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भूले-बिसरे, पुराने बैंक खाते और उसमें पड़ी अनक्लेम्ड राशि की जानकारी उद्गम पोर्टल पर ढूँढें

अगर आपने कभी किसी बैंक में खाता खुलवाया था और फिर उसे भूल गए, तो जरा ध्यान दीजिए। क्योंकि ऐसा ही पैसा, जिसे न तो निकाला गया, न ही इस्तेमाल किया गया, अब बड़ी रकम बन चुका है। जून 2025 के अंत तक, भारतीय बैंकों में कुल 67,003 करोड़ रुपये की अनक्लेम्ड डिपॉजिट राशि पड़ी हुई है। ये जानकारी संसद में 28 जुलाई को सरकार ने दी।

सबसे ज्यादा पैसा सरकारी बैंकों में फंसा है

इन 67,003 करोड़ रुपये में से सबसे बड़ा हिस्सा, यानी 58,330 करोड़ रुपये पब्लिक सेक्टर बैंकों में है। बाकी 8,673 करोड़ रुपये प्राइवेट बैंकों में जमा है। ये वही पैसे हैं जो लंबे समय से बिना किसी क्लेम के खातों में पड़े हैं यानी खाताधारकों ने इन्हें इस्तेमाल नहीं किया, और शायद भूल भी गए हैं।

कौन-कौन से बैंक टॉप पर हैं?

अगर बैंकों की बात करें तो भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) इस लिस्ट में सबसे ऊपर है। अकेले एसबीआई में 19,330 करोड़ रुपये पड़े हैं जिनका कोई दावेदार नहीं है। इसके बाद पंजाब नेशनल बैंक में 6,911 करोड़ रुपये और केनरा बैंक में 6,278 करोड़ रुपये की रकम अनक्लेम्ड है।

प्राइवेट बैंकों में आईसीआईसीआई बैंक 2,063 करोड़ रुपये के साथ पहले नंबर पर है, उसके बाद एचडीएफसी बैंक 1,610 करोड़ रुपये और एक्सिस बैंक 1,360 करोड़ रुपये पर हैं।

उद्गम पोर्टल: आपके पैसे ढूंढने का आसान तरीका

अब सवाल ये उठता है कि आम आदमी अपने पुराने बैंक खातों को कैसे ढूंढे? इसके लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक सेंट्रलाइज्ड पोर्टल लॉन्च किया है, नाम है उद्गम यानी अनक्लेम्ड डिपॉजिट्स गेटवे टू एक्सेस इन्फॉर्मेशन। इस पोर्टल की मदद से आप एक ही जगह पर अलग-अलग बैंकों में पड़े अपने पुराने, भूले-बिसरे खातों की जानकारी खोज सकते हैं।

1 जुलाई 2025 तक, 8.6 लाख से ज्यादा लोग इस पोर्टल पर रजिस्टर कर चुके हैं और अपने पुराने खातों की जानकारी ले चुके हैं। यह पहल इसलिए भी अहम है क्योंकि अब तक ये जानकारी हर बैंक के अलग-अलग सिस्टम में होती थी, लेकिन अब सब कुछ एक जगह मिल रहा है।

ये पैसा कहाँ जाता है अगर कोई क्लेम न करे?

अगर कोई सालों तक अपनी जमा राशि का क्लेम नहीं करता, तो आरबीआई इसे डिपॉजिटर एजुकेशन एंड अवेयरनेस फंड यानी डीईएएफ में ट्रांसफर कर देता है। इस फंड का इस्तेमाल डिपॉजिटर्स की जागरूकता बढ़ाने, उनके हितों की रक्षा करने और जरूरी मामलों में मदद के लिए किया जाता है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि लोगों का पैसा सिर्फ यूँही पड़ा न रहे, बल्कि किसी अच्छे उद्देश्य के लिए काम आए।

क्रिप्टो और ईटीएफ पर सरकार का स्टैंड

संसद में एक और अहम जानकारी यह भी दी गई कि सरकार का अभी कोई प्लान नहीं है कि क्रिप्टोकरेंसी को ईटीएफ यानी एक्सचेंज ट्रेडेड फंड के जरिए मेनस्ट्रीम फाइनेंशियल सिस्टम में लाया जाए। आरबीआई ने पहले ही क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े कई रिस्क को लेकर चेतावनी जारी की है जैसे आर्थिक नुकसान, लीगल कंप्लिकेशन और फाइनेंशियल फ्रॉड की आशंका।

बिमा सखी योजना: ग्रामीण भारत में बीमा जागरूकता की नई कड़ी

इसी जवाब में सरकार ने यह भी बताया कि 31 मार्च 2025 तक देशभर में कुल 1,48,888 महिलाएँ 'बिमा सखी' के रूप में ट्रेनिंग ले चुकी हैं। इनमें से करीब 25% पंचायतों में कम से कम एक बिमा सखी काम कर रही हैं। ये महिलाएँ ग्रामीण इलाकों में बीमा योजनाओं को समझाने, पॉलिसी बेचने और दावों में मदद करने का काम करती हैं। जमा हुए प्रीमियम का 60% से ज्यादा हिस्सा ग्रामीण इलाकों से आ रहा है, जो दिखाता है कि यह स्कीम नीचे तक पहुँच रही है।

नतीजा क्या निकलता है?

साफ है कि लोगों के पुराने खातों और पैसे को लेकर अब सरकार और आरबीआई एक्टिव मोड में आ चुके हैं। उद्गम जैसे पोर्टल आम लोगों को अपने पुराने पैसों की जानकारी जुटाने में मदद कर सकते हैं, बशर्ते लोग खुद भी सतर्क रहें। वहीं, बिमा सखी जैसी योजनाएँ ये दिखाती हैं कि सरकार ग्रामीण भारत को बीमा और वित्तीय जागरूकता के दायरे में लाने की कोशिश कर रही है।

अगर आपके पास भी कोई पुराना बैंक खाता है या किसी रिश्तेदार का खाता जो अब इस्तेमाल में नहीं है, तो उद्गम पोर्टल पर जाकर एक बार जरूर चेक करें। हो सकता है आपका ही कोई 'भूला-बिसरा' पैसा वहाँ आपका इंतजार कर रहा हो।

(शेयर मंथन, 29 जुलाई 2025)

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