भारतीय प्राथमिक बाजार ने 2025 में एक नया इतिहास रच दिया है। मेनबोर्ड पर आये आईपीओ के जरिये कंपनियों ने अब तक की सबसे अधिक पूँजी जुटायी है।
प्राइम डेटाबेस के अनुसार, 2025 में 103 भारतीय कंपनियों ने मेन बोर्ड आईपीओ के माध्यम से 1.75 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि जुटायी। यह आँकड़ा एक साल पहले यानी 2024 के 1.59 लाख करोड़ रुपये के पिछले रिकॉर्ड से लगभग 10% अधिक है। प्राइम डेटाबेस ग्रुप के प्रबंध निदेशक प्रणव हल्दिया के अनुसार, यह पहली बार है जब भारत में लगातार दो वर्षों तक आईपीओ के जरिये पूँजी जुटाये जाने के सर्वकालिक उच्च स्तर का रिकॉर्ड बना है। आमतौर पर किसी एक मजबूत आईपीओ वर्ष के बाद बाजार में दो से तीन वर्षों का ठहराव देखने को मिलता रहा है, लेकिन 2024 और 2025 ने इस परंपरा को तोड़ दिया है।
इस उछाल का मुख्य कारण घरेलू संस्थागत निवेशकों की मजबूत भागीदारी और स्थिर द्वितीयक बाजार रहा। वर्ष का सबसे बड़ा आईपीओ टाटा कैपिटल का रहा, जिसने 15,512 करोड़ रुपये जुटाये। इसके बाद एचडीबी फाइनेंशियल सर्विसेज (12,500 करोड़ रुपये) और एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स इंडिया (11,605 करोड़ रुपये) के आईपीओ का स्थान रहा। अन्य प्रमुख आईपीओ में हेक्सावेयर टेक्नोलॉजीज, लेंसकार्ट और ग्रो जैसे नाम शामिल रहे। पूरे साल के दौरान औसत आईपीओ आकार 1,700 करोड़ रुपये के आसपास रहा।
साल के दौरान निवेशकों की प्रतिक्रिया मिली-जुली रही। कई आईपीओ को अच्छा अभिदान मिला, लेकिन सूचीकरण लाभ पिछले वर्ष की तुलना में कम रहे। 2025 में औसत सूचीकरण लाभ घटकर लगभग 10% रह गया, जबकि 2024 में यह स्तर करीब 30% था। उपलब्ध आँकड़ों वाले 102 आईपीओ में से 61 आईपीओ को 10 गुना से अधिक अभिदान मिला, लेकिन यह अनुपात पिछले वर्ष के मुकाबले कम रहा। इसका सीधा असर निवेशकों की धारणा पर भी दिखा, खासकर खुदरा निवेशकों के स्तर पर।
खुदरा निवेशकों की भागीदारी में वर्ष 2025 के दौरान नरमी देखने को मिली। औसतन खुदरा आवेदनों की संख्या घटकर करीब 14.99 लाख रह गयी, जबकि 2024 में यह 18.87 लाख थी। हालाँकि एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स इंडिया, मीशो और स्टैंडर्ड ग्लास लाइनिंग टेक्नोलॉजी जैसे कुछ आईपीओ ऐसे रहे, जिनमें खुदरा निवेशकों की भारी भागीदारी देखने को मिली। इसके बावजूद कुल मिलाकर खुदरा निवेशक पहले की तुलना में अधिक सतर्क नजर आये।
संस्थागत निवेशकों की भूमिका इस वर्ष और अधिक मजबूत होकर सामने आयी। खास बात यह रही कि एंकर निवेश के स्तर पर पहली बार म्यूचुअल फंडों ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को पीछे छोड़ दिया। कुल सार्वजनिक निर्गम राशि में म्यूचुअल फंडों की हिस्सेदारी 14.44% रही, जबकि एफपीआई की हिस्सेदारी 13.99% रही। यह रुझान तब देखने को मिला, जब एफपीआई द्वितीयक बाजार में बिकवाली कर रहे थे, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने प्राथमिक बाजार में लगभग 73,000 करोड़ रुपये का निवेश किया।
आगे की तस्वीर भी प्राथमिक बाजार के लिए व्यस्त नजर आती है। इस समय दर्जनों कंपनियाँ नियामक की मंजूरी के साथ बाजार में उतरने की तैयारी में हैं, जबकि कई अन्य कंपनियों के प्रस्ताव अनुमोदन की प्रक्रिया में हैं। हल्दिया का मानना है कि यदि मूल्याँकन में अनुशासन बना रहता है और द्वितीयक बाजार में बड़ी अस्थिरता नहीं आती है, तो आईपीओ की गतिविधियाँ आने वाले वर्षों में भी मजबूत बनी रह सकती है।
(शेयर मंथन, 030 दिसंबर 2025)