2008 के सबक याद रखना जरूरी
अजय बग्गा, चेयरमैन, एफपीएसबीआई
साल 2009 आने के समय हालात ऐसे हैं कि कोई भी साल 2008 को याद नहीं रखना चाहता। यह स्थिति पिछले दिसंबर से ठीक विपरीत है, जब निवेशक बड़ी आशा और आत्मविश्वास के साथ साल 2008 का स्वागत कर रहे थे। इसके पीछे यह सोच थी कि भारतीय शेयर बाजार और अर्थव्यवस्था, अमेरिकी अर्थव्यवस्था से एक हद तक अलग (डिकपल्ड) हो गये हैं। लेकिन अमेरिकी बाजारों में सबप्राइम ऋणों के कारण उत्पन्न कर्ज के संकट से शुरु होने वाली इस समस्या ने गंभीर रूप ले लिया। इसने बेयर स्टर्न्स, लेहमन ब्रदर्स, वाशिंगटन म्युचुअल और मेरिल लिंच जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं को ध्वस्त कर दिया। ऐसा क्यों हो गया?
नीलेश शाह, डिप्टी एमडी, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी
पी के अग्रवाल, प्रेसिडेंट (रिसर्च), बोनांजा पोर्टफोलिओ
टी एस हरिहर, सीनियर वीपी, आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज
राजीव रंजन झा
अमिताभ चक्रवर्ती, प्रेसिडेंट (इक्विटी) रेलिगेयर सिक्योरिटीज
आर वेंकटरमन, कार्यकारी निदेशक, इंडिया इन्फोलाइन