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असमंजस है, मगर पलड़ा जोखिम की ओर ज्यादा

राजीव रंजन झा : यह महज संयोग नहीं हो सकता कि जिस समय पूरे देश की उत्सुक नजर कोयला घोटाला पर चल रही सुनवाई को लेकर सर्वोच्च न्यायालय पर टिकी है, उस समय शेयर बाजार असमंजस और उलझन के स्पष्ट संकेत दे रहा है।
कल मैंने जिक्र किया था कि शुक्रवार के कारोबार में निफ्टी ने असमंजस को दिखाने वाली इनसाइड कैंडल बनायी थी, यानी शुक्रवार का इसका दायरा पूरी तरह गुरुवार के दायरे के भीतर था। माना जा सकता है कि अब बाजार के लिए अगली दिशा का संकेत गुरुवार का ऊपरी स्तर 5925 पार होने या निचला स्तर 5853 टूटने पर ही मिलेगा। लेकिन सोमवार को निफ्टी ने ऐसा करने की कोई कोशिश नहीं की। बेशक इसने शुक्रवार का ऊपरी स्तर जरूर पार किया, लेकिन फिलहाल यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है।
जैसी खबरें आ रही हैं, उनके मुताबिक सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय को एक-एक करके गिना दिया है कि सरकार ने कोयला घोटाले पर उसकी आरंभिक स्टेटस रिपोर्ट में क्या-क्या बदलाव कराये थे। इस मामले में आज 30 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई होनी है। अगर सर्वोच्च न्यायालय की ओर से इस मसले पर बेहद तल्ख टिप्पणी सुनने को मिले तो इसमें किसी भी राजनीतिक या कानूनी पंडित को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
मुझे आश्चर्य है कि इस आसन्न खतरे के बावजूद केंद्र सरकार के वरिष्ठ मंत्रीगण और यहाँ तक कि खुद प्रधानमंत्री ने कानून मंत्री अश्विनी कुमार का इस्तीफा नहीं होने के बयान क्यों दिये! खैर, उनकी रणनीति क्या है, यह तो वही जानें। लेकिन इस मसले पर मचने वाला राजनीतिक बवंडर सरकार के प्राण संकट में डाले रखेगा।
पिछले हफ्ते ही वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भरोसा दिलाने की कोशिश की थी कि अगले 2-4 महीनों में कई और आर्थिक सुधार देखने को मिलेंगे। लेकिन हकीकत यह है कि अब अगले लोकसभा चुनाव तक भारतीय राजनीति का हर दिन अनिश्चितता के साये में ही गुजरेगा। पता नहीं किस दिन इस सरकार के अल्पमत में चले जाने की ब्रेकिंग न्यूज तमाम खबरिया चैनलों के पर्दे पर छा जाये। कोई इस बारे में पक्की भविष्यवाणी नहीं कर सकता।
इस राजनीतिक उथल-पुथल के बीच अगर शेयर बाजार की तस्वीर देखें तो पिछले दो हफ्तों की तीखी उछाल के बाद यह बेहद जोखिम भरे क्षेत्र में है। राजनीतिक मोर्चे पर कोई भी नकारात्मक खबर इसे बुरी तरह लुढ़का सकती है। यहाँ तक कि अगर ब्याज दरों को लेकर आरबीआई से जो उम्मीदें बाजार ने लगा ली हैं, उनको लेकर हल्की निराशा भी अच्छी-खासी मुनाफावसूली का सबब बन सकती है। वहीं अगर राजनीतिक मोर्चे पर सब ठीक रहे और आरबीआई बाजार को निराश न करे, तो भी बाजार के लिए ऊपर बढ़त की गुंजाइश सीमित ही लगती है। इसलिए कहा जा सकता है कि फिलहाल भारतीय बाजार में जोखिम-लाभ के अनुपात का पलड़ा जोखिम की ओर ज्यादा झुका है। Rajeev Ranjan Jha 
(शेयर मंथन, 30 अप्रैल 2013)

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