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बाजार की बल्ले-बल्ले, या धोबीपाट की तैयारी?

राजीव रंजन झा : कल शेयर बाजार की चाल के बारे में मेरे अनुमान एक सिरे से गलत हो गये और मैंने राग बाजारी में जो कुछ भी लिखा था, उसे बाजार ने पटक-पटक कर धो दिया।
जिस तरह से सेंसेक्स ने कल दिन के ऊपरी स्तर पर करीब सवा पाँच सौ अंक की उछाल दिखायी और अंत में 491 अंक की जबरदस्त उछाल के साथ बंद हुआ, वह मेरी कल्पना से परे था। लेकिन जो लोग तेजी जारी रहने की सोच रहे थे, उन्होंने भी कल सुबह बाजार खुलने के बाद भी यह नहीं सोचा होगा कि बाजार का समापन इतनी बड़ी उछाल के साथ होगा। अब सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ने जनवरी 2013 के अपने शिखरों को पार कर लिया है। ऐसे में सीधे निगाह जाती है निफ्टी के 6357 के स्तर पर, यानी जनवरी 2008 के ऐतिहासिक शिखर पर। आखिर कल के बंद स्तर 6147 पर निफ्टी इस ऐतिहासिक मुकाम से कितनी दूर रह गया? बस 3.4% की ही तो दूरी बाकी है! है ना बाजार की बल्ले-बल्ले! बाजार चाहे तो 3-4% की बढ़त हफ्ते भर के अंदर ही कर ले!
कल की उछाल में सबसे बड़ा योगदान ब्याज दरों से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों का था। सेंसेक्स की 491 अंक की बढ़त में से 220 अंक का योगदान तो केवल 4 वित्तीय शेयरों ने किया – एचडीएफसी (74), आईसीआईसीआई बैंक (59), एचडीएफसी बैंक (57) और एसबीआई (30)। अगर क्षेत्रीय सूचकांकों को देखें तो सेंसेक्स की 2.5% बढ़त के मुकाबले रियल्टी सूचकांक और बैंकिंग सूचकांक दोनों ने करीब 4% मजबूती हासिल की। अब ब्याज दरों से प्रभावित क्षेत्र माने जा रहे कैपिटल गुड्स के सूचकांक ने भी 3% उछाल दर्ज की। ऑटो क्षेत्र ने भी बाजार की उछाल में पूरी भागीदारी की।
आखिर ब्याज दरों से प्रभावित शेयरों को लेकर बाजार में अचानक उत्साह क्यों जगा? इसलिए कि थोक मूल्य सूचकांक (डब्लूपीआई) की महँगाई दर 5% के नीचे आ गयी है। अप्रैल महीने में यह घट कर 4.89% पर आ गयी। लेकिन यह खबर तो मंगलवार को ही आ गयी थी। उस दिन बाजार ने इस खबर को नजरअंदाज किया। इससे पहले सोमवार को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) की महँगाई दर 10% के नीचे आने की खबर आयी थी। इसके बावजूद उस दिन की तीखी गिरावट आपने देखी ही थी। लेकिन बुधवार को महँगाई दर घटने के मद्देनजर ही इतनी बड़ी उछाल आ गयी। कल विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने नकद श्रेणी में 1647 करोड़ रुपये की शुद्ध खरीदारी की। तो क्या एफआईआई को भारतीय बाजार की खबरें एक-दो दिन बाद मिलती हैं, या फिर हिसाब-किताब लगाने में उन्हें इतना समय लग जाता है! कहना मुश्किल है!
दरअसल सुबह-सुबह ही भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर डी सुब्बाराव के एक बयान की खबर आयी थी। सुब्बाराव ने महँगाई दर के ताजा आँकड़ों पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि भविष्य की मौद्रिक नीति तय करने में इस गिरावट को ध्यान में रखा जायेगा! बाजार ने इस वाक्य से बड़ी उम्मीदें जोड़ ली हैं। वैसे मुझे यह समझ में नहीं आ रहा कि सुब्बाराव महँगाई दर में कमी के बारे पूछे गये किसी सवाल के जवाब में और क्या कह सकते थे? उन्होंने बस यही तो कहा है कि घटी हुई महँगाई दर को ध्यान में रख कर ही वे अपनी नीति तय करेंगे। लेकिन आरबीआई जब भी अपनी नीति तय करता है तो उसमें महँगाई दर पर वह खास नजर रखता है। इसमें कोई नयी बात है क्या!
लेकिन उनकी टिप्पणी में वह बात तो कहीं नहीं है, जिसे बाजार ने सोच लिया है। लगता है बाजार मान चुका है कि अब आरबीआई के लिए अपनी नीतिगत ब्याज दरें और घटाने की गुंजाइश बन गयी है। लेकिन सुब्बाराव ने ऐसा कुछ तो कहा नहीं कि हाँ, कुछ गुंजाइश बनती है।
आरबीआई अरसे से यह कहता रहा है कि महँगाई दर जब तक पर्याप्त रूप से नहीं घटती, तब तक दरों में ज्यादा कमी करना मुश्किल है। अब महँगाई दर 5% से नीचे आ गयी है, इसलिए बाजार उम्मीद कर रहा है कि आरबीआई की दरें घटने में कोई अड़चन बाकी नहीं रही। लेकिन यह क्यों भूल रहे हैं कि अभी-अभी अपनी सालाना नीति में आरबीआई ने गोलपोस्ट बदल दिया है। हाल तक आरबीआई यह कहता रहा था कि ऊँची महँगाई दर उसकी सबसे बड़ी चिंता है। लेकिन नयी सालाना नीति में आरबीआई ने सबसे बड़ी चिंता का दर्जा चालू खाते के घाटे (CAD) को दे दिया है। महँगाई दर अब आगे नियंत्रण में रहने की उम्मीद तो आरबीआई ने खुद ही अपनी सालाना नीति में सामने रख दी थी। इसके बावजूद उसने संकोच बरतते हुए अपनी नीतिगत दरों को बाजार के अनुमानों से कम घटाया था।
खैर, अगर बाजार उम्मीदों की पतंग उड़ा रहा है और हवा भी इस पतंग को ऊपर ले जाने में सहायक है तो अभी बस यही देखना चाहिए कि पतंग कहाँ तक जाती है।
बाजार के कई दिग्गज निफ्टी को 6500 से लेकर 7000 तक जाता देख रहे हैं। उनकी ये भविष्यवाणियाँ देर-सबेर तो सही होंगी ही। एक दिन सेंसेक्स 25,000 पर होगा, निफ्टी 7000 तो क्या 7500 तक भी जाये तो कोई ताज्जुब नहीं। लेकिन उस बड़ी तेजी के लिए क्या अभी अनुकूल स्थितियाँ हैं? विकास दर में सुधार के संकेत नहीं, निर्यात के मोर्चे पर सुस्ती का आलम, और सामने राजनीतिक अनिश्चितता। किस दिन खबरिया चैनलों पर कोई ब्रेकिंग न्यूज राजनीति के प्याले में तूफान ले आयेगी, यह किसको पता! बाजार में टिकाऊ तेजी का बड़ा दौर शुरू होने के लिए आपके पास कम-से-कम एक चीज होनी चाहिए – या तो अर्थव्यवस्था वापस सुधार के पुख्ता संकेत देने लगे, या फिर अगले चुनाव के बाद एक स्थिर सरकार कमान सँभाल ले। क्या आपको यह साफ दिख रहा है कि भारत की विकास दर अब तिमाही-दर-तिमाही वापस सँभलती दिखेगी? क्या आज आपको पक्का यकीन है कि चुनाव के बाद यूपीए को बहुमत मिल जायेगा? या फिर क्या आप पक्का मान रहे हैं कि भाजपा के नेतृत्व में एनडीए अगली स्थिर सरकार बनाने जा रहा है? इन सवालों के जवाब में अगर-मगर लगा हो तो वही अगर-मगर आप इस तेजी से जुड़ी उम्मीदों में भी जोड़ लें। इस अगर-मगर के साथ बाजार ने ज्यादा ऊँचाई पा ली तो किसी नकारात्मक खबर पर धड़ाम से गिरने का खतरा भी उतना ही बढ़ जायेगा। धोबीपाट में पटकने से पहले उछाला जाता है!
लेकिन बाजार की तेजी संगीत और कुर्सी के खेल की तरह है, जब तक संगीत बज रहा है, तब तक आप कुर्सी पर बैठ नहीं सकते। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 16 मई 2013)

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