे ताजा सर्वेक्षण भाजपा को 213 तक सीटें मिलने की संभावना दिखा रहा है।

नीलसन ने जनवरी 2014 में भाजपा को 210 सीटें मिलने का आकलन किया था। फरवरी 2014 के सर्वेक्षण में यह संख्या बढ़ कर 217 हो गयी। पिछले साल से ही सी-वोटर के सर्वेक्षणों के आकलन भाजपा के लिए सबसे ज्यादा संकोची रहे हैं। लेकिन इनमें भी हर बार भाजपा की संख्या बढ़ती गयी है। इसने जुलाई 2013 में भाजपा को 131 सीटें मिलने का अनुमान जताया था। अक्टूबर 2013 में यह अनुमान 162 का और जनवरी 2014 में 188 सीटों का हो गया। फरवरी 2014 में इसका अनुमान भी 202 हो गया।

इन सर्वेक्षणों के अनुमान किस हद तक सही होंगे, कौन सबसे सटीक साबित होगा, यह कहना आसान नहीं है। लेकिन इन सबका एक संदेश बड़ा स्पष्ट है। भाजपा अपनी जमीन लगातार पुख्ता करती जा रही है और ऐसी स्थिति में पहुँचती दिख रही है, जहाँ बहुमत जुटा पाना उसके लिए मुश्किल नहीं होगा।

साथ ही एनडीए का कुनबा भी फैलता दिख रहा है। पहले यह संदेह जताया जाता रहा था कि बहुमत के आँकड़े को जुटाने के लिए क्या भाजपा के साथ पर्याप्त सहगोयी दल आ सकेंगे? खास कर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व से अन्य दलों को परहेज होने की बात उठायी जाती रही है। मोदी के मसले पर ही नीतीश कुमार जैसे पुराने साथी के एनडीए से अलग हो जाने का किस्सा सबके सामने थ।

लेकिन अब कहानी बदली है। साल 2002 के गुजरात दंगों के बाद एनडीए का कुनबा सबसे पहले छोडऩे वाले रामविलास पासवान एनडीए में वापसी करने में भी सर्वप्रथम हो गये। उनकी वापसी से एनडीए को सीटों की संख्या के मामले में भले ही बहुत फायदा न हो, लेकिन उनके लौटने का सांकेतिक महत्व काफी है और भाजपा उसे भुनाने में भी लग गयी है। इसी स्थिति को बाजार भी भुना रहा है।

बुनियादी बदलावों पर भी नजर

अगर हम विकास दर (जीडीपी) के ताजा आँकड़ों और भविष्य के अनुमानों को देखें तो ऐसा नहीं लगता कि अर्थव्यवस्था की स्थिति में कोई सुधार आया है या तुरंत आने की उम्मीद है। लेकिन अर्थव्यवस्था से जुड़ी कई बातों पर बाजार ने राहत महसूस की है। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने भले ही आँकड़ों की बाजीगरी का सहारा लिया हो, लेकिन सरकारी घाटा (फिस्कल डेफिसिट) और चालू खाते का घाटा (सीएडी) नियंत्रण में रहने से बाजार कुछ आश्वस्त हुआ है।

डॉलर के मुकाबले रुपये में स्थिरता लौटी है, जिसके पीछे यह मुख्य कारण है। रुपये की स्थिरता से शेयर बाजार पर भी सकारात्मक असर पड़ा है। साथ ही, अंतरिम बजट के बाद से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने लगातार खरीदारी का रुझान अपनाया है, जबकि इससे पहले फरवरी महीने में वे अक्सर बिकवाली कर रहे थे।

साल 2013-14 की तीसरी तिमाही के नतीजों ने भी बाजार का हौसला बढ़ाया है। ज्यादातर कंपनियों के नतीजे बाजार के अनुमानों के मुताबिक या कुछ बेहतर रहे हैं। नकारात्मक ढंग से चौंकाने वाली कंपनियों की संख्या कम रही है। इसी के चलते ब्रोकिंग फर्मों ने कंपनियों के संभावित ईपीएस अनुमानों में वृद्धि की है। 

सूचीबद्ध कंपनियों का कुल मुनाफा बढऩे की रफ्तार पिछली सात तिमाहियों में से सबसे अच्छी रही है। मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज (एमओएसएल) ने इन तिमाही नतीजों की समीक्षा रिपोर्ट में बताया है कि तीसरी तिमाही में समीक्षा में शामिल कंपनियों का कुल मुनाफा साल-दर-साल 13.3% बढ़ा है, जबकि नतीजों से पहले अनुमान था कि यह वृद्धि 10% होगी। सेंसेक्स कंपनियों का तिमाही मुनाफा साल-दर-साल 20% बढ़ा है, जबकि यह दर 2013-14 की पहली तिमाही में -4% और दूसरी तिमाही में 11% थी।

आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने अपनी रिपोर्ट में बताया है सेंसेक्स की 30 में से 24 कंपनियों (बैंक, एनबीएफसी और सेसा स्टरलाइट को छोड़ कर) का मुनाफा अक्टूबर-दिसंबर 2013 के दौरान पिछले साल की समान अवधि से 28.3% ज्यादा रहा है। अगर ठीक पिछली तिमाही, यानी 2013-14 की दूसरी तिमाही से तुलना करें तो सेंसेक्स कंपनियों का इस बार का मुनाफा 14.4% ज्यादा है।

केवल एक तिमाही के दौरान ही एमओएसएल ने अपने ईपीएस अनुमानों को दूसरी बार बढ़ाया है। अब इसका कहना है कि 2014-15 में सेंसेक्स ईपीएस 1542 रुपये रहेगी, जो 2013-14 में अनुमानित 1326 रुपये की ईपीएस से 16% ज्यादा होगी। इसके अगले साल 2015-16 के सेंसेक्स ईपीएस अनुमान को भी 1.5% बढ़ा कर 1792 रुपये कर दिया गया है, जो 2014-15 से 16.2% बढ़ोतरी दिखाता है। Rajeev Ranjan Jha

(शेयर मंथन, 14 मार्च 2014) 

 

 

 

 

Comments 

rajiv
0 # rajiv 2014-03-20 11:36
rajiv ji it is clear from ur post that listed companies are growing but still economy is in bad shape why ? If economy is in bad shape then why share market is up and if the companies are showing growth then why economy is in bad shape ?
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