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राजू ना बनें नाइक साहब!

राजीव रंजन झा

यह तुलना शायद कई लोगों को पसंद नहीं आयेगी, क्योंकि एलएंडटी के सीएमडी ए एम नाइक को अपनी कंपनी के लिए काफी समर्पित माना जाता है। जैसी धोखाधड़ी बी रामलिंग राजू ने की है, ए एम नाइक के बारे में उसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि शेयरधारकों और निवेशकों को भरमाने के मामले में श्री नाइक अब रामलिंग राजू की ओर बढ़ते दिख रहे हैं।

कामकाज में पारदर्शिता की तमाम बातों के बावजूद ज्यादातर कंपनियाँ विलय और अधिग्रहण जैसे मामलों में काफी गुपचुप रवैया अख्तियार करती रही हैं। लेकिन एलएंडटी तो इस मामले में दो-चार कदम आगे निकल गयी है। यह बाकायदा मीडिया में आकर अपनी एक रणनीति घोषित करती है और उसके बाद शेयर बाजार में ठीक इसका उल्टा करती नजर आती है। हे प्रभु, यह एक तरह की इनसाइडर ट्रेडिंग नहीं तो और क्या है! पहले तो कंपनी ने कहा कि सत्यम में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है, लेकिन फिर इसने मेटास सौदों के बाद पटखनी खा रहे सत्यम के 3.95% शेयर खरीद लिये।
इसके बाद सामने आया रामलिंग राजू का भंडाफोड़। तब नाइक ने कहा कि सत्यम में उनकी हिस्सेदारी महज वित्तीय निवेश है और फिलहाल वे न तो सत्यम के शेयर बेचना चाहते हैं और न ही और खरीदना चाहते हैं। इस बयान के तकरीबन एक हफ्ते बाद ही नाइक ने कहा कि सत्यम में उनका निवेश रणनीतिक है। इसी दौरान एलएंडटी के सीएफओ वाई एम देवस्थली ने कहा था कि जब सत्यम की तस्वीर पूरी तरह साफ हो जायेगी, उसके बाद ही वे अपने अगरे किसी कदम के बारे में फैसला करेंगे। लेकिन बीते शुक्रवार को एलएंडटी ने सत्यम के 8% से कुछ ज्यादा शेयर खरीद कर कंपनी में अपनी हिस्सेदारी 12% कर ली है। तो क्या देवस्थली बतायेंगे कि पिछले दिनों सत्यम के बारे में किस तरह से स्थिति साफ हो गयी है?
एलएंडटी सत्यम को खरीदने की कोशिश करे, इसमें कुछ गलत नहीं है। लेकिन भरमाने वाले बयान देकर और अपने बयानों से उल्टे काम करके एलएंडटी खुद अपने और सत्यम, दोनों के शेयरधारकों को गुमराह कर रही है। एक और अहम मसला यह है कि एलएंडटी ने अगर सत्यम को खरीदने का मन बना लिया है, तो क्या इसके लिए अपने शेयरधारकों से पूछा है? जिस तरह सत्यम के लिए मेटास का अधिग्रहण शेयरधारकों से बिना पूछे किया गया बड़ा फैसला था, एलएंडटी के लिए सत्यम का अधिग्रहण भी वैसा ही मामला होगा।

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