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क्या टूट गया वैश्विक बाजारों से कदमताल?

राजीव रंजन झा : भारतीय बाजार में कमजोरी के लिए जिम्मेदार बताये जाने वाले कारण एक-एक कर कटते या हल्के पड़ते जा रहे हैं, लेकिन भारतीय बाजार की कमजोरी अभी जारी है।

कल अमेरिकी बाजारों में आयी शानदार तेजी भी आज सुबह भारतीय बाजार का मिजाज नहीं बदल पायी। शुरुआती कारोबार में कुछ देर हल्की बढ़त दिखाने के बाद बाजार फिर से लाल दिख रहा है। इससे पहले भी हमने बीते 1-2 हफ्तों में देखा है कि वैश्विक बाजारों की हरियाली भारतीय बाजार में कोई उत्साह नहीं जगा पा रही है।
लेकिन भारतीय बाजार में गिरावट के पीछे कौन-कौन से कारण गिनाये जा रहे थे? मिस्र के संकट के कारण वैश्विक बाजारों में घबराहट एक प्रमुख कारण था ना? मिस्र के संकट की चर्चा अब उतनी नहीं हो रही। वैश्विक बाजार ऊपर चढ़ते दिख रहे हैं। नैस्डैक कंपोजिट 03 साल के सबसे ऊपरी बंद स्तर पर है। मिस्र के संकट के कारण ही कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर चला गया था, जिसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी माना गया। अब कच्चा तेल फिर से 90 डॉलर के नीचे आ गया है, लेकिन घंटी बजाने वाले शायद उसका बटन बंद करना भूल गये हैं!
महँगाई दर और बढ़ती ब्याज दरों के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता जतायी गयी। महँगाई दर अब भी ऊंचे स्तरों पर है और ब्याज दरें भी आगे कुछ और बढ़ने के ही आसार लगते हैं। लेकिन इस साल आर्थिक विकास दर 8.6% रहने के अनुमान से बाजार को कुछ राहत महसूस करनी चाहिए थी। उस राहत का कोई असर नहीं दिख रहा है।
और सबसे खास बात यह कि जनवरी के पहले हफ्ते से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की बिकवाली भारतीय बाजार पर भारी पड़ी थी। लेकिन पिछले हफ्ते से यह बिकवाली थमती दिख रही है। कल भी उनकी शुद्ध बिकवाली केवल 65 करोड़ रुपये की रही। शुक्रवार को जब सेंसेक्स 441 अंक लुढ़का था, उस दिन न तो एफआईआई की बिकवाली का दबाव था, न ही घरेलू संस्थाओं (डीआईआई) का। उस दिन एफआईआई ने 144 करोड़ रुपये की शुद्ध खरीदारी की थी।
ए राजा की गिरफ्तारी के बाद भी बाजार में डर का माहौल बना (या बनाया गया), हालाँकि इसके चलते कांग्रेस और द्रमुक के संबंधों में दरार की बातें अब तक केवल अटकलबाजी ही निकली हैं। मोटा सवाल यही है कि बाजार पर लगातार दबाव किन लोगों की बिकवाली के चलते है और उनका मकसद क्या है? Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 08 फरवरी 2011)

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